Monday, June 27, 2016

आल इज वेल


भजन अभ्यास करने का उद्देश्य है कि आत्मा परमात्मा का अनुभव करे. मन की शांति, देह की निरोगता, सौभाग्य... ये सारी बातें अपने आप ही होने लगती हैं. कल रात टीवी पर कुछ नये कार्यक्रम देखे, सोने गयी तो पीछे वाली लेन से लाउडस्पीकर पर तेज आवाज में बजते गीतों के कारण नींद में व्यवधान पड़ा. सोने-उठने में जैसा अनुशासन जून रखते हैं, वह नहीं रख पाती. आज बाजार जाना है. मृणाल ज्योति के शिक्षकों के लिए नये वर्ष का उपहार- डायरी व पेन, ‘अंकुर’ के बच्चों के लिए भारत व विश्व के मानचित्र तथा घर के लिए सब्जियां व फल खरीदने हैं.

सद्गुरु के वचन अनमोल हैं, वह कहते हैं, साधक चलती-फिरती आग हैं जो सारी बुराइयों को जला कर रख कर देती है, जो बर्फ को पिघला देती है. वे भूल गये हैं कि जीता-जागता प्रकाश उनके भीतर है. मन का विक्षेप, मन की उद्वगिनता तथा मन की कमजोरी तभी उन्हें प्रभावित करती है, जब वे अपने स्वरूप को भूल जाते हैं. श्रद्धा से उनमें समाधि का उदय होता ही है. वीरता के क्षणों में भी पूर्ण होश रहता है. परमात्मा के प्रति समर्पण भी समाधि है ! दृष्टा में पहुंचना ही साधक का लक्ष्य है. वे अगले महीने यहाँ आने वाले हैं. उनके बारे में वे जो भी जानते हैं, उसे ठीक से लिख लेना होगा.


कल माँ की पुण्य तिथि थी. नौ वर्ष हो गये उनके देहांत को. कल भी मंझले भाई ने उन्हें स्वप्न में देखा, उसने भी कई बार उन्हें स्वप्न में देखा है. ऐसे ही एक दिन उनका जीवन भी स्वप्न हो जायेगा. वे भी किसी के स्वप्न में आने वाली छाया मात्र रह जायेंगे. उससे पूर्व उन्हें अपने सत्य स्वरूप को जान लेना है, जान ही लेना है. इस मायामय जगत के आकर्षण इतने लुभावने हैं कि मन टिककर बैठना ही नहीं चाहता, कामनाओं के जाल में इस तरह उलझा हुआ है कि..यश की कामना, समाज के लिए कुछ करने की कामना...अच्छा बनने की कामना..वे एक क्षण को भी कामना से मुक्त नही होते हैं. समाधि के क्षणों में भी कोई जगा रहता है, सबीज समाधि हुई न, कोई रहता है जो उस सुख को अनुभव कर रहा है, दृष्टा बना ही रहता है. उसकी साधना में जैसे एक समतल स्थान आ गया है. सत्संग में जाना भी छूट गया है. सद्गुरु की वाणी सुनती है, पढ़ने का क्रम भी कम हो गया है. लेकिन मन तृप्त है. कोई विक्षेप नहीं है, इसी बात का भरोसा है कि सद्गुरु हर क्षण उनके साथ हैं, वे उनकी आत्मा हैं, वे भीतर का प्रकाश हैं, जो कभी भी कहीं भी नष्ट नहीं हो सकता, तो फिर भय कैसा ? जो उन्हें चाहिए वह पहले से ही मिला हुआ है और जो व्यर्थ है वह मिले या न मिले, क्या फर्क पड़ता है. टाइम पास ही तो करना है इस जगत में, समभाव से निकाल करना है, कोई नया कर्म बंधन बांधना नहीं है, पुराने खत्म होते जाते हैं. कोई आशा नहीं, कोई अपेक्षा भी नहीं, जीवन सहज गति से चलने वाली धारा की तरह बहा जा रहा है. कल क्लब में 3 इडियट्स है, इस फिल्म की बहुत तारीफ़ सुनी है. समाज में कुछ परिवर्तन लाएगी यह फिल्म, यह उम्मीद की जा सकती है. न लाये तो भी कोई हर्ज नहीं, इस सुंदर जगत को जो भी और सुंदर बनाये उसकी प्रशंसा होनी ही चाहिए ! बड़ी ननद की बड़ी बेटी के sms भी सुंदर हैं, नन्हे की कम्पनी का newsletter भी सुंदर है ! उन्होंने सभी को सिंगापुर की तस्वीरों का लिंक भेजा है, देखें, कौन-कौन देख पाता है !

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