आज उनकी यात्रा का चौथा दिन है. शनिवार को सुबह
असम से चले और दो उड़ानों के बाद रात्रि दस बजे बंगलुरू पहुँचे. फोन पर बात हुई थी तो नन्हे ने कहा था लेने आयेगा पर उतरने पर संदेश आया,
गाड़ी भेज दी है. घर जाकर पता चला दोपहर को ही उसने एक डाइनिंग टेबल का आर्डर दिया
था, दो घंटे में पहुंचने वाली है ऐसा कहकर पूरे छह घंटे लगा दिए दुकानदार ने भेजने
में, उसी के इंतजार में घर से निकल ही नहीं पाया. जब वे पहुंचे तो डिलीवरी मैन बाहर निकल रहा था. पहली बार घर देखा, काफी आरामदायक
है घर...भोजन कक्ष कम बैठक, दो छोटे कमरे, एक स्नानघर और ठीकठाक सा किचन. कमरों
में काफी प्रकाश आता है और हवा के आवागमन का भी प्रबंध है. सफेद मार्बल का फर्श
है, ज्यादा फर्नीचर नहीं है, बेड की ऊँचाई काफी कम है और एक कमरे में तो एक के ऊपर
एक गद्दे रखकर ही बेड बन गया है. नन्हा अकेला
रहता है कभी-कभी उसके मित्र आ जाते हैं सो जगह काफी है. उसने खाने का आर्डर भी कर
दिया था, थोड़ी ही देर में मसाला भिन्डी, अरहर की दाल और तन्दूरी रोटी के पैकेट पहुंच गये. बंगलुरू में दिन हो या रात चौबीसों घंटे भोजन मिल जाता
है.
इतवार की सुबह आसपास के किसी घर से आती आवाज से नींद खुली. यह काफी बड़ी सोसाइटी है, पंक्तियों में दुमंजिला घर बने हैं. घरों के आगे सुंदर बागवानी है इसी तरह पीछे व कहीं-कहीं छत पर भी. जून प्रातः भ्रमण के लिए निकल गये और लौटे तो सब्जियां और फल लेते आये, आते ही दुबारा चले गये और दूध व कुछ और सामान, अब उन्हें तो घर का बना खाना ही भाता है. कुछ देर में निफ्ट में पढ़ने वाली भतीजी आ गयी और इंजीनियरिंग कर रहे दो भांजे भी, बंगलुरू में देश भर से बच्चे पढ़ने व नौकरी करने आते हैं. तभी घंटी बजी, नन्हे ने अंकुरित सलाद का आर्डर कर दिया था, यहाँ सभी के पास समय की कमी है शायद इसी कारण कटी हुई सब्जियां, सलाद आदि सब पैकेट बंद मिल जाता है, अब उससे कितना पोषण मिलता है यह तो शोध का विषय है. बहरहाल सलाद स्वादिष्ट था. बातें करते-करते समय का आभास ही नहीं हुआ, बच्चों ने खाना बनाने में सहायता की और लंच भी तैयार हो गया. तब तक एक पुराने मित्र का बेटा भी आ गया जिसे बचपन से बड़ा होते हुए देखा था. अब यहाँ रह कर जॉब करता है. कुछ देर आराम करने के बाद वे निकट स्थित एक झील पर टहलने गये, वर्षा के मौसम के बावजूद पानी बेहद कम था पर ज्यादातर जगह हरियाली से भरी थी. उसके चारों ओर लाल मिट्टी से बने फुटपाथ पर टहलते हुए सूर्यास्त के दर्शन किये.
सबका निर्णय हुआ
निकट ही स्थित ‘टोटल मॉल’ में जाने का, बंगलुरू में हर तरह के अनगिनत छोटे-बड़े मॉल हैं. आकर्षक स्कीमों के साथ सुंदर
परिधान और अन्य सभी आवश्यक वस्तुएं मिलती हैं, पर अक्सर जो वस्तु पसंद आती है उस
पर कोई छूट नहीं होती. वापस आये तो डिनर का समय हो चुका था, नन्हे ने कहा आज सब्जी वही बनाएगा, सो जल्दी से खाना
बन गया, बच्चों को अपने हॉस्टल वापस जाना था. उन्हें बस स्टॉप तक छोड़ने गये तो
ठंडी हवा बह रही थी, जिसमें से आती हुई फूलों की खुशबू नासापुटों को छू रही थी. सड़क
के किनारे, इमारतों के आस-पास तथा घरों के
बाहर लगे वृक्ष यहाँ के लोगों के प्रकृति प्रेमी होने की गवाही देते हैं.