कल ही वह दिन था, जिसके लिए इतने दिन से तैयारी चल रही थी, वह
लगभग सारा दिन व्यस्त रही, सुबह का थोड़ा वक्त, दोपहर के दो घंटे और पूरी शाम वहीं
बीती, बल्कि रात्रि को लौटने में उन्हें आधी रात हो गयी थी. नन्हा गहरी नींद में
सो रहा था. उसने असम सिल्क की साड़ी पहनी और एक कमरे की चाबी भी उसे दी गयी थी,
जिसकी देखभाल उसे करनी थी. बहुत सी समर्पित सदस्याएं थीं जो बड़ी लगन से सब काम कर
रही थीं. आज फिर वह क्लब गयी और एक सखी से मंगाई लकड़ी की बड़ी मेज उनके यहाँ वापस
भिजवाने का प्रबंध किया. शाम को वहाँ बधाई देने जाना भी है, उन्होंने एक पुरस्कार
जीता है, तीन दिनों के लिए दो बड़ों और दो बच्चों के लिए मुफ्त गोवा यात्रा का
पुरस्कार.
आज उसे लग रहा है, जीवन एक
वफादार दोस्त की तरह हर पल साथ निभाता है. खुशियाँ देता है, उन्हें महसूसने की
सलाहियत भी और कितने नये किस्से कहानियाँ गढ़कर मन बहलाता है उसका असीम-अतीव अनोखा
स्नेह भाव, जो वह अंतर में भर देता है, कोमल भावनाएं, सिहरन और शांत हृदय की
हिलोरें, ऊपर उठने का मौका देती हैं. वह सम्भालता है अपने दोनों हाथों से संवारता
है आज और कल को, वह मौका देता है दानी बनने का और उसकी खुद की झोली में तो न जाने
कितने कितने उपहार भरे हैं, नीले आकाश पर टंके सितारे, हरी धरती पर चमकते मोती,
कोई अनोखा गीत और संगीत !
जीवन प्रतिपल बदलता रहता है,
यह नदी की उस धारा के समान है जिसमें गति है, स्पंदन है, गहराइयों और अनंत की चाह
है न कि उस तालाब के पानी की तरह जो अपनी सीमाओं में बंधा हुआ है.
आज नन्हे ने कहा परीक्षाएं
आने वाली हैं, वह घर में ज्यादा पढ़ सकता है, सो स्कूल नहीं जायेगा, पर उस समय भूल
ही गया कि आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता होनी थी. उसकी छात्रा का कोर्स भी पूरा
हो गया है. आज संगीत कक्षा उनके घर में होगी. सुबह जून के जाने के बाद समाचार
सुने, वही चुनाव सम्बन्धी और उत्तर प्रदेश के संवैधानिक संकट के समाचार, फिर zee
पर सुधांशु जी महाराज का प्रवचन आ रहा था, बहुत अच्छी बातें कहीं उन्होंने, अच्छे
भाव का मन में प्रस्फुरण होना कभी-कभी ही होता है सो ‘शुभस्य शीघ्रम’ का पालन करते
हुए उस कार्य का सम्पादन कर ही लेना चाहिए. सात्विक लहरें मन में यदा-कदा ही उठती
हैं जैसे वसंत ऋतु में वाटिका से उठने वाली सुवासित पवन ! पौधों को सहेज रही थी कि
जून आ गये, आज उन्हें जल्दी जाना था. कल फोन से घर पर बात की, सासु माँ की आवाज
ख़ुशी से भरी हुई थी, वहाँ इतनी परेशानियों को सहकर भी वे लोग खुश हैं, यह इन्सान
की जिजीविषा का ही तो परिणाम है, मानव मन की विचित्रता पर ही तो आज प्रवचन में कहा
गया - यह ऊंचा उठे तो आकाश की ऊँचाइयां भी कम हैं और गिरने को आये तो पाताल की गहराई
भी कम पड़ेगी.
कल सुबह जब सारे कार्य हो
गये तो जून की बात याद आयी कि वह घर पर पत्र लिख दे जिसमें सासु माँ को होली पर
साड़ी खरीदने के लिए कहना था, क्योंकि जो पार्सल उन्होंने भेजा था, खुला हुआ मिला
और साड़ी गायब थी. उसने एक के बजाय दोनों घरों पर पत्र लिखे. फिर कुछ देर टीवी पर ‘हम
पांच’ देखा, पूरी टीम बाँध लेती है और एक बार देखना शुरू कर दें तो पूरा देखे बिना
मन नहीं मानता. जून आज सुबह तीन दिनों के लिए ‘शिकोनी’ गये हैं, इस समय जोरहाट
पहुंचने वाले होंगे, नन्हा आज घर पर है, आज शिवरात्रि का अवकाश है. मौसम ठंडा है,
बादलों की वजह से पूरे घर में बल्ब जल रहे हैं. माँ होतीं तो पीछे आंगन में या
बरामदे में चारपाई पर बैठतीं कि सुबह हो गयी है इसका पता तो चले.
जून के बिना यह शाम कितनी
सूनी-सूनी लग रही है, दिल है कि बैठा जा रहा है, हाथ-पाँव ठंडे हो रहे हैं और
आँखें पता नहीं क्या तलाश रही हैं, मालूम नहीं था कि जून के बिना वक्त काटना इस
कदर भारी होगा, दिन भर तो ठीक ही रहा, नन्हे को पढ़ाने में कुछ टीवी देखने में गुजर
गया पर शाम...लम्बी हो गयी है, फोन भी नहीं मिला, यूँ शाम को उन्होंने फोन किया
था, नम्बर भी दिया था पर अभी करने पर नहीं मिला, कल सुबह बैक डोर पड़ोसिन के यहाँ जाना
है, शाम को मीटिंग है, सो बीत जाएगी, वैसे, कमेटी की मीटिंग में जाने का उत्साह
दिनोंदिन कम होता जा रहा है. अब उसे कोई ऐसा कार्य ढूँढना चाहिए जिसमें एक घंटा
आराम से बीत जाये और याद न सताये.