Wednesday, February 26, 2014

शिवरात्रि का अवकाश


कल ही वह दिन था, जिसके लिए इतने दिन से तैयारी चल रही थी, वह लगभग सारा दिन व्यस्त रही, सुबह का थोड़ा वक्त, दोपहर के दो घंटे और पूरी शाम वहीं बीती, बल्कि रात्रि को लौटने में उन्हें आधी रात हो गयी थी. नन्हा गहरी नींद में सो रहा था. उसने असम सिल्क की साड़ी पहनी और एक कमरे की चाबी भी उसे दी गयी थी, जिसकी देखभाल उसे करनी थी. बहुत सी समर्पित सदस्याएं थीं जो बड़ी लगन से सब काम कर रही थीं. आज फिर वह क्लब गयी और एक सखी से मंगाई लकड़ी की बड़ी मेज उनके यहाँ वापस भिजवाने का प्रबंध किया. शाम को वहाँ बधाई देने जाना भी है, उन्होंने एक पुरस्कार जीता है, तीन दिनों के लिए दो बड़ों और दो बच्चों के लिए मुफ्त गोवा यात्रा का पुरस्कार.

आज उसे लग रहा है, जीवन एक वफादार दोस्त की तरह हर पल साथ निभाता है. खुशियाँ देता है, उन्हें महसूसने की सलाहियत भी और कितने नये किस्से कहानियाँ गढ़कर मन बहलाता है उसका असीम-अतीव अनोखा स्नेह भाव, जो वह अंतर में भर देता है, कोमल भावनाएं, सिहरन और शांत हृदय की हिलोरें, ऊपर उठने का मौका देती हैं. वह सम्भालता है अपने दोनों हाथों से संवारता है आज और कल को, वह मौका देता है दानी बनने का और उसकी खुद की झोली में तो न जाने कितने कितने उपहार भरे हैं, नीले आकाश पर टंके सितारे, हरी धरती पर चमकते मोती, कोई अनोखा गीत और संगीत !

जीवन प्रतिपल बदलता रहता है, यह नदी की उस धारा के समान है जिसमें गति है, स्पंदन है, गहराइयों और अनंत की चाह है न कि उस तालाब के पानी की तरह जो अपनी सीमाओं में बंधा हुआ है.

आज नन्हे ने कहा परीक्षाएं आने वाली हैं, वह घर में ज्यादा पढ़ सकता है, सो स्कूल नहीं जायेगा, पर उस समय भूल ही गया कि आज स्कूल में निबंध प्रतियोगिता होनी थी. उसकी छात्रा का कोर्स भी पूरा हो गया है. आज संगीत कक्षा उनके घर में होगी. सुबह जून के जाने के बाद समाचार सुने, वही चुनाव सम्बन्धी और उत्तर प्रदेश के संवैधानिक संकट के समाचार, फिर zee पर सुधांशु जी महाराज का प्रवचन आ रहा था, बहुत अच्छी बातें कहीं उन्होंने, अच्छे भाव का मन में प्रस्फुरण होना कभी-कभी ही होता है सो ‘शुभस्य शीघ्रम’ का पालन करते हुए उस कार्य का सम्पादन कर ही लेना चाहिए. सात्विक लहरें मन में यदा-कदा ही उठती हैं जैसे वसंत ऋतु में वाटिका से उठने वाली सुवासित पवन ! पौधों को सहेज रही थी कि जून आ गये, आज उन्हें जल्दी जाना था. कल फोन से घर पर बात की, सासु माँ की आवाज ख़ुशी से भरी हुई थी, वहाँ इतनी परेशानियों को सहकर भी वे लोग खुश हैं, यह इन्सान की जिजीविषा का ही तो परिणाम है, मानव मन की विचित्रता पर ही तो आज प्रवचन में कहा गया - यह ऊंचा उठे तो आकाश की ऊँचाइयां भी कम हैं और गिरने को आये तो पाताल की गहराई भी कम पड़ेगी.

कल सुबह जब सारे कार्य हो गये तो जून की बात याद आयी कि वह घर पर पत्र लिख दे जिसमें सासु माँ को होली पर साड़ी खरीदने के लिए कहना था, क्योंकि जो पार्सल उन्होंने भेजा था, खुला हुआ मिला और साड़ी गायब थी. उसने एक के बजाय दोनों घरों पर पत्र लिखे. फिर कुछ देर टीवी पर ‘हम पांच’ देखा, पूरी टीम बाँध लेती है और एक बार देखना शुरू कर दें तो पूरा देखे बिना मन नहीं मानता. जून आज सुबह तीन दिनों के लिए ‘शिकोनी’ गये हैं, इस समय जोरहाट पहुंचने वाले होंगे, नन्हा आज घर पर है, आज शिवरात्रि का अवकाश है. मौसम ठंडा है, बादलों की वजह से पूरे घर में बल्ब जल रहे हैं. माँ होतीं तो पीछे आंगन में या बरामदे में चारपाई पर बैठतीं कि सुबह हो गयी है इसका पता तो चले.

जून के बिना यह शाम कितनी सूनी-सूनी लग रही है, दिल है कि बैठा जा रहा है, हाथ-पाँव ठंडे हो रहे हैं और आँखें पता नहीं क्या तलाश रही हैं, मालूम नहीं था कि जून के बिना वक्त काटना इस कदर भारी होगा, दिन भर तो ठीक ही रहा, नन्हे को पढ़ाने में कुछ टीवी देखने में गुजर गया पर शाम...लम्बी हो गयी है, फोन भी नहीं मिला, यूँ शाम को उन्होंने फोन किया था, नम्बर भी दिया था पर अभी करने पर नहीं मिला, कल सुबह बैक डोर पड़ोसिन के यहाँ जाना है, शाम को मीटिंग है, सो बीत जाएगी, वैसे, कमेटी की मीटिंग में जाने का उत्साह दिनोंदिन कम होता जा रहा है. अब उसे कोई ऐसा कार्य ढूँढना चाहिए जिसमें एक घंटा आराम से बीत जाये और याद न सताये.


Tuesday, February 25, 2014

काला कोट गुलाबी गुंचा


बाहर धूप तेज है पर कमरे में बैठने पर अभी भी ठंड लगती है, वह बरामदे की धूप में चटाई बिछा कर  बैठी है, पिता बाहर आंगन में फोल्डिंग कॉट पर लेटे हैं. माँ अंदर सोयी हैं, दोपहर की आधे एक घंटे की झपकी लेने के लिए. सुबह बड़े भाई का फोन आया, वे वहाँ स्टेशन पर आयेंगे, कल जून भी उन्हें फोन करेंगे जब ट्रेन यहाँ स्टेशन से छूट जाएगी. कल उसकी संगीत अध्यापिका ने फिर उसे टोका, उसे और अभ्यास करना होगा. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये उनकी नई डाइनिंग टेबल देखी, बहुत सुंदर है, हल्के लकड़ी के रंग की, सनमाइका का डिजाइन भी टीक का है, एक सुंदर कलात्मक वस्तु है जिसकी कीमत वक्त के साथ बढ़ती ही जाएगी.

जून अभी तक नहीं आए हैं, उसने मन ही मन हिसाब लगाया, दोपहर को क्लब के लिए गिफ्ट पैक करने हैं, पड़ोसिन सहायता करने आएगी, सेक्रेटरी के कहने एक जगह फोन करना है, एक रेडियो सिंगर महिला जो क्लब की मेम्बर हैं उनकी कव्वाली में कुछ शब्द ठीक करवाने के लिए, वैसे बहुत जोरदार कव्वाली है, पर सोचती है तो लगता है, फोन उन्हें करना चाहिए, एक दिन उनका गाना सुना था, वैसे उनका नाम पहले कई बार सुना है पर आमने सामने बात नहीं हुई, चाहने पर भी वह मन की बात कह नहीं पाती, उन्होंने जब कहा गिफ्ट उनके यहाँ रखवाने हैं, तो बजाय यह कहने के कि आप ड्राइवर को भेज कर मंगवा लीजियेगा, उसके मुंह से यही निकला कि क्लब जाते समय वे उनके यहाँ छोड़ जायेंगे. माँ-पापा के कल वापस चले जाने के बाद आज काफी अकेलापन महसूस हो रहा है. कुछ देर पूर्व एक सखी ने फोन पर सुझाव दिया कि उसे अपनी थकावट, उलझन और अनुत्साह को लिखकर दूर करना चाहिए. आज सुबह छह बजे उठे, पिछले एक महीने से उठते ही चाय पीने का जो नियम बन गया था आज छूट गया.  

पिछले तीन दिन नहीं लिख सकी, पहले दिन बंद था आसू द्वारा, वोटर लिस्ट में सुधार करने हेतु बन्द का आह्वान किया गया था. उसके अगले दिन सुबह नन्हे को पढ़ाने में बीती, शाम को क्लब गयी, रिहर्सल कर रही महिलाओं के लिए चाय का इंतजाम करना था. कल शाम को क्लब में ‘फ्लावर शो’ था, उसके बाद एक असमिया विवाह में जाने का मौका मिला, जहाँ दुल्हन स्वयं तैयार होकर सौंफ-सुपारी से भरा होराई लिए मेहमानों का स्वागत करती मिली. भोज में था गर्मागर्म भात, दाल और सब्जी. आज चुनाव का दिन है, पर कोई भी वोट डालते जाता नजर नहीं आ रहा है. देश में स्थायी सरकार बने यह सब चाहते हैं पर इसके लिए प्रयास करना कोई नहीं चाहता, सब एक-दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी थोपकर स्वयं दूर खड़े रहकर तमाशा देखना चाहते हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में हालात इतने बुरे नहीं थे. लोग उत्साहपूर्वक वोट डालने गये थे, पर इस बार भय व आतंक का ऐसा माहौल बन गया है, डरे हुए लोग और डर गये हैं, लोगों का खून पानी बन गया है. 

वर्षा रात से हो रही थी, अब भी हो रही है, ठंड वापस लौट आयी है.  सुबह भजन सुनने का समय नहीं था, ‘जागरण’ भी नहीं सुना, माँ-पापा थे तो सब सुनते थे. नन्हा समय पर तैयार हो गया था, वह बहुत समझदारी की बातें करता है, यूँ तो हर माता-पिता को अपनी सन्तान प्रिय होती है पर वह सचमुच गर्व करने लायक है. सुबह ‘शांति’ पांच मिनट के लिए देखा, लगा कि अंतिम एपिसोड है, सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है, इसी तरह जिन्दगी में भी उलझनें और परेशानियाँ आती है, फिर सब कुछ ठीक हो जाता है. आज उसने अपने और पड़ोसिन के घर से कुल मिलाकर तीस गुलाब की कलियाँ इकठ्ठी कर ली हैं अब प्रतीक्षा है तो एक कमेटी मेम्बर की जो इन्हें ले जाकर कोट में लगाने के लिए फ्लावर स्टिक के रूप में तैयार करेंगी. कल ‘हसबैंड नाइट’ है, अभी तक लेडीज ज्वाइन कर रही हैं, अब पौने दो सौ से ऊपर सदस्याएं हो गयी हैं. तैयारी ठीक चल रही है, उसके जिम्मे ज्यादा काम नहीं था, सारे गिफ्ट पैक कर दिए हैं. कल सुबह डोंगे आदि रिसीव करने हैं. जून उसे सुबह क्लब ले गये थे, दोपहर को फिर जाना था, अब वह पहले से ज्यादा समझने लगे हैं कि उसे हर हल में अब क्लब का काम भी करना है.  
                                                                                                                             





Saturday, February 22, 2014

बैटरी की चोरी


और आज उनकी बैटरी चोरी हो गयी, अर्थात उनकी मारुति कार की. चोर रात को दो बजे से थोड़ा पहले आया होगा, बड़ी सफाई से उसने कार का दरवाजा खोला और फिर बोनट. ‘आराम से किया काम है, सूझ-बुझ से निकाली गयी है’, ये दोनों वाक्य थे उस सिक्योरिटी ऑफिसर के जो देखने आया था कि बैटरी कैसे चोरी हुई. जून को आज सुबह-सवेरे ही मोरान जाना था, वह वहाँ से दो बार फोन कर चुके हैं. वह भी कितने ही फोन कर चुकी है. पहले सेक्रेटरी को फोन किया कि शाम को मीटिंग में नहीं आ पायेगी पर प्रेसिडेंट ने इसरार किया, उसे जाना ही चाहिए. इस महीने एक मीटिंग और है CMD आ रहे हैं, उसके बाद सम्भवतः तीन दिन का बंद है, चुनावों के बहिष्कार के लिए इस बंद का आयोजन किया गया होगा. उसका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं लगता, कल सुबह से ही उस बच्चे के पैर से बहता खून देखकर मन जैसे क्षत-विक्षत हो गया है, उसका असर तन पर भी पड़ा ही है. सुबह साढ़े चार बजे उठी, छात्रा पढ़कर गयी तब तक सब ठीक था, जून बाहर निकले और जब अंदर आये तो चेहरा फक था, वे सभी बाहर गये. चोर के निशान कहीं नहीं थे पर बोनट के अंदर की खाली जगह मुंह चिढ़ा रही थी. नन्हे ने कहा, गनीमत है गाड़ी नहीं गयी. वह सकारात्मक सोच सकता है, उसके लिए अच्छा ही है.

कल के घाव का दर्द अब कम हो गया है, वक्त के साथ इन्सान का मन बड़े से बड़ा दुःख भी सह सकता है. कल शाम आखिर उसे जाना ही पड़ा, लौटी तो जून बेहद थके हुए थे, दिन भर की यात्रा के कारण थकान हुई सो अलग, शाम को दो परिवार आ गये चोरी की बात सुनकर. मेहमान नवाजी की भी एक थकान होती है. उनका skit होगा या नहीं समय ही बतायेगा, लेकिन उसके लिए उसे घर की शांति भंग नहीं करनी चाहिए, इसे अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न नहीं बना लेना चाहिए. ईश्वर जो करेगा अच्छा ही करेगा. माँ-पापा के जाने में मात्र एक हफ्ता रह गया है, फिर वे तीनों रह जायेगे, अपनी छोटी सी दुनिया में. इन्सान के मन में कभी-कभी ऐसे विचार भी आते हैं जिन्हें वह खुद से भी छिपाना चाहता है. अपनी आजादी की कीमत पर वह कुछ भी नहीं चाहता. आज के भौतिकतावादी युग ने भीड़ में भी अकेले रहने की आदत डाल दी है, अथवा सवाल यह है कि उसे जो है वह नहीं जो नहीं है वह चाहिये.

आज सुबह की चाय पी ही थी, वह कुछ देर बैठकर उन लोगों से बातें कर रही थी, वे लोग चार-पांच दिन बाद जाने वाले हैं, हर वक्त यह बात मन में बनी रहती है कि अचानक पिता को कुछ घबराहट सी महसूस हुई, चक्कर आ रहा है कुछ ऐसे ही. वह तो बहुत डर गयी, दौड़कर पानी लेने गयी और जून को बताया, वह भी फौरन शेव छोड़कर आये और पिता को लेटने को कहा. तब तक वह थोड़ा ठीक महसूस कर रहे थे. जब से वे लोग आये हैं पहली बार ऐसा हुआ है बल्कि उन्होंने बताया कई साल पहले एकाध बार हुआ था.

आज धूप फिर भली लग रही है, हवा में ठंडक है इसलिए धूप का रेशमी स्पर्श भा रहा है. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, प्रोजेक्टर से इंग्लैण्ड व हालैंड में खिंची स्लाइड्स देखीं, बहुत सुंदर फोटो आये हैं, रगीन फूलों के चित्र, बिगबेन और बंकिघम पैलेस के चित्र, हालैंड के ट्यूलिप और अन्य फूल बेहद सुंदर थे, टेम्स पर बने पुल, जहाज से यात्रा, उन्नत देश ऐसे ही होते हैं. तभी तो जो भारतीय एक बार विदेश जाते हैं, वापस भारत की धूल भरी टूटी-फूटी सडकों पर लौटना नहीं चाहते. आज सुबह से सभी कुछ सामान्य रहा है, लेकिन कल रात कोकराझार में हुई बम विस्फोट की घटना से कुछ सोच सबके मनों में है. अगले हफ्ते तक ट्रेनस् सामान्य रूप से चलने लगेंगी या नहीं इसे लेकर.







Thursday, February 20, 2014

एड़ी का घाव


पता नहीं कैसे उसे कल या परसों याद नहीं आया कि मीटिंग की तैयारी के लिए दो जनों को फोन करने हैं. आज सुबह नाश्ता करते समय अचानक मन में खटका हुआ और नतीजा यह कि पहले ने शिकायत की, एक दिन पहले बोल देने से उसे सुविधा होती है. शिकायत कैसे सुन लेता मन, झट प्रतिक्रिया की कल भी फोन किया था. बाद में स्मरण आया अपनी आत्मा पर एक धब्बा और लगा लिया जिसे छुड़ाने के लिए न जाने कितने जन्म और लेने पड़ेंगे. सेक्रेटरी हर बार एक से अधिक बार फोन करके याद दिलाती हैं इस बार उन्होंने भी याद नहीं दिलाया. अभी कुछ देर पहले ही वह क्लब से आ रही है, हॉल बिलकुल गंदा पड़ा था, पर उस व्यक्ति ने बताया शाम तक हो जायेगा. वह साइकिल से गयी थी, खोलते समय उसका लाक टूट गया, अनाड़ी है वह जिन्दगी के खेल में अभी.

आज शाम से skit की रिहर्सल शुरू होनी है, कल की मीटिंग अच्छी रही, पर व्यर्थ में ही बहुत समय लग गया. डॉ बरुआ ने महिला स्वास्थ्य पर एक लेक्चर दिया, HRT के बारे में बताया यहाँ के अस्पताल में भी इसकी सुविधा है उसे जानकर आश्चर्य हुआ. वह लौटी तो जून का चेहरा उतरा हुआ था, उसने सोचा यदि रोज-रोज जाना पड़े तो क्या होगा..खैर..जो होना है वह होगा ही. नन्हे की पढ़ाई आजकल जोर-शोर से चल रही है. उसे ‘ऊर्जा संरक्षण’ पर आयोजित चित्रकला प्रतियोगिता में भाग लेना है.

शाम हो गयी है, पिता कैसेट सुन रहे हैं, माँ किताब पढ़ रही हैं. वह एक क्षण भी खाली नहीं बैठ सकतीं. उसके और जून के लिए स्वेटर बना दिए हैं, उनके जाने में केवल दस दिन शेष रह गये हैं. उसने सोचा अब तक तो उन सभी को एक-दूसरे के साथ रहने का अभ्यास हो गया है. कितना कुछ मिल रहा है उनके साथ से, और वे उन्हें क्या दे रहे हैं बस थोड़ा सा स्नेह और सम्मान ! उसने सोचा वह भी स्वेटर के कुछ डिजाइन सीखेगी. आज सुबह राग आसावरी पर आधारित एक गीत का अभ्यास किया, अभ्यास ठीक ही रहा पर अभी तक सुर सधे नहीं हैं. पता नहीं वे लोग कैसे होंगे जो पूरी तरह अपने कार्य से संतुष्ट होने का सुख अनुभव कर पाते होंगे, उसके जीवन में एक पल तो ऐसा आये जब अपने कार्यों से पूरी तरह संतुष्ट हो पाए.

हवाई जहाज का तेज शोर ! आज बहुत दिनों बाद घर के ऊपर से उडकर कोई प्लेन गया है. कल से बसंत का मौसम शुरू हो गया है. जून के एक मित्र ने माँ-पापा को भोजन पर बुलाया है, पर पिता का कहना है कि वे लोग तो चले जायेंगे फिर ये लोग कहाँ मिलेंगे और उनके खिलाये अन्न का ऋण लेकर वह जाना नहीं चाहते, उनका ऋण कोई और चुका देगा इसका उन्हें विश्वास नहीं है, न ही वे इतनी निकटता किसी के साथ महसूस करते हैं. जल में रहकर जैसे कमल उसमें लिप्त नहीं होता उसी तरह अपने परिवार से भी वह लिप्त नहीं हैं. यही उनकी शांति का सबसे बड़ा कारण है.

आज सुबह नैनी के बेटे को एक कुत्ते ने बुरी तरह से काट लिया. इतनी बुरी तरह से किसी जानवर का काट खाना उसने पहली बार देखा है, खून से लथपथ एड़ी और घाव के गहरे निशान, वह बुरी तरह से चिल्लाया, सोच कर भी कंपकंपी होती है कि...ईश्वर ने साथ दिया जून फोन पर मिल गये और समय पर अस्पताल ले जा सके. उसका मन देर तक सामान्य नहीं हो पाया, भूख भी जैसा गायब हो गयी. और नैनी पर क्या बीत रही होगी, वह अंदाजा लगा सकती है, हँसता-खेलता बच्चा घर में बंद होकर रह गया है.







धूप के कतरे


क्लब की प्रेसीडेंट का फोन आया, उन्होंने कार्यक्रम की थीम के लिए कुछ नाम पूछे, वह फोन पर बहुत विनम्रता से, मधुर आवाज में बात कर रही थी. उसने कुछ शब्द बताये, आड़ोलन, आह्वान, आह्लाद, स्फुरण, स्पंदन, समन्वय, तारतम्य, अनुराग, शुचिता, अनुरक्ति, मकरंद, पराग, किसलय आदि, पर कोई भी शब्द उनके दिल को स्पर्श नहीं कर सका. आज नन्हे ने सुबह उठने में फिर नखरे किये, ठंड में बिस्तर से निकलने का उसका मन ही नहीं था. उन्होंने टीवी पर एक साथ बैठकर क्रिकेट मैच देखा, भारत ने पाकिस्तान को हरा कर बांग्लादेश का independence cup  जीत लिया.

रात्रि के पौने दस बजे हैं, सुबह से लिखने का समय अब मिला है, वह भी उसने चुराया है, जून तो सो जाने को ही कह रहे हैं. आज दिन अच्छा था, सुनहरी धूप से भरा हुआ. एक दिन की धूप से ही ठंड कम हो गयी है. संगीत की कक्षा ठीक रही पर उसे लगता है जितना सहज होकर वह  अभ्यास करती है वहाँ वह सहजता खो जाती है. अगले हफ्ते उनका हारमोनियम भी आ जायेगा. सुबह माँ ने कपड़े प्रेस कर दिए थे. उसने नाश्ते में पोहा बनाया था, उन्हें पसंद आया, माँ-पापा को भी यहाँ रहना अच्छा लग रहा है, और उनका जीवन भी पहले से कहीं ज्यादा भरा हुआ हो गया है. उसने ध्यान दिया है कि आजकल मन एक अलग तरह से शांत रहता है. बैकडोर नेबर के यहाँ गयी, जिसने घर में ही ब्यूटी पार्लर खोला है, पर वहाँ वह ‘मिस इंडिया’ की माँ का फेशियल करने में व्यस्त थी, उनके गर्व भरे शब्दों व उनकी बेटी की बातें उनके मुंह से सुनीं, TOI में उसका फोटो भी देखा. पहली बार असम की कोई सुन्दरी प्रतियोगिता में विजयी हुई है. शाम को उनकी मीटिंग सामान्य रही, इतने से काम के लिए सभी area coordinators को बुलाना व दो घंटे बिठाए रखना सार्थक नहीं लगा, खैर ! अभी तक भी थीम के लिए सही शब्द नहीं चुना जा सका है, महिलाओं से सम्बन्धित ऐसा शब्द उन्हें चाहिए जो उनके बारे में सब कुछ कहता हो !

जून अभी-अभी गये हैं छाता लेकर, सुबह से जो बादल झींसी के रूप में बरस रहे थे अब तेज हो गये हैं. आज भी पार्लर का अनुभव कुछ अलग ही रहा, एक तो समय बहुत लगाया, दूसरे घरों में काम करने वाली चार-पांच लडकियाँ भी आ गयीं, उस छोटे से कमरे में इतने लोग, क्यों न हों, आखिर वे उसकी क्लाइंट थीं. माँ सुबह से जून के स्वेटर में डिजाइन डालने का प्रयास कर रही थीं, काम चाहे कठिन हो अगर उन्हें विश्वास हो कि कर सकेंगी तो वह उसे छोडती ही नहीं हैं और अगर थोड़ा सा गलत हो जाये तो पूरा खोलने में जरा भी हिचकिचाती नहीं हैं. दोपहर को टीवी पर दूर दर्शन के धारावाहिक देखती हैं, औरत, अपराजिता और वक्त की रफ्तार....आदि. पिता दिन भर कुछ न कुछ पढ़ते रहते हैं, लाइब्रेरी से वे किताबें लाये थे, एक लता मंगेशकर पर लिखी किताब दूसरी सरदार पटेल के जीवन पर. शाम को जून उन्हें सांध्य भ्रमण पर ले जाते हैं. उसने सोचा, जून हैरान होते होंगे यह देखकर कि आजकल नूना दोपहर के भोजन से पहले फल और बाद में कोई स्वीट डिश वह कितने आराम से खा लेती है, इन्सान का बचपन साये की तरह सदा उसके साथ लगा रहता है.

नेता जी का जन्मदिन, आज धूप सुबह से ही भरपूर निकली है, जमीन का कतरा-कतरा धूप से भर गया है. दोपहर उन्होंने लॉन में गुजारी, घास पर फूलों के बीच, मगर सूरज की तरफ पीठ करके. नन्हा आज सर्दी खांसी के कारण स्कूल नहीं गया था. जून का फोन आया है, वह उसे डॉ के पास ले जाने आ रहे हैं. एक परिचिता अस्पताल में है, उसने सोचा वह भी उसे देखने चली जाएगी.

पिछले दो-तीन दिन डायरी नहीं खोली, इतवार को वे तिनसुकिया गये थे, माँ-पापा ने केन का कुछ सामान खरीदा और कुछ तांत की साड़ियाँ भी. उसका चिर-प्रतीक्षित हारमोनियम खरीदने का स्वप्न भी पूरा हो गया, पर अभी उँगलियाँ अभ्यस्त नहीं हो पा रही हैं, संकोच वश पूरी आवाज से गा भी नहीं सकी, सभी लोग घर में थे. कल छब्बीस जनवरी का अवकाश था, टीवी पर ‘सरदार बेगम’ देखी, श्याम बेनेगल की एक फिल्म. आज सुबह उसने बहुत दिनों बाद statistics पढ़ाई. हिंदी का कोर्स समाप्त हो गया है. उस दिन बहुत दिनों बाद असमिया सखी आई, पहले की तरह कुछ नुक्ताचीं और कुछ प्रशंसा के भाव से भरी...कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, वे यहाँ के जीवन से अन्तुष्ट हैं, कहीं भी और जाना चाहते हैं, पर उसे यह स्थान पसंद है, यहाँ की हवा, मिटटी, सुगंध सभी कुछ ! उसकी खुशियाँ उसके विचारों और कार्यों पर आधारित हैं न कि किसी बाहरी वस्तु पर.








Wednesday, February 19, 2014

ऊन के लच्छे


बस दो घंटे और प्रतीक्षा, फिर जून उन्हें लेकर आ जायेंगे. आज अब तक का दिन मिला-जुला व्यतीत हुआ है. धूप का कहीं पता नहीं था दिन भर. जून के फोन से पता चला कि ट्रेन रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे आई थी यानि पूरे सात घंटे लेट. सुबह नैनी आने में देरी कर रही थी, शायद उसकी तबियत ठीक नहीं थी, बाद में वह अपने बेटे को लेकर आई, उसी ने बर्तन धोये, बहुत काम जानता है वह. लेकिन उसके न आने से वह कितना परेशान हो गयी थी, अब कल से काम भी बढ़ जाने वाला है, ऐसे में यदि वह काम पर न आए तो...इसका अर्थ हुआ वह उस पर पूरी तरह आश्रित हो गयी है. भविष्य में किसी भी समय उसक चले जाने के लिए मन को तैयार रखना चाहिए  कल रात स्वप्न देखा कि सुबह उठ नहीं पायी है, कुछ भी काम नहीं हुआ है और सब आ गये हैं, सुबह उसकी छात्रा अपने साथ बीहू पर बनने वाले ‘पीठे’ लायी थी, उसकी माँ ने बड़े स्वादिष्ट ‘पीठे’ बनाये हैं, पहली बार उसे असम का चावल और तिल व नारियल से बना यह व्यंजन खाकर संतुष्टि हुई, नाश्ते में वही खाए. आज रियाज भी किया, ‘खमाज’ की सरगम सिखाई है अध्यापिका ने. उस दिन लाइब्रेरी से जो किताबें लायी थी अभी पढ़नी शुरू नहीं की हैं, बिमल राय की पुस्तक यकीनन अच्छी होगी और चेखव के नाटक भी.

कल रात्रि से शुरू हुई वर्षा अभी तक रुकी नहीं है. इस समय टीवी पर ‘गोपी गीत’ आ रहा है, मुरारी बापू जी के वचनों में बहुत मधुरता है, प्रभाव है. रात को नींद ठीक से आई, एक स्वप्न में नन्हे की पेटिंग जो फट गयी थी, एक सखी के साथ ठीक कर रही थी. कल शाम माँ-पापा आ गये, बहुत सारा सामान लाये हैं और उन तीनों के लिए वस्त्र भी. छोटी बहन ने उनके लिए कागजी नींबू भेजे हैं, नन्हे के लिए कुछ सामान और अपनी छोटी बिटिया की एक तस्वीर भेजी है, छोटी भाभी ने ने अपने मकान के मुहूर्त के उपलक्ष में अपनी माँ की तरफ से उपहार भिजवाया है.

आज माघ महीने का प्रथम दिन है, यानि माघी, उत्तर भारत में इसी को ‘खिचड़ी’ कहते है, आकाश में पतंगें ही दिखती हैं, जो बड़े उल्लास से उड़ाई जाती हैं. आज बीहू का अवकाश है, सुबह नाश्ते के बाद जून सबको बाजार ले गये फिर अपना दफ्तर दिखाने भी. अब दोपहर के साढ़े बारह बजे हैं, पिता असमिया का अपना आज का पाठ पढ़ व लिख रहे हैं और माँ कादम्बिनी पढ़ रही हैं. जून outlook पढ़ रहे हैं और नन्हा साइंस का गृह कार्य कर  रहा है. मौसम ठंडा है पर वर्षा न होने के कारण रोशनी काफी है. कल शाम उन्होंने लोहड़ी जलायी थी, दो मित्र परिवार भी आए थे, मूंगफली और रेवड़ी का प्रसाद बांटा.

आज ठंड थोड़ा कम है, कल शाम को कोहरा घना था. शाम को एक मित्र परिवार आया, माँ-पापा ने उन्हें ‘योग-वशिष्ठ’ की चर्चा सुनाई. रात्रि के भोजन में उसने चने की सब्जी और बैंगन भाजा बनाया था. जून इस समय पिता को लेकर तिनसुकिया गये हैं, वापसी की टिकट कराने और थोड़ी बहुत शापिंग करने भी. माँ उसे परिवार के अन्य सदस्यों भाइयों- भाभियों व उनके बच्चों की कई बातें बताती रहती हैं. बनते-बिगड़ते सबंधों, कभी खटपट कभी मेल की बातें, सुनकर अच्छा भी लगता है फिर उनकी व्यर्थता पर खीझ भी, पर दोनों ही क्षणिक होते हैं, जीवन इनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, प्रकृति की कोमलता व स्निग्धता, फूलों का वैचित्र्य, मानव मन की अथाह गहराई, ईश्वर की सर्वव्यापकता और फिर भी उसका छिपे रहना, कितनी ही बातें हैं जो मन को बांधे रखती हैं.
आज मौसम और भी ठंडा हो गया है, ठंडी बर्फीली हवा और रुक-रुक कर बरसता पानी भी. शाम होने को है पर अँधेरा हो गया है. सुबह वे जल्दी उठे पर माँ-पापा उससे भी पहले उठ चुके थे, चाय पीने की तयारी में थे. उनके यहाँ रहने से बहुत अच्छा लग रहा है. जीवन के प्रति उत्साह बढ़ गया है, घर अपना और अपना लगने लगा है. शाम होते ही कहीं जाने की ललक अब पैदा नहीं होती. जून पिता के साथ लाइब्रेरी गये हैं, माँ ने आज सुबह जो स्वेटर खोल दिया था, उसके लच्छों को भाप दिलाकर गोले बना रही हैं.


Tuesday, February 18, 2014

राजस्थानी रजाई


आज उसके लिए एक अहम् दिन है. लेडीज क्लब की प्रेसिडेंट और सभी मेम्बर्स शाम को उनके यहाँ मीटिंग के लिए आने वाले हैं. planning तो की है पर सब कुछ ठीक-ठाक रहेगा थोड़ा शक है. पहली बार इस तरह का अनुभव होगा. जीवन के अनेक अनुभवों में से एक ! कम्पनी के मुख्य अधिकारी की पत्नी भी जो मृदुभाषिणी हैं, आएँगी. आज सुबह के कार्यों में से न तो व्यायाम किया ( जो दिन भर व्यस्त रहने में अपने आप ही होने वाला है) न ध्यान, और ध्यान टिकता भी कैसे, हर वक्त तो मन को यह करना है, वह करना है के सिगनल सुनाई पड़ते, हर वक्त इधर-उधर के कार्यों की इतनी फ़िक्र लगी रहती है, स्थिर मन हो ईश्वर का स्मरण करने का सुअवसर कभी हाथ नहीं आता. दीदी के खत में लिखा है कि इस जन्म में तो ईश्वर सान्निध्य मिलना दुर्लभ है, कुछ कर लें. न करें तो अधूरापन, यह भावना स्थिर होकर बैठने नहीं देती, राजयोग और कर्मयोग में तो कर्मों के द्वारा भी ईश्वर प्राप्ति का मार्ग सुझाया गया है. वे क्षत्रिय वंश के हैं फिर ब्राह्मणों की तरह घंटों ध्यान में नहीं बैठ सकते, लेकिन हर छोटे-बड़े संकट में ईश्वर का स्मरण झट हो आता है, लगता है वह कहीं आस-पास ही है, उसके स्नेह भरे हाथ का स्पर्श, उसके स्नेह की गर्माहट महसूस होती है, लगता है दुनिया का कोई भी संकट आ जाये सह लेंगे क्यों कि ईश्वर उनका रक्षक साथ है.

आज बंद है, अल्फ़ा ने राज्य बंद घोषित किया था जो पूरी तरह सफल रहा. सुबह से एक भी गाड़ी जाती हुई नहीं दिखी. कल रात नींद गहरी नहीं थी, दिन भर की थकावट, फिर शाम का कार्यक्रम, जो कमी रह गयी थी वह याद आ रही थी, जो तारीफ मिली वह नहीं. खैर, समय के साथ इस मीटिंग की सुखद स्मृतियाँ ही साथ रह जाएँगी. कल उसकी पड़ोसिन ने सहायता की अच्छा लगा, उसने अपनी छात्रा को भी गाजर का हलवा और सैंडविच खिलाये, उसने तारीफ की उसी पर विश्वास हुआ. दोपहर को कुशन कवर सिले. सेक्रेटरी ने हसबैंड नाइट के लिए सभी एरिया coordinators को फोन करने कहा है, कम से कम एक घंटा लगेगा. क्लब के इस काम में कम से कम फोन से बात करने में तो एक्सपर्ट हो जाएगी. आज धूप मद्धिम सी है, उत्तर भारत का कोहरा यहाँ तक आ गया है. नन्हा मित्रों के साथ खेल रहा है और जून उस पेपर को पढ़ रहे हैं जिसे उन्हें फरवरी में present करना है. डिपार्टमेंट में उनका प्रेजेंटेशन संतोष जनक नहीं रहा था पर पहले इस तरह तैयारी भी नहीं की थी, उसने तो स्वयं को जिन्दगी के मैदान में loser मान ही लिया है पर नन्हे और जून को ऐसा नहीं करने देगी.

जून आज गोहाटी गये हैं, नाईट सुपर की ठंड से बचने के लिए राजस्थानी रजाई ले गये हैं. शाम को उन्हें पडोस से आई मूली के परांठे बना कर दिए, बहुत कोमल मूली थी. आज सुबह भी कोहरा काफी था और आज वे सारे काम भी हो गये जिनके लिये सिविल डिपार्टमेंट में कहा था, स्टोर में कोट हैंगर लगाना, झूले और सिस्टर्न पर पेंट का काम. एक मित्र के यहाँ से फोल्डिंग कॉट भी आ गयी. आज हिंदी कोर्स की पहली पुस्तक पढनी शुरू की है, पहले कोर्स में कुल बीस इकाई हैं, बहुत विस्तृत कोर्स है.

आज इतवार है, दिन भर व्यस्तता में गुजरा. इस समय रात्रि के दस बजने वाले हैं, जून के फोन दिन में तीन बार आए पर अभी तक माँ-पिता के गोहाटी आने की खबर नहीं मिली. राजधानी का इंजन बोगाई गाँव के पास खराब हो गया था. कल सुबह उठते ही जून का फोन आएगा, कल शाम को वे सब आ भी जायेंगे, सचमुच उन्हें कष्ट तो हुआ है, यात्रा कभी-कभी ही आरामदेह होती है.

 


Monday, February 17, 2014

पंजाबी ढाबा


अभी नई डायरी नहीं मिली है, पिछले साल की डायरी के एक खाली पन्ने में लिख रही है. सुबह से कुछ समय एक-दो फोन करने में और कुछ इधर-उधर का काम करते-करते ही ग्यारह बज गये. नैनी और उसके बेटे की सहायता से सामने के बरामदे के गमलों की साफ-सफाई भी करवाई. नन्हे की स्कूल बस नहीं आई, वह स्कूल नहीं जा पाया. बहुत देर से पढ़ाई कर रहा है, ऐसा वह इम्तहान के दिनों में ही करता है. आज क्लब में देर से जाना है, पिछले चार-पाच दिनों से रोज ही वे क्लब जा रहे हैं, आज ‘पंजाबी ढाबा’ है. कल सुबह भी उसे क्लब जाना है डेकोरेशन के सिलसिले में मदद करने, परसों अंतिम दिन है. उस दिन बहुत लोग आएंगे, साल भर लोगों को इस दिन का इंतजार रहता है. पर्दे सिलने का काम कल दोपहर शुरू कर दिया था, जो कल पूरा हो जायेगा.  

जून आज नीले रंग की नई डायरी ले आये हैं, हर पन्ने पर एक सुंदर वाक्य भी लिखा है. आज भी उसका काफी समय क्लब में गुजरा, एक सीनियर मेम्बर के साथ फूलों की सज्जा करने में और कुछ उनकी मिनट-मिनट पर बदलने वाले ideas सुनने में, वह परफेक्शन चाहती हैं और बाकी के लोग उनके साथ चल नहीं पाते, लेकिन कुल मिलाकर परिणाम अच्छा रहा सभी ने तारीफ की, वापसी में उन्होंने उसे घर भी छोड़ा. दोपहर को जब आई तो जून का चेहरा उतरा हुआ था, नन्हे को भी स्कूल से आकर उसका घर में न रहना अखरा और उसने कह दिया, आजकल आपका ज्यादा वक्त क्लब में ही गुजरता है. कल शाम अचानक पंजाबी दीदी के पतिदेव आ गये, उनका वही पुराना तरीका है बातें करने का, पर वह अपने साथ कोलकाता की छेने व खोये की मिठाई लाये हैं. उन्हें परसों रात्रि भोजन पर बुलाया है, उसे अपनी पाक कला को संवारने का मौका मिलने वाला है.

आज धूप उजली थी और हवा हल्की सी. वे दोपहर को ड़ेढ़ बजे क्लब गये और चार बजे लौटे, शाम को पुनः गये, पत्रिका मिली, सुंदर चित्रों से सजी वार्षिक पत्रिका. नन्हा गृहकार्य कर रहा है जून सोने की तैयारी कर रहे हैं, वह उस skit के बारे में सोच रही है जो वह हसबैंड नाईट के कार्यक्रम के लिए लिख रही है. पात्रों का चरित्र अभी तक निर्धारित नहीं हो पाया है. विभिन्न भाषा-भाषी महिलाये हैं, तो उनकी कुछ चारित्रिक विशेषताएं भी होनी चाहिए. नन्हे को सुनकर हँसी आई इसका अर्थ है कि हास्य मौजूद है नाटिका में.

आज सुबह स्वप्न में माँ-पापा व छोटे भाई को देखा, माँ आधुनिका लग रही थीं और दो छोटे-छोटे बच्चों को खिला रही थीं शायद नन्हे और उसकी ममेरी बहन को. एक छोटी सी बिल्ली को भी देखा. सुबह जल्दी उठना था सो सपना टूट गया. हिंदी व्याकरण इतना विस्तार से तो उसने पहले कभी नहीं पढ़ा, पढ़ाते-पढ़ाते स्वयं भी काफी सीख रही है. कुछ देर पूर्व वह पड़ोस में किसी काम से गयी थी, लौटते समय पूसी उछलती-कूदती सी उसके पीछे लग गयी. घर आकर भी उसके पैरों से लिपट कर कुछ मांग रही है. इस नन्हे और मूक प्राणी को वह कैसे समझाये कि मानवों की कठोर दुनिया में उसके प्यार का कोई मोल नहीं है.

जून ने बताया, राजधानी अब डिब्रूगढ़ तक आती है, उन्हें सम्भवतः माँ-पापा को लेने गोहाटी न जाना पड़े, छोटे भाई को टिकट बढ़ाने के लिए कह दिया है. एक महीना वे उनके साथ रहेंगे. आज उनके विवाह की सालगिरह है. बहुत सारे फोन आ चुके हैं, माँ ने कहा, यात्रा में कष्ट तो होगा फिर भी वे आएंगे, सचमुच इतने सारे एक्सीडेंट की खबरें सुनकर तो यात्रा एक यातना ही लगती है, फिर उसी ईश्वर की ओर दृष्टि उठती है, वही रक्षा करेगा. सुबह ड्राइंग रूम की सफाई की, दोपहर को डाइनिंग रूम की, शाम को मित्रों के साथ विशेष चाय पी, जून ने सुबह सवेरे एक कार्ड दिया बेहद खूबसूरत और डेयरी मिल्क चाकलेट भी ढेर सारे प्यार के साथ. सुबह सभी कमेटी मेम्बर्स को फोन किये कल शाम को उनके यहाँ मीटिंग है.

 


Friday, February 14, 2014

उड़िया फेस्टिवल



आज क्रिसमस ईव है और एक मित्र के विवाह की वर्षगाँठ भी. शाम को उनके यहाँ जाना है, नन्हे को क्लब जाना है, जहां बच्चों को सांता क्लाज उपहार व स्नैक्स देते हैं. आज ही उनका कम्प्यूटर भी आने वाला है. कल शाम जून ने दीदी का पत्र दिया, वह आध्यात्मिक रूप से कहीं आगे हैं. उनकी सहनशक्ति कहीं ज्यादा है, उसे लगा, इस तरह तुलना नहीं करनी चाहिए, उनका दृष्टिकोण बिलकुल स्पष्ट है कहीं शंका की गुंजाइश नहीं जबकि वह इधर-उधर बिना पतवार की नौका की तरह डोलती रहती है. उसे उनके पत्र से कुछ जवाब तो मिले हैं पर कुछ नये सवाल भी खड़े हो गये हैं. कल जून ने शिकायत की कि उसके पास उनके लिए समय नहीं है. वह कर्त्तव्य मात्र समझकर किसी कार्य को करना नहीं चाहती पर उसे लगा जीवन में संतुलन के लिए ऐसा करना जरूरी है. कल उन्हें पिकनिक पर जाना है, दिसम्बर के महीने में गुनगुनी धूप में नदी के ठंडे पानी की छुअन, सोचकर अच्छा लगता है, माँ-पापा के आने पर उन्हें भी ले जायेंगे वे नदी के तट पर.

नये साल का आखिरी दिन...कभी तो यह साल भी नया ही था, हर वर्ष नया बनकर ही आता है और कल...यह इतिहास बन जायेगा. पिछले कई दिनों से वह कुछ नहीं लिख सकी, पिकनिक अच्छी रही, उसके अगले दिन जून तिनसुकिया गये उसके सिर में दर्द था. उनका एसी भी बनकर आ गया है. नन्हे के साथ सुबहें कैसे बीत जाती हैं पता ही नहीं चलता, आज उसके शीतावकाश का अंतिम दिन है. कल से यानि नये साल के पहले दिन से स्कूल खुल रहे हैं, जिसे आने में अब कुछ ही घंटों का वक्त रह गया है.

नये वर्ष की सुबह नशीली भी है और सुहानी भी ! सुबह अलसाये से सात बजे के थोड़ा बाद ही उठे, सभी को फोन पर नये वर्ष की शुभकामनायें दीं, सभी को उनके कार्ड्स भी मिल गये होंगे. एक उत्सव की तरह सेवइयों की खीर से नये वर्ष का स्वागत किया, उसे याद आया, धर्मयुग का विशेषांक निकलता था नये साल पर, अब तो उन्हें महीनों, वर्षों हो जाते हैं धर्मयुग पढ़े हुए. हिंदी की कोई पत्रिका वह इस वर्ष मंगाएगी, सृजनात्मक लेखन का कोर्स जो करना है. हसबैंड नाईट के लिए एक skit भी लिखनी है. पाठ और योगासन करने के बाद उसने मन ही मन संकल्प लिया है,  इन दोनों कार्यों के साथ साथ प्रतिदिन कुछ लिखेगी भी. अभी काफी काम पड़ा है लेकिन उन कामों के कारण अपने निजी कार्यों की बलि नहीं चढने देगी. जून अपनी कार को वैक्यूम क्लीन कर रहे हैं और नन्हा पास खड़े होकर खुद भी करने की जिद करके उन्हें झुंझला रहा है. कल रात जून ने प्रेस जाकर हिंदी की कम्पोजिंग का काम पूरा करा दिया. मेहमानों के आने में ग्यारह दिन का वक्त रह गया है, उसे सारे घर की सफाई करनी है और सिलाई का कार्य भी अभी शेष है. आज शाम को क्लब में ‘उड़िया टी’ का आयोजन किया गया है, उसकी उड़िया पड़ोसिन सुबह से तैयारी में व्यस्त है.




Thursday, February 13, 2014

कैरम की प्रतियोगिता


अभी-अभी सद्वचन पढ़ा पर अभी-अभी मन में नकारात्मक भाव आया. आज सुबह बिस्तर छोड़ने में ५-७ मिनट लगाये और उन क्षणों में मन में इधर-उधर के विचार आ रहे थे, उसकी आध्यात्मिक प्रगति एक कदम आगे बढ़ती है और दो कदम पीछे लौट आती है. ईश्वर की अनुकम्पा अभी उस पर नहीं हुई है. कल डायरी नहीं लिख सकी, लेडीज क्लब की कमेटी की उन सदस्या के घर गयी थी जिनके यहाँ से कल शाम मीटिंग से उसे जल्दी लौट आना पड़ा था, कुछ खाकर नहीं आई थी. घर में मेहमान आये थे और जून ने फोन करके उसे बुला लिया था. वह  गाना अच्छा गाती हैं, बताने लगीं, उनके सिखाये हए विद्यार्थी को सर्वोत्तम गायक का पुरस्कार मिला. उन्होंने उसे स्वादिष्ट नाश्ता खिलाया. आज आसू ने बंद की घोषणा की है, सो जून आधे रास्ते तक जाकर ही लौट आये हैं, उन्हें खाली समय बिताना भारी पड़ रहा है. किसी महिला को इस स्थिति से गुजरना नहीं पड़ सकता, They know and They know !

स्वामी योगानन्द जी कहते हैं ध्यान के द्वारा वे महाचेतना के स्तर तक पहुंच सकते हैं और उसके बाद ईश्वर निकट होता है. उसी ईश्वर ने आज सुबह उसे पांच बजे से ठीक पहले उठाकर बचा लिया वरना उसकी छात्रा को वापस लौटना पड़ता. आज मौसम बेहद ठंडा है, घने बादलों के कारण सूरज का कोई बस नहीं चल रहा, पूरे देश में हो वर्षा हो रही है. अभी-अभी कल होने वाली मीटिंग के सिलसिले में दो-तीन जगह बात की, जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, यहाँ लोगों से जान-पहचान बढ़ रही है, और जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है, स्वयं में जो वरिष्ठता या गरिमा का अहसास होना चाहिए था कम हो रहा है. दिल से वही छोटी ही बने रहना चाहती है छोटी बहन की तरह, अब तो उसने भी स्वयं को बदल लिया है, दूसरी बेटी की माँ बनने के बाद. ईश्वर अभी भी उतना ही दूर है, शायद यही एक प्यास है जो मानव को इधर-उधर भटकती है, मानव को ईश्वर ने बनाया फिर छिप गया. मानव अपने निर्माता को खोजता है, ढूँढ़ता-फिरता है पर वह कहीं नजर नहीं आता, ध्यान करने बैठती है तो सिवाय ईश्वर के इधर-उधर के सारे विचार गड्ड-मड्ड होने लगते हैं, फिर लगता है जो वस्तु है ही नहीं उसके पीछे भागना... यानि श्रद्धा डोलने बढ़ती है, घड़ी-घड़ी मन डांवाडोल क्यों होता है ? ऊर्जा संरक्षण पर कविता लिखनी है सो जून के आने तक के समय में ही पूरी कर लेनी चाहिए. आज नन्हा सुबह कोचिंग में नहीं जा सका, वह उसे नहीं उठा पायी, कुछ देर नाराज था फिर स्वयं ही ठीक हो गया पर उसे बहुत बुरा लगा, जो काम अन्यों के लिए इतने सरल हैं वह उसके लिए कितने मुश्किल हैं.

आज कई दिनों बाद लिख रही है, धूप में बैठकर तो शायद महीनों बाद लिख रही है, अभी सुबह के साढ़े आठ हुए हैं, धूप फिर भी तेज लग रही है. स्वच्छ वातावरण के कारण असम में धूप तेज होती है. पिछले दिनों बहुत कुछ घटा, उसने कैरम की प्रतियोगिता में भाग लिया, कई घंटे उसमें दिए पर फाइनल में नहीं पहुँची. नन्हा और जून उसकी वजह से परेशान भी हुए होंगे. इस वर्ष क्लब मीट पहले से ज्यादा उत्साह व धूमधाम से मनायी जा रही है. यहाँ National Tennis Championship भी खेली जा रही है. कल वे तिनसुकिया गये, माँ-पापा के आने से पहले घर को और सुंदर बनाना चाहती है इसी सिलसिले में कुछ खरीदारी की. नन्हे का स्कूल आजकल बंद है, वह अपने समय का सही उपयोग करना सीखे, अच्छी आदतें डाले यह ख्याल हर वक्त बना रहता है, जून भी अक्सर उसे समझाते हैं कई बार वह मानता है पर कई बार नहीं भी, यह उम्र ही ऐसी है बाद में पता चलता है कि जिन्दगी के कई कीमती वर्ष व्यर्थ ही गंवा दिए. आज उसका फलाहार है, पर सब्जी कटवाते वक्त याद नहीं रहा, अब एक सब्जी उसके रात्रि के विशेष भोजन की शोभा बढ़ाएगी. कल जून कार्ड्स लाये, पत्रों के जवाब का कार्य भी हो गया है, अब उसके सम्मुख नये साल से पहले नन्हे का स्वेटर पूरा करने का उद्देश्य है.



Tuesday, February 11, 2014

स्वामी योगानन्द का अनुभव


आज कई  हफ्तों बाद बुधवार को कपड़े धोने की मशीन लगाई, सर्दियों में नैनी को ठंड में जितने कम कपड़े धोने पड़ें उतना ही अच्छा है न, मशीन को तो ठंड लगती नहीं, आज ये बेसिर-पैर की बातें क्यों कर रही है. कुछ देर पहले एक सखी से बात की उसने किन्हीं परिचिता के स्कूल जाने की कही बात कही, सो मन का एक कोना फिर पंख फड़फड़ा रहा है, कितना हल्का है उसका मन, हवा के एक झोंके के साथ इधर-उधर चला जाता है. मान लेना चाहिए कि जून को किसी का भी तकलीफ उठाना पसंद नहीं है, पर उस ख्वाहिश का क्या करे जो लाख गहरा दबाने पर भी अंकुर सी उठ खड़ी होती है, तभी तो उनके पूर्वजों ने कहा है कि इच्छा ही सारे दुखों की जड़ है, न ख्वाहिश होगी न उसके अधूरा रहने की पीड़ा होगी. किसी को जो नहीं मिलता उसी की ख्वाहिश रहती है और जो मिल जाये उस की कद्र नहीं रहती, उसके पास ढेर सारा वक्त है और उसमें भरने के लिए कल्पना के रंग हैं, इस वक्त का सम्मान करना चाहिए और जून के प्रेम का भी. नन्हा आज सुबह साढ़े पांच बजे उठकर टेनिस कोचिंग में गया था और वापस आकर समय पर तैयार भी हो गया, स्कूल से आकर फिर कोचिंग और शाम को स्कूल से मिला गृहकार्य, उसकी दिनचर्या व्यस्त हो गयी है पर वह खुश है बेहद खुश ! 

आज सुबह नाश्ता करते समय याद आया, आज उसकी बंगाली सखी के विवाह की वर्षगाँठ है, उन्हें फोन करके शुभकामना दी, उन्हें भी यकीनन उतनी ही ख़ुशी हुई होगी जितनी उन्हें. आज धूप खिली है और वह पिछले बरामदे में बठी है, बरसों बाद जब वे यहाँ से चले जायेंगे तो यह घर और धूप याद आएंगे. आज जून भी सुबह जल्दी उठ गये थे, उन्होंने चाय पी और समाचार सुने साथ-साथ, वक्त गुजरने के साथ साथ उनके दिल एक-दूसरे के ज्यादा करीब होते जा रहे हैं. कल दोपहर को उन्होंने सउदी अरबिया के सपने देखे साथ-साथ, जहाँ के लिए जून ने apply किया है. कल उनका बायोडाटा देखा, पिछले पन्द्रह वर्षों में कई पेपर लिखे हैं, सब देखकर उसे गर्व हुआ. कल शाम एक मित्र परिवार आया अपने साथ बगीचे के ‘बनाना’ लेकर बहुत मीठे और पके हुए केले ! वह पूसी तो अब उनके परिवार की सदस्य ही बन गयी है, दोपहर भर दरवाजे के बाहर रहती है. कल रात तो बरामदे में उसके साथ एक और बिल्ली भी थी.

आज छोटे भाई की शादी की सालगिरह है, आज से नौ वर्ष पहले वह सिर्फ एक-दो दिन के लिए ही जा पाई थी उसकी शादी में. कुछ समय पूर्व ही ससुराल में दुखद घटना घटी थी. सुबह नन्हे को उठाने में दिक्कत हुई पर समय पर जा पाया. कल उस अंग्रेजी में सौ में से ९१ अंक मिले, पर उन्हें अभी भी कम लग रहे हैं, जो गलतियाँ उसने की हैं, वे नहीं करनी चाहिए थीं. उसके English teacher के कारण लिखाई जरूर सुधर गयी है, संस्कृत में भी उसने सफाई से काम किया है. उन्हें उस पर गर्व है. आज पीटीवी पर एक फनकार अफसाना निगार का इंटरव्यू सुना / देखा. वह नौकरी करते रहे और साथ-साथ लिखते भी रहे. उसे भी गौहाटी से आने वाले पत्र की प्रतीक्षा है जिससे रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा कोर्स की शुरुआत हो सके. कल दोपहर डाइनिंग टेबल पर बिल्ली के एक बच्चे को बैठा देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, उस पर बरबस ही स्नेह उमड़ आया पर आज वह दिखाई नहीं दे रहा, कहीं रात्रि की ठंड में उसे कुछ हो न गया हो? दोपहर उसे  हिंदी कक्षा के लिए भी जाना है, सो संगीताभ्यास अभी करना है. वैसे भी कविता लिखने के लिए सिवाय शीर्षक के अभी कुछ नहीं है, “आदमी और दरख्त”, अच्छा शीर्षक है न !

“हम ईश्वर को पा सकते हैं, उसे अनुभूति में उतार सकते हैं, वह हमारे सवालों का जवाब दे सकता है, ध्यान और मनन द्वारा हम उसके निकट जा सकते हैं.” कितने दृढ निश्चय के साथ ये सारे शब्द स्वामी योगानन्द ने कहे हैं, उन्होंने ईश्वर को पाया था, उससे साक्षात्कार किया था, वे भी यानि वह भी ऐसा अवसर पा सकती है, लेकिन उसके लिए दुनिया के सारे सुखों को भुलाकर ईश्वर में ही अपना सुख खोजना होगा, अपना सारा समय उसी में लगाना होगा, उसे दिल से प्यार करना होगा, उसे पुकारना होगा और यकीनन वह सुनेगा, वैसे भी उसने सदा विपत्ति में उसकी सहायता की है. आज सुबह नन्हा कोचिंग के लिए गया, कल शाम को वह नहीं जा पाया. वह उस पर क्रोधित हुई, थकान के कारण सम्भवतः वे दोनों झुंझलाए हुए थे, स्कूल से आते ही उसका स्वागत नहीं किया था क्यों कि वह भी उसी वक्त आई थी. अपने बाल सुलभ स्वभाव के कारण वह जल्दी ही भूल गया और पढ़ाई करने लगा.





Friday, February 7, 2014

संस्कृत की परीक्षा


आज बीच-बीच में धूप निकल रही है, वर्षा भी कल रात्रि से नहीं हुई. नन्हे की आज संस्कृत की परीक्षा है, वह स्कूल जाते वक्त थोड़ा घबराया हुआ सा लग रहा था, पर उसका इम्तहान अच्छा होगा, क्योंकि मेहनत तो की है. उसे पढ़ाते समय नूना को कठोर वचन नहीं बोलने चाहिए पर कभी-कभी अनजाने में कह जाती है, उसे भी लापरवाही से काम करना छोड़ना होगा, खैर.. जीवन भर इन्सान कुछ न कुछ सीखता रहता है. जून ज्यादा काम के कारण आज सुबह की तरह लंच के बाद भी जल्दी चले गये. उसने कुछ देर ध्यान किया पर ईश्वर से संवाद का अभ्यास न होने के कारण मन भटक कर संस्कृत पर आ गया. कल स्वेटर भी पूरा हो गया, आज से नन्हे का स्वेटर बनाना शुरू करेगी, एक महीने में यह भी बन जाना चाहिए. उसकी पीली साड़ी भी तैयार होकर आ गयी है, अभी पहनकर नहीं देखी, उस पर यह रंग अच्छा भी लगेगा या नहीं ? पिछले दिनों स्वयं पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया, व्यायाम नहीं किया, सम्भवतः इसी कारण या डाइटिंग की वजह से चेहरा कमजोर लग रहा है, पर डाइटिंग से एक लाभ अवश्य हुआ है, भारीपन की फीलिंग कम हो गयी है. गुलदाउदी के फूल खिलने शुरू हो गये हैं, गेंदा, गुलाब पहले से ही खिल रहे हैं, माँ-पापा के आने तक कैलैंडुला तथा फ्लॉक्स भी खिलने लगेंगे, उनका आना अभी तो एक स्वप्न ही लगता है जो कभी हकीकत बन जाये !

आज सुबह उसने पढ़ा, इन्सान को मूडी नहीं होना चाहिए, जो अनजाने में वह होती जा रही थी. ध्यान किया पर दस मिनट से ज्यादा नहीं कर सकी, चारों ओर से विचार आने लगे. कुछ देर पहले सेन्ट्रल स्कूल से एक अध्यापिका ने फोन किया, वह चाहती हैं नूना गणित पढ़ाने वहाँ जाये और तब से वही विचार मन में छाया है.

साल के अंतिम महीने का प्रथम दिवस ! आज धूप निकली है, इस वक्त वह संगीत कक्षा से आ रही है. वर्षों पहले बचपन में जब वह कक्षा छह में थी, संगीत कक्षा में दाखिला नहीं ले पायी थी, क्योंकि जिस दिन टेस्ट था वह अनुपस्थित थी. और फिर साल भर कला की कक्षा में बैठना पड़ा था. अजीब था वह स्कूल भी. पर आज ‘राग यमन’ सीख कर आ रही है, संगीत का कोई एक सुर तो ऐसा होगा जो उसके गले से निकल सकता है, ‘करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान’ ! हल्का दर्द है सिर में, जून होते तो फौरन एक कप चाय बनाकर ले आते. उन्हें उसका स्कूल में काम करना इसीलिए पसंद नहीं, वह उसे थका हुआ, नन्हे और स्वयं को उपेक्षित नहीं देखना चाहते. वह ऐसे ही खुश हैं जैसे वे लोग अभी हैं. उन अध्यापिका को उसने फोन नहीं किया तो उन्होंने स्कूल से फोन करके पूछा, उन्हें बुरा तो लगा होगा पर वह न के सिवा और कुछ कह ही नहीं सकती थी. नन्हे के स्कूल जाने के बाद उसने कुछ देर वह किताब पढ़ी जिसमें बहुत सरल भाषा में जीवन जीने का सही तरीका सिखाया गया है.

आज जून ने आधे दिन का अवकाश लिया है. कल उन अध्यापिका को मना करने के बाद से कई बार स्वयं से बात कर चुकी है मन ही मन. कुछ देर जून से भी बात की पर परिणाम वही रहा. अपने लिए जीने वाले सामान्य लोग ही तो हैं न वे, अपने आसपास की जरूरतें भी महसूस नहीं कर पाते, अपने परिवार व अपनी सुख-सुविधाओं से आगे कुछ सोच नहीं पाते, सीमित दायरा और सीमित सोच है, शायद इसीलिए अपनी सामर्थ्य सीमित जान पडती है, भरोसा नहीं होता अपनी शक्तियों पर, अपनी सही कीमत तक नहीं आंक पते. आज धूप आंखमिचौनी खेल रही है. पत्रिका के लिए पहली कविता व लेख मिला आज. बगीचे से एक पका हुआ पपीता भी मिला आज, उसे याद आया पिछली सर्दियों में बगीचे में घास पर फूलों के बीच बैठकर लिखती थी, उनकी महक का असर भी विचारों पर पड़ता ही होगा. कल वह ठीक से गा सकी पर बिना हारमोनियम के गाना बहुत मुश्किल है.




Wednesday, February 5, 2014

पूसी की आवाजाही


कल शाम वह क्लब की वार्षिक पत्रिका के लिए बुलाई गयी मीटिंग में गयी थी. उसे हिंदी सेक्शन का काम देखना है. जून उसे समय पर छोड़ आए और बाद में लेने भी आये, उसके मन में एक ख्याल आया यदि वह स्वयं कार चलाना जानती तो उन्हें परेशान न होना पड़ता. आज पुराने वर्षों की पत्रिकाएँ खोल-खोल कर देखीं, ताकि उन लोगों के नाम देख सके जो हिंदी में लिखते हैं, उन्हें इस वर्ष भी लिखने के लिए प्रेरित करने हेतु फोन किये, कुछ ने सकारात्मक जवाब दिए. सुबह उठते ही जून ने ट्रांजिस्टर चला दिया समाचार सुनने के लिए. कल रात्रि एक स्कूल बस की दुर्घटना की हृदय विदारक खबर सुनी. बाद में बस पानी में गिर गयी. उनके दिल लेकिन पत्थर के हो चुके हैं, इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी जिन्दगी वैसे ही चलती रहेगी, उन माँ-बाप के आँसू सूख जायेंगे और...यहाँ अपेक्षाकृत वे सुरक्षित हैं, ज्यादा ट्रैफिक नहीं है. अभी जून का फोन आया, उन्हें अख़बार लेने बाजार जाना ही होता है, पूछ रहे थे कुछ लाना है, इतना ख्याल घर का कम लोग ही रखते होंगे. आज वह लंच में केवल फल और सलाद ही ले रही है, हफ्ते में एक दिन ऐसा करना अच्छा है. पर मन है कि...वैसे भूख पर कंट्रोल किया जा सकता है पर जब मनाही हो तो ध्यान खानों की तरफ ही जाता है.

आज सुबह ‘जागरण’ देखा, और अभी-अभी योगानन्द जी का एक भाषण पढ़ा, ईश्वर स्वयं ही संयोग उत्पन्न कर देते हैं. रात भर लगातार हुई वर्षा के कारण मौसम आज ठंडा है, कंपा देने वाली ठंड. बादल अब भी बने हैं और वैसे ही बादल उसके अंतर में भी घुमड़ रहे हैं. कल से नन्हे के इम्तहान हैं. पहला पेपर गणित का है, वह तैयारी कर रहा था फिर पढ़ाई खत्म करके टीवी देखने लगा, .बच्चे भी बस बच्चे होते हैं, पल भर में परीक्षा को भूलकर टीवी में व्यस्त हो गया. कल भी TN Seshan का इंटरव्यू बड़े मजे ले कर देख रहा था, बड़े ही होते हैं जो परीक्षा से पहले ही घबराए-घबराए से रहते हैं. अब टीवी पर चाट बनाने की विधि  बताई जा रही है, अभी-अभी नन्हा कहकर गया है. कल संगीत कक्षा में वह ठीक से गा नहीं पायी, गाने में सुर की देन तो ईश्वर ही दे सकता है, आज ईश्वर से प्रार्थना की है और स्वामी योगानन्द जी के अनुसार यदि प्रार्थना सच्ची हो तो उत्तर अवश्य मिलेगा. अभ्यास तो उसे करना ही होगा पहले की तरह ही प्रतिदिन.

आज ठंड कल से भी जयादा है. बंद कमरे में स्वेटर पहनकर भी ठंड का अहसास हो रहा है, आज ही हीटर निकलना पड़ेगा किन्तु उनका क्या जिनके पास न तो कमरा है, न स्वेटर, और हीटर की तो बात ही जिन्हें पता नहीं, उन्हें भी हीटर के बिना रहने का अभ्यास होना चाहिए जब तक कि जनवरी की कड़कती ठंड न आ जाये. नन्हे की आज हिंदी की परीक्षा है, उसे पढ़ाते हुए पिछले कुछ दिन कैसे बीत गये पता ही नहीं चला, उसका रिजल्ट जरुर अच्छा आयेगा, वह मेहनत करता है पर नूना को लगता है वह इससे भी अच्छा कर सकता है. कल शाम वे एक डिनर पार्टी में गये, एक मित्र के विवाह की वर्षगाँठ की पार्टी में. उनकी शादी की फोटो देखकर लगा कि सारी पंजाबी शादियाँ एक सी होती हैं.

आज सुबह अलार्म की आवाज सुनकर नींद वक्त पर खुल गयी, दरवाजा खोलते ही जानी पहचानी सी वही बिल्ली दिखाई दी, पर कल रात उसने भोजन नहीं बनाया था सो उसे रोटी नहीं दे सकी, बिस्किट दिए, उसका पेट पिचका-पिचका सा लग रहा था, शायद वह अपने लिए खाना नहीं जुटा पाती है. वे सुबह शाम ही तो दे सकते हैं, एक छोटे से जीव को पालना भी कितना प्रयास लेता है, उस दिन बरामदे में जो गंदगी उसने की, उसके बाद वे उसे बाहर ही खाना देते हैं. जो लोग पशुओं से दिल से प्यार करते हैं वे उनके द्वारा की गयी गंदगी को ख़ुशी-ख़ुशी साफ कर देते होंगे, पर ऐसा करना जून व उसके बस की बात तो बिलकुल नहीं है, नन्हा लेकिन उसका ध्यान रखता है, बच्चे स्वभाव से ही कोमल होते हैं. उसे खाना खिलाने का काम उसे ही सौंपना चाहिए. उनकी निष्ठुरता कहीं उसके हृदय को भी कठोर न बना दे.  




बाल दिवस पर मस्ती


आज हफ्तों बाद डायरी खोली है. बहुत दिनों से न लिखने के कारण अभ्यास छूट गया सा लगता है. इस दौरान वे घर जाकर वापस आ भी गये. उसने वापसी में गोहाटी से असम सिल्क की एक साड़ी ली. एक दिन वह तिनसुकिया गयी, बालदिवस पर बच्चों को देने के लिए लेडीज क्लब की तरफ से ढेर सारे गिफ्ट्स खरीदे, जिन्हें कल एक सखी के साथ मिलकर पैक किया. सेक्रेटरी के कहने पर आज सुबह छह सदस्याओं को फोन किये, तेरह को मीटिंग है. जिन्दगी लहरों पर शांत भाव से बहती नाव की तरह आगे बढ़ी जा रही है. आज सवा नौ बजे के लगभग भूकम्प के दो झटके महसूस हुए. पिछले तीन दिनों से मौसम काफी ठंडा हो गया है, वर्षा भी हो रही है, चारों तरफ हरियाली और ठंडक है, ऐसा मौसम उसे भाता है. सुबह वक्त पर उठे वे, नन्हा आज पहली बार यात्रा के दौरान खरीदा ब्लेजर पहन कर स्कूल गया है.

आज ‘बाल दिवस’ है, चाचा नेहरु का जन्मदिन, आज ही ‘गुरुनानक जयंती’ भी है और नूना के पिता का जन्मदिन भी, दादी को अंग्रेजी महीनों का ज्ञान नहीं था उन्हें इतना याद था कि टुबड़ी के दिन पुत्र जन्म हुआ था. पड़ोस के बच्चे का जन्मदिन भी आज है और उड़िया सखी के बेटे का जन्मदिन भी. और इस वर्ष आज ही ‘गुड फ्राइडे’ भी है. कल उनकी मीटिंग अच्छी तरह सम्पन्न हो गयी, ‘रेकी’ पर एक भाषण दिया गया, किन्ही श्री और श्रीमती दास के गजल व भजन ने तो समां ही बाँध दिया. वह सात बजे वापस आ गयी, भोजन बनाया, जून ने सूप बनाकर रखा था, आज उन्होंने फलाहार लेने का व्रत लिया है शाम तक, रात जन्मदिन की पार्टी में जाना है. जून एक पेपर लिख रहे हैं उसी सिलसिले में दफ्तर गये हैं, नन्हा ‘बाल दिवस’ पर दिखाई जाने वाली फिल्म का इंतजार कर रहा है और उसने आज सुबह ‘परमहंस योगानन्द जी’ की पुस्तक पढ़कर पुनः ध्यान किया, मन स्थिर हो पाया मगर कुछ देर के लिए ही. मानव मन को न ही भौतिक सुखों में शांति मिलती है, न ही वह पूरी तरह अध्यात्मिक क्षेत्र में समर्पित हो जाता है, वह त्रिशंकु की तरह बीच में ही रहने को विवश है. लेकिन जो पूर्ण विश्वासी होते हैं उनके साथ ऐसा नहीं होता होगा. उसका शंकालु मन एक ओर टिकता ही नहीं. पिछले कई दिनों की स्वयं के आगे अनुपस्थिति इसी का परिणाम थी.

आज कई हफ्तों बाद संगीत कक्षा में जाना है. सोमवार है हफ्ते का प्रारम्भ. मौसम ठंडा है पर धूप भी पुरजोर है, सो ठंडक भली लग रही है. कल बच्चों के खेल आदि भी हो गये, सुबह जल्दी जाने वालों में वह प्रथम थी, शेष सभी धीरे-धीरे आराम से आ रहे थे. कार्यक्रम ठीक ही रहा जैसे इस तरह के कार्यक्रम होते हैं, कुछ शिकायतें, कुछ गिले. छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह से दौड़ में भाग लिया, उन्हें देखकर विशेषतया एक बच्चे को, जिसका नाम पंछी था, देखकर अच्छा लगा. उसे घर आने में दोपहर के दो बज गये, थकान भी हो गयी थी. भोजन बनाने के साथ ही जून ने सारे कार्य अकेले ही किये जो वे इतवार को मिलजुल कर करते हैं, शाम को वे बाजार होते हुए एक मित्र के यहाँ से गये, जिनके पिता इन दिनों आए हुए हैं, अंकल से मिलकर कई बातों का ज्ञान हुआ. वह अपने पुराने दिनों को बहुत मुग्धता से याद करते हैं, क्या सभी ऐसा करते हैं? युवा भविष्य की ओर देखते हैं और वृद्ध अतीत की ओर. उसने सोचा, अभी व्यायाम करना है, संगीत अभ्यास भी, आधा घंटा टीवी पर सैलाब देखना है, सो लिखना यहीं बंद करेगी, वैसे भी अभ्यास न रहने के कारण लिखने का मूड नहीं बन पा रहा है, किसी दिन देवी सरस्वती की कृपा होगी तो स्वयंमेव ही लेखनी से धरा फूटेगी, वह दिन जल्द ही आये ! आमीन !