Health is wealth इस बात का सही मूल्यांकन
एक फ्लू का मरीज ही कर सकता है, जब जिन्दगी एक बिस्तर तक ही सीमित रह गयी हो. मुँह
का स्वाद इतना कड़वा हो चुका हो कि चाय, दूध, कॉफ़ी और सूप का अंतर ही पता न चले.
सुबह कब हुई, दोपहर कब शाम में ढल गयी, जगती-सोती आँखों को इसकी खबर ही न हो.
लोगों से मिलना-जिलना दुश्वार हो जाये. कभी यह डर कि उतरा हुआ चेहरा देखकर आईने से
ही बैर न हो जाये. आज पांचवा दिन है उसके बुखार का, मुख का स्वाद इस वक्त बेहद कड़वा
है, कसैलेपन की हद तक कड़वा. छाती में जैसे कुछ अटका हुआ है. दोपहर को लगा था जैसे
इस कैद से छुटकारा मिलने ही वाला है, भगवान करे यह सच ही हो. Indian Folk Tales
पिछले दो-तीन दिनों से पढ़ रही है, बड़ी मजेदार कहानियाँ हैं, कोई-कोई तो इतनी अच्छी
कि बस.. जून आज सुबह भी कल की तरह जल्दी आ गये थे, उसे दाल का पानी दिया, खाना
बनाया और सुबह-सुबह नन्हे को स्कूल भेजा. दुनिया वैसे की वैसे चल रही है बस कमी है
तो उसकी शक्ति की जो बुखार ने छीन ली है. कल शाम दीदी का फोन आया वह ठीक से बात कर
सकी बिना यह जाहिर किये कि वह अस्वस्थ है. ऐसा क्यों है, आखिर वह किसी को बताने से क्यों डरती है,
क्या इसके पीछे वह उस रात को माँ-पापा के बीच हुई बात है जो उसने सुनी थी. इस तरह
की होने के कारण उसे सहना भी पड़ता है अकेले-अकेले, नहीं, जून और नन्हे के साथ !
आज वह ठीक है, कल शाम को
बुखार उतर गया था, जून ने जब देखकर बताया कि थर्मामीटर का पारा ९८.६ पर रुका है तो
पहले उसे विश्वास ही नहीं हुआ था पर उस वक्त से अब तक फिर नहीं चढ़ा है. स्वाद अभी
भी कड़वा है और कमजोरी भी, पर पहले की तुलना में तो यह कुछ भी नहीं. अभी कुछ देर
पहले दो सखियों के फोन आये, दोनों को जन्मदिन की पार्टी में पता चला. आज नन्हा घर
पर ही था, सुबह खाना बनाने में उसका बड़ा हाथ था. दोपहर को उसके लिए खीरे पर नमक,
काली मिर्च, अमचूर और नींबू का रस डालकर लाया कि “अब आपके मुंह का स्वाद बिलकुल
ठीक हो जायेगा.” शाम को जून के साथ ‘रिश्ते’ में एक अच्छी कहानी देखी जिसमें हीरो
रेस्तरां में सामने बैठी लडकी को देखकर कल्पनाओं में खो जाता है और उसी सपने में
उससे शादी भी कर लेता है. जून ने आज मक्खन में आलू-पनीर की सब्जी बनाई है, वह उसे काजू,
बिस्किट, दूध खिला-पिला कर जल्दी से ठीक कर देना चाहते हैं. परसों नन्हे के स्कूल
का वार्षिक दिवस है, वे दिगबोई जायेंगे. आज उसने एक अंग्रेजी उपन्यास पढ़ना शुरू
किया जो वर्षों पहले पढ़ा था. सुबह से एक भी folk tale नहीं पढ़ी.
पिछले दो दिन पूरी तरह
आराम किया फिर भी अभी खांसी ठीक नहीं हुई है, सो आज भी घर पर ही रहेगी, संगीत
क्लास अगले हफ्ते से ही शुरू होगी. साढ़े आठ बजने को हैं, जून हिदायत देकर गये हैं
कि वह ज्यादा काम न करे, वह चाहते हैं कि पूरी तरह स्वस्थ हो जाये तभी अपनी
सामान्य दिनचर्या अपनाये.
कल शाम वह बहुत दिनों बाद
टहलने गयी, मौसम में हल्की ठंडक थी, शेफाली के फूलों की हल्की गंध भी थी. लोगों के
झुंड पूजा देखने जा रहे थे. आज भी पूजा की छुट्टी है. नन्हे का स्कूल शनिवार को
खुलेगा, जून का दफ्तर भी, यानि अगले तीन दिन उनके पास हैं अपनी मनमर्जी के मुताबिक
बिताने के लिए. कुकर में काले चने उबालने के लिए रखे हैं, गैस कम करने के बावजूद
कुकर की सीटी है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही, कभी-कभी सामान्य सी लगने वाली
बात भी कितना irritate कर जाती है. अभी कपड़े धोने हैं और सब्जी बनानी है. जब भी वह
काले चने की सब्जी बनाती है तो ननद व सासु माँ के बनाने का ढंग याद आ जाता है. ढेर
सारे प्याज, पिसे हुए अलग और कटे हुए अलग, जीरा भी पिसा होने के साथ-साथ साबुत भी,
ढेर सारा धनिया पाउडर, और उबने के बाद चनों को मसाले में भूनना. उसका तरीका बिलकुल
आसान है. कल सुबह ससुराल से फोन आया था, उनके पत्र उन्हें मिल रहे होंगे पर जवाब
फोन से ही देते हैं. छोटी बहन के फोन का भी उसे इंतजार था. आज सुबह उठी तो मन में
कोई उत्साह नहीं था, एक नये दिन का स्वागत करे ऐसा कुछ भी नहीं था, बल्कि यह भावना
थी कि एक और पहाड़ सा दिन, फिर धीरे-धीरे दिनचर्या शुरू की तो रूचि जगने लगी और यह
बात भी याद आई कि इतना व्यस्त रहना चाहिए कि यह सब सोचने का वक्त ही न मिले, पर मन
तो हर वक्त अपने साथ रहता है जो यह याद दिलाता रहता है.