Monday, April 28, 2014

विश्वकर्मा पूजा का भोज


Today again she is alone at home at this hour, Nanha and Jun both went to their respective destinations at 6.30 am. Weather is hot and she is feeling it. It is hot and stuffy so is her mind and so are her clothes. Mind is not as fresh and spirit is not as calm, something is troubling her either it is heat or something concerned with mind. But just she read, mind is not everything, also read some useful ways to avoid worries and start living meaning fully. But all the kings horses and all the king’s men can not join her broken heart… Last night she saw a dream, mother is going and she gave her pink sari, and one more thing in the dream was about the women of the house, they all used to show their gratitude by wailing when their men brought them new clothes, men were so puzzeled they stopped bringing any new garments. It was a strange dream.

उम्र के इतने पतझड़ देखने के बाद (वसंत भी तो) भी आज तक वह यह नहीं समझ पायी कि उसे क्या करना चाहिए या उसे क्या पसंद है या वह क्या अच्छी तरह कर सकती है, एक उहापोह की स्थिति हर वक्त मन में बनी रहती है, लगता है जैसे जो कुछ वह कर रही है अर्थयुक्त नहीं है बल्कि कुछ और है जिसे करने पर उसे पूर्ण संतुष्टि का अहसास होगा. यह अहसास भी सताता है कि अपने समय का सदुपयोग नहीं कर रही है, कर पा रही है. पढ़ाना उसे पसंद है और नन्हे को पढ़ाने का समय भी तय किया है लेकिन वह उन लोगों को पढ़ाना चाहती है जिनके पास साधन नहीं हैं. पर कहते हैं न कि इच्छा यदि दृढ़ हो, इरादे मजबूत हों तो राह खुदबखुद निकल आती है, उसके इरादे पानी के बुलबुलों की तरह होते हैं. उस दिन अपने आप से वादा किया कि रोज कुछ न कुछ लिखेग पर कल तो सारी दोपहर ‘करीब’ देखने में लगा दी. अच्छी फिल्म है शुरू में कुछ खास जम नहीं रही थी पर बाद में सभी का अभिनय अच्छा था. सही है कि टीवी और फिल्में वास्तविकता से दूर सपनों की दुनिया में ले जाती हैं, कल्पना की दुनिया में.. जहाँ सिर्फ ख्याल ही ख्याल होते हैं, हकीकत में होने वाले काम नहीं होते. पर वे ख्याल कभी-कभी असली जिन्दगी में काम भी तो आते हैं, प्रेम करना सिखाते हैं, जीने का नया अंदाज भी !


आज सुबह वे उठे तो वर्षा हो रही थी, बिजली चमक रही थी और बादल गरज रहे थे, मौसम मोहल हो गया है. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, जन्मदिन का उपहार बच्चों को दिया और कुछ देर बैठे, सखी ने पूछा क्या लिख रही हो, वह इतना ही बता पायी डायरी नियमित लिखती है. कल जून के दफ्तर में पूजा का भोज-प्रसाद ग्रहण करके वे दो बजे घर लौटे. वहाँ कई महिलाओं से कई दिन बाद मुलाकात हुई, इस तरह के get-together में बातचीत बड़ी formal सी ही रहती है फिर भी अच्छा लगता है लोगों के हाव-भाव देखना उन्हें सुनना. नन्हा देर से आया, उसकी वैन का ड्राइवर ज्यादा पी लेने के कारण अपनी चाबी खो बैठा था. इस पूरे इलाके में विश्वकर्मा पूजा पर पीने का रिवाज है, ड्राइवर अपनी गाड़ी की पूजा करते हैं और खुद ‘पानी’ पी लेते हैं. नन्हे का गणित का टेस्ट कल बेहतर हुआ, आज फिर उसका टेस्ट है, इस स्कूल में जाने के बाद से गणित में उसकी रूचि बढ़ी है. अपने इर्द-गिर्द नजर डाले तो ऐसा लगता है कि चीजों को सतही तौर पर जानना और उनमें गहरे उतरना दोनों बिलकुल अलग-अलग बातें हैं, गहरे उतरने में खतरा है पर असली स्वाद वहीं है, जीवन की तल्खियाँ हों या उम्मीदें, दोनों को आखिरी घूँट तक महसूस करना ही सच्चा जीवन है, उसने सोचा, यदि मन की बात माननी ही है तो इस कदर माने कि खुद को भूल जाए.

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