Tuesday, February 25, 2014

काला कोट गुलाबी गुंचा


बाहर धूप तेज है पर कमरे में बैठने पर अभी भी ठंड लगती है, वह बरामदे की धूप में चटाई बिछा कर  बैठी है, पिता बाहर आंगन में फोल्डिंग कॉट पर लेटे हैं. माँ अंदर सोयी हैं, दोपहर की आधे एक घंटे की झपकी लेने के लिए. सुबह बड़े भाई का फोन आया, वे वहाँ स्टेशन पर आयेंगे, कल जून भी उन्हें फोन करेंगे जब ट्रेन यहाँ स्टेशन से छूट जाएगी. कल उसकी संगीत अध्यापिका ने फिर उसे टोका, उसे और अभ्यास करना होगा. कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये उनकी नई डाइनिंग टेबल देखी, बहुत सुंदर है, हल्के लकड़ी के रंग की, सनमाइका का डिजाइन भी टीक का है, एक सुंदर कलात्मक वस्तु है जिसकी कीमत वक्त के साथ बढ़ती ही जाएगी.

जून अभी तक नहीं आए हैं, उसने मन ही मन हिसाब लगाया, दोपहर को क्लब के लिए गिफ्ट पैक करने हैं, पड़ोसिन सहायता करने आएगी, सेक्रेटरी के कहने एक जगह फोन करना है, एक रेडियो सिंगर महिला जो क्लब की मेम्बर हैं उनकी कव्वाली में कुछ शब्द ठीक करवाने के लिए, वैसे बहुत जोरदार कव्वाली है, पर सोचती है तो लगता है, फोन उन्हें करना चाहिए, एक दिन उनका गाना सुना था, वैसे उनका नाम पहले कई बार सुना है पर आमने सामने बात नहीं हुई, चाहने पर भी वह मन की बात कह नहीं पाती, उन्होंने जब कहा गिफ्ट उनके यहाँ रखवाने हैं, तो बजाय यह कहने के कि आप ड्राइवर को भेज कर मंगवा लीजियेगा, उसके मुंह से यही निकला कि क्लब जाते समय वे उनके यहाँ छोड़ जायेंगे. माँ-पापा के कल वापस चले जाने के बाद आज काफी अकेलापन महसूस हो रहा है. कुछ देर पूर्व एक सखी ने फोन पर सुझाव दिया कि उसे अपनी थकावट, उलझन और अनुत्साह को लिखकर दूर करना चाहिए. आज सुबह छह बजे उठे, पिछले एक महीने से उठते ही चाय पीने का जो नियम बन गया था आज छूट गया.  

पिछले तीन दिन नहीं लिख सकी, पहले दिन बंद था आसू द्वारा, वोटर लिस्ट में सुधार करने हेतु बन्द का आह्वान किया गया था. उसके अगले दिन सुबह नन्हे को पढ़ाने में बीती, शाम को क्लब गयी, रिहर्सल कर रही महिलाओं के लिए चाय का इंतजाम करना था. कल शाम को क्लब में ‘फ्लावर शो’ था, उसके बाद एक असमिया विवाह में जाने का मौका मिला, जहाँ दुल्हन स्वयं तैयार होकर सौंफ-सुपारी से भरा होराई लिए मेहमानों का स्वागत करती मिली. भोज में था गर्मागर्म भात, दाल और सब्जी. आज चुनाव का दिन है, पर कोई भी वोट डालते जाता नजर नहीं आ रहा है. देश में स्थायी सरकार बने यह सब चाहते हैं पर इसके लिए प्रयास करना कोई नहीं चाहता, सब एक-दूसरे पर अपनी जिम्मेदारी थोपकर स्वयं दूर खड़े रहकर तमाशा देखना चाहते हैं. पिछले लोकसभा चुनावों में हालात इतने बुरे नहीं थे. लोग उत्साहपूर्वक वोट डालने गये थे, पर इस बार भय व आतंक का ऐसा माहौल बन गया है, डरे हुए लोग और डर गये हैं, लोगों का खून पानी बन गया है. 

वर्षा रात से हो रही थी, अब भी हो रही है, ठंड वापस लौट आयी है.  सुबह भजन सुनने का समय नहीं था, ‘जागरण’ भी नहीं सुना, माँ-पापा थे तो सब सुनते थे. नन्हा समय पर तैयार हो गया था, वह बहुत समझदारी की बातें करता है, यूँ तो हर माता-पिता को अपनी सन्तान प्रिय होती है पर वह सचमुच गर्व करने लायक है. सुबह ‘शांति’ पांच मिनट के लिए देखा, लगा कि अंतिम एपिसोड है, सब कुछ ठीक-ठाक हो गया है, इसी तरह जिन्दगी में भी उलझनें और परेशानियाँ आती है, फिर सब कुछ ठीक हो जाता है. आज उसने अपने और पड़ोसिन के घर से कुल मिलाकर तीस गुलाब की कलियाँ इकठ्ठी कर ली हैं अब प्रतीक्षा है तो एक कमेटी मेम्बर की जो इन्हें ले जाकर कोट में लगाने के लिए फ्लावर स्टिक के रूप में तैयार करेंगी. कल ‘हसबैंड नाइट’ है, अभी तक लेडीज ज्वाइन कर रही हैं, अब पौने दो सौ से ऊपर सदस्याएं हो गयी हैं. तैयारी ठीक चल रही है, उसके जिम्मे ज्यादा काम नहीं था, सारे गिफ्ट पैक कर दिए हैं. कल सुबह डोंगे आदि रिसीव करने हैं. जून उसे सुबह क्लब ले गये थे, दोपहर को फिर जाना था, अब वह पहले से ज्यादा समझने लगे हैं कि उसे हर हल में अब क्लब का काम भी करना है.  
                                                                                                                             





1 comment:

  1. मनोरंजक ....हमेशा की तरह.....

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