Tuesday, June 7, 2016

वसीयतनामा


कई बार मन में विचार आया है कि उसे अपनी वसीयत लिख देनी चाहिए. मन ही मन कई बार लिख भी चुकी है. सर्वप्रथम मृत्यु की बात. अंतिम श्वास अस्पताल में नहीं अपने घर पर ही ले. यदि कोई रोग हो जाये तो बिना कारण देर तक दवाओं के सहारे जिलाने का प्रयत्न नहीं किया जाये. उसकी सभी वस्तुएँ, आभूषण आदि दान कर दिए जाएँ. मृणाल ज्योति तथा आर्ट ऑफ़ लिविंग ये दो संस्थाएं इसे ग्रहण करें ! जहाँ तक सम्भव हो मानव को अपने हाथों से ही दान करके जाना चाहिए ! आज दशहरा है, सत्य की विजय असत्य पर. राम की विजय रावण पर. दुर्गा की शक्ति लेकर राम आत्मा ने रावण अहंकार पर विजय पाई और सीता भक्ति को प्राप्त किया लक्ष्मण वैराग्य की सहायता से...

शक्ति पूजन से हुए कृतार्थ
रामात्मा ने पाया संबल,
अहंकार रावण का कर वध
सीता का प्रेम मिला निर्मल
जय दुर्गा ! जय राम दिलाई
विजयादशमी की बधाई !

आज सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ. श्वासों के रूप में अनंत का अनुभव. सुना था कि प्राण परम हैं,  सच तो है श्वास है तभी तक तो आत्मा इस देह के साथ बंधी है. श्वासें कितनी हल्की हो गयी हैं तब से, कितनी मधुर और सुगंध से भरी श्वासें ! सद्गुरु कहते हैं कम्प रहित श्वास ही ध्यान है, सो एक बार पुनः ध्यान घटा है. श्वास स्थिर हुई है तो मन कितनी आसानी से ठहर गया है. प्राणायाम आज पूर्ण हुआ ऐसा लगता है. नासिका के अग्रभाग में सारा रहस्य छिपा है एक बार एडवांस कोर्स में सुना था. श्वासें कितना आनंद छिपाए हैं अपने भीतर, श्वास-श्वास में उसी का नाम छिपा है, सोहम्  छिपा है. ये सारी शास्त्रोक्त बातें सत्य प्रतीत हो रही हैं. कभी-कभी श्वास रुक जाती है, कभी अति सूक्ष्म हो जाती है, कितना अद्भुत अनुभव है यह !


आज गर्मी बहुत ज्यादा है जैसे मई-जून का महीना हो, पसीना सूखता ही नहीं है, धूप से या किसी अन्य कारण से सिर में हल्का दर्द है. कल शाम वे जून के एक सहकर्मी के यहाँ गये, उनके ससुर का देहांत हो गया था, लगा ही नहीं कि किसी ऐसे परिवार से मिल रहे हैं जहाँ एक दिन पूर्व मृत्यु घटी है. सभी संयत थे और सामान्य व्यवहार कर रहे थे. बचपन में देखती थी कि मृत्यु होने पर लोग दहाड़ें मारकर रोते थे. अब मौत को भी सहजता से स्वीकारने लगे हैं लोग, परिपक्वता की निशानी है. कल उस परिचिता के यहाँ रात्रि भोज है, जिसके ससुर का देहांत पिछले दिनों हुआ था. तैयारियों में लगे होंगे सभी और कुछ दिनों में ही सामान्य हो जायेंगे. उनका जीवन यूँ ही चलता रहेगा, नये-नये शरीर धारण करते रहेंगे. आज ओशो की आत्मकथा का वह अंश पढ़ा जहाँ वह अपने भीतर गौतम बुद्ध की आत्मा का प्रवेश होना स्वीकार करते हैं. कितना विचित्र रहा होगा उनका अनुभव !

2 comments:

  1. और हमें कुछ नहीं :(
    मित्रों को एक किताब तक नहीं दी जाते जाते .... श्रृद्धांजलि की चिंता ही नहीं :)
    खैर हार्दिक मंगलकामनाएं अापको !
    मृत्यु वरण के बाद क्या पता हमारे दान पर भी उंगलियां उठाएं , जो कुछ है पहले ही है जितना करना होगा करते रहेंगे !
    सादर

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  2. स्वागत व आभार ! सही कहा है आपने अपने हाथों से ही जो देना है, देकर जाना चाहिए.

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