Monday, July 9, 2018

फूलों के रंग



पिछले दिनों काफी घूमना हुआ, कई परिजनों से भेंट हुई. बड़े भाई के साथ कुछ दिन बिताये. परसों दिल्ली से वह लौटी तो घर में एक मेहमान मिला, छोटी ननद का छोटा पुत्र यानि उसका भांजा, जो वार्षिक परीक्षाओं के बाद कुछ दिनों के लिए यहाँ घूमने आया है. जून उसी दिन गोहाटी चले गये. आज वह वापस आ रहे हैं, पर कल उन्हें पुनः जाना है. यह किशोर सभी कार्य धीरे-धीरे करता है, और इसका बड़ा भाई उतनी ही शीघ्रता से. सुबह चार बजे उठाने को उसने कहा था, पर साढ़े पांच बजे उठा, वे ट्रैक पर टहलने गये, जिसके निकट स्थित गुलाब का बगीचा फूलों से भर गया है. कल शाम वे मृणाल ज्योति गये, स्कूल आगे बढ़ रहा है. भांजा भी गया था, चुपचाप बैठकर किताब पढ़ता रहा. बिस्किट ले गया था, पर बांटे नहीं उसने, उसके कहने पर शायद बाँट भी देता, वे देकर आ गये. आज नैनी की जगह मालिन काम कर रही है. नैनी अस्पताल में है, उसका तीसरा बच्चा जन्म लेने को है, सब कुछ ठीक से हो जायेगा, उसने मन ही मन प्रार्थना की. शनिवार को साप्ताहिक सफाई का दिन है, सफाई कर्मचारी दीवारों और छत के जाले साफ कर रहा है.

कल हफ्तों बाद ब्लॉग पर लिखा. परमात्मा इस अस्तित्त्व की समग्र ऊर्जा का नाम है. जिसके पूर्व न कोई कारण है न कोई आशय. वह बस है जो इस विराट आयोजन के रूप में प्रकट हो रहा है. वह पूर्ण है और शून्य भी, वह अनंत है और अति सूक्ष्म भी, वह दूर भी है और निकट भी, वही सब कुछ हुआ  है पर वह कुछ भी नहीं है. जन्म से पूर्व और मृत्यु के बाद वे उसी असीम के साथ एकाकार हो जाते हैं. यह सृष्टि वर्तुलाकार है, सारा ब्रह्मांड किसी केंद्र का अनुगमन कर रहा है. इस जगत में विरोध नहीं है, सारे विपरीत एक दूसरे के पूरक हैं. जो भी विरोध नजर आता है वह अज्ञान के कारण ही है. कितना रहस्यमय है यह ज्ञान, जो समझकर भी समझाया नहीं जा सकता, योग वसिष्ठ में जब मुनि राम को कहते हैं, कुछ हुआ ही नहीं, ब्रह्म अपने आप में स्थित है, तो उनका मन अचरज से भर गया था. किशोर मेहमान को ध्यान के बारे में जानना अच्छा लग रहा है, वह कितने ही प्रश्न पूछता है. सुबह योगासन भी करता है. परसों उसके माँ-पापा आ रहे हैं, जिनके साथ वे होली का त्योहार मनाएंगे और कहीं घूमने भी जायेंगे, लिखने का समय तब नहीं मिलेगा.

मेहमान कुछ दिन रहे और चले भी गये. इस बार होली का त्योहार उन्होंने फूलों के रंगों से मनाया. पलाश और गुड़हल के फूलों से बनाया गीला रंग, हल्दी व आटे से सूखा रंग, हर्बल गुलाल तो मंगाया ही था. आज एक सप्ताह बाद डायरी खोली है. मौसम बादलों भरा है. सुबह छाता लेकर प्रातः भ्रमण किया, फिर भी हल्की सी फुहार पीठ और चेहरे को भिगो रही थी, जो ठंडक से भरने के बावजूद भली लग रही थी. सुबह स्कूल गयी, प्रिंसिपल के कहने पर बच्चों को ध्यान कराया, पता नहीं उन्हें कितना भाता है, आसन तो यकीनन उन्हें भाते थे. क्लब की सेक्रेटरी बाहर गयी हैं, इस महीने उसे ही मासिक बुलेटिन बाँटना है, जून ने बारह क्षेत्रों के लिए सदस्याओं की संख्या के अनुसार बंडल बनाने में उसकी सहायता की, सुबह अपने ड्राइवर से ही ही वे उन्हें भिजवा भी देंगे. इसी हफ्ते क्लब का एक कार्यक्रम भी है, इस वर्ष का अंतिम व सबसे बड़ा आयोजन.

आज भी सुबह से घनघोर घटा छायी है, दिन में रात होने का आभास करा रही है. मौसम इतना ठंडा हो गया है कि स्वेटर जो धोकर रख दिए थे, पुनः निकालने पड़े हैं. सुबह नयी पड़ोसिन को फोन किया, वह सदा अपने घर आने का निमन्त्रण देती थीं. उन्होंने कहा दोपहर को तीन बजे वह उसका स्वागत कर सकती हैं, अर्थात वह खाली हैं. कल शाम को योग कक्षा में एक साधिका ने ध्यान की जगह ज्यादा आसन कराने को कहा. कुछ न करने से कुछ करना ज्यादा अच्छा लगता है सभी को, कुछ न करना ज्यादा कठिन भी है और ध्यान है कुछ भी न करना. अगले महीने मंझले भाई की बिटिया की सगाई होनी है और सम्भवतः इसी वर्ष विवाह भी हो जायेगा. छोटी बहन आज भारत आने वाली है. कल भाई के यहाँ पूजा है, वे तैयारी में लगे होंगे, उसने फोन किया तो उन्होंने नहीं उठाया.

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