आज वह अपनी नई पड़ोसिन से मिलने गयी, जो एक
मृदुभाषी, थोड़े भारी तन वाली आकर्षक सांवली महिला हैं. थोड़ी देर बाद ही वह चाय,
मिठाई, काजू और नमकीन ले आयीं और खाने का आग्रह करने लगीं. उनका घर कलात्मक
साजसज्जा से सुशोभित है. वे लोग ब्राह्मण हैं, पूजा घर भी सुंदरता से सजाया गया
है. कह रही थीं, रोज पूरे नियम से पूजा करती हैं. अब तक के कार्यकाल में दस घर बदल
चुके हैं वे लोग. चार वर्षों के लिए वह राजस्थान में थीं, वहाँ के महिला क्लब की
सेक्रेटरी भी थीं, अपने कार्यकाल में उन्होंने एक पत्रिका भी प्रकाशित करवाई. उनकी
दो पुत्रियाँ हैं, एक पढ़ रही है और दूसरी एम टेक करने के बाद जॉब में है, वह
पीएचडी भी करना चाह रही थी, पर किसी कारण वश यह सम्भव नहीं हुआ. पुत्रियों के बारे
में बताते समय उनका मुख गर्व से दमक रहा था. इसी तरह पहले लोग केवल पुत्रों के
बारे में बात करते थे. कुछ वर्ष वे लोग उड़ीसा में भी रहे. उन्होंने गोहाटी और
कोलकाता में रहने वाले अपने दो भाइयों के बारे में भी बताया, एक का पुत्र बंगलूरू
में स्टार्टअप चला रहा है और दूसरे का आईआईटी में इंजीनियरिंग कर रहा है. उनके पति
के चार भाई हैं, बड़े भाई जब हाईस्कूल में थे अचानक उनकी आँखें चली गयीं, पर पढ़ाई
में बहुत अच्छे थे, डाक्टरेट करके प्रोफेसर भी बने. एक बहन थी पिछले वर्ष जिसकी
मृत्यु हो चुकी है. बातें करते-करते जब घड़ी की ओर देखा तो जून के आने का समय हो
गया था, उन्हें अपने घर आने का निमन्त्रण देकर वह लौट आई.
आज वे मतदान देने गये. सौ नंबर कमरे में उनका बूथ था, उस समय भीड़ जरा भी नहीं
थी. पहले जून गये फिर वह. उनके आगे भी कोई नहीं था और पीछे भी कोई नहीं, जबकि अन्य
कमरों के आगे लंबी लाइनें लगी थीं. वोट देने के बाद बाजार से फल खरीदे और जून के
एक सहकर्मी के यहाँ गये, जिनकी माँ की पिछले हफ्ते मृत्यु हो गयी थी. यहाँ के
रिवाज के अनुसार तेहरवीं से पहले जो भी जाता है, वह कुछ न कुछ लेकर जाता है. हर
रिवाज के पीछे कोई न कोई कारण होता है, शायद दुःख को बांटने का एक तरीका है यह
प्रथा. कल शाम एक पुराने मित्र परिवार को भोजन पर बुलाया था, पुरानी यादें ताजा
करते समय मन कैसा बच्चों जैसा हो जाता है, बिना बात ही खुशी बना लेता है. कल रात एक स्वप्न में देखा, वह एक बस में बैठी है, पर
रास्ते में उतर जाती है, छोटा भाई आगे निकल जाता है. एक अन्य स्वप्न में किसी
पुराने जन्म की स्मृति थी, जिसमें इस जन्म का एक संबंधी उस जन्म में भी होता है.
उनके जो संस्कार गहरे होते हैं, अगले जन्म तक चलते चले जाते हैं. उसके भीतर जो लोभ
की प्रवृत्ति है अथवा संदेह की, वह भी लगता है, पुरानी है, जिसके कारण कभी-कभी भीतर
संदेह जगता है. उनकी आँखों पर जिस रंग का चश्मा लगा होता है, वे उसी से दुनिया को
देखते हैं.
शाम के साढ़े पांच बजे हैं. वर्षा हो रही है बाहर, सो लगता है, दिन से सीधे ही रात
हो गयी है. गुलजार की कुछ कविताएँ पढ़ीं आज, बहुत सुंदर हैं, सहज, सरल और दिल को
छूने वाली कविताएँ ! सुबह मृणाल ज्योति गयी, ‘सुपर ब्रेन योग’ करवाया, कान पकड़ के
उठक-बैठक को आजकल इसी नाम से पुकारा जाता है..अच्छा व्यायाम है, शाम को महिलाओं को
भी करवाएगी. कल दोपहर भी जाना है, ‘बाल सुरक्षा समिति’ की पहली मीटिंग है जिसकी वह
भी सदस्या है. जून के दफ्तर के एक उच्च अधिकारी की पत्नी को फोन किया, उनके लिए एक
कविता लिखी है, वे लोग तीन दशक से अधिक कार्य करने के बाद यहाँ से जा रहे हैं.
शनिवार को क्लब की एक अन्य सदस्या की भी विदाई है, एक परिवार तबादले पर जा रहा है.
जीवन इसी आने-जाने का नाम ही तो है. उसका मोबाईल फोन ठीक से काम नहीं कर रहा,
अच्छा ही है एक तरह से, भला हुआ मेरा चरखा टूटा..कबीर का पद है न जो आबिदा ने गाया
है. फोन के कारण कितना समय व्यर्थ जाता है आजकल. नैनी कह रही है, इस बार पूजा में
उसे साड़ी की जगह सूट चाहिए. अभी छह महीने शेष हैं पूजा आने में. मन तो कल्पनाएँ
करता ही रहता है. अच्छ है कि उसका मन भी कल्पनाशील है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19.7.2018 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3037 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
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