Thursday, December 5, 2013

यंग आर्किटेक्ट - बिल्डिंग ब्लॉक्स


सुबह के सवा दस हुए हैं. आज आकाश पर सूरज की बादशाहत है कल की तरह बादलों की नहीं. कल नन्हे की गर्दन में हल्का खिंचाव था आज वह ठीक है, वही है कि छोटी-छोटी बातों पर झुंझला रही थी. वह उठ तो जल्दी गया था पर आदत के अनुसार धीरे-धीरे सब काम कर रहा था. जून ने  फोन पर नन्हे के बारे पूछा, जैसा वह लगभग रोज ही करते हैं. आज उसे एक अनपेक्षित फोन आया, एक परिचित अपने बेटे के लिए हिंदी में एक पत्र लिखवाना चाहते थे, उसकी एक सखी का फोन भी आया, उसे मेडिकल गाइड से बच्चों की कान की समस्या के बारे में जानकारी चाहिए थी. कल रात उन्होंने रजाई को विदा दे दी, अब कम्बल से ही काम चल जायेगा. कल जून और वह दोनों ही उत्साह में कुछ कमी महसूस कर रहे थे, आज वह ठीक है, इसका अर्थ हुआ मौसम का असर मिजाज पर पड़ता ही है.

अचानक बिजली चली गयी है, वह करी पत्ता लेने बगीचे में गयी तो देखा बिजली विभाग के कर्मचारी घर के सामने वाली स्ट्रीट लाइट ठीक कर रहे हैं, उसे याद आया कल ही जून ने शिकायत दर्ज करवाई थी. आज फिर बादल हैं, रात को आंधी-तूफान भी आया, जिसका अंदाजा हर तरफ बिखरे पत्तों से लगाया जा सकता है. आज नन्हे का विज्ञान का इम्तहान है और कल अंतिम संस्कृत का, उसके बाद वे यात्रा की तयारी में लग जायेंगे. कल दोपहर अख़बार पढ़ने में व्यतीत हुई, टूथ ब्रश और हेयर डाई के साइड इफ़ेक्ट पर दो लेख पढ़े, दोनों ही सीमा में इस्तेमाल करने चाहिए. आजकल बंधी बंधाई दिनचर्या है, बीच-बीच में कुछ समय seven summers के लिए भी निकाल लेती है. बिजली की गाड़ी चली गयी है पर लाइट आयी नहीं है.

दस बजने वाले हैं, मन कुछ उखड़ा सा है, सुबह नन्हे पर फिर झुंझलाई, ज्यादा तो नहीं पर थोड़ा सा भी क्रोध करना नन्हे पर या किसी पर भी उसे स्वयं अपनी हार लगता है, अपनी तौहीन भी, मन देर तक परेशान रहता है. शैतान हर रूप में उन्हें लुभाता है और इसके चंगुल में वे फंस ही जाते हैं. आज नन्हे का आखिरी इम्तहान है और उसे ख़ुशी है कि आज से उसे डांटने की कोई जरूरत नहीं रहेगी. आज धूप निकली है पर पिछली वर्षा के कारण सारे फूल कुम्हला गये हैं, धूप पाकर वे फिर खिल उठेंगे. काश ऐसी कोई धूप उसके लिए भी हो जिसे पाकर...अच्छी सी एक गजल या seven summers के कुछ पेज ! आज वह टोमेटो सॉस बना रही है, बगीचे के लाल रस भरे टमाटरों से !

बारिश लगतार हो रही है, सर्दियां जाते-जाते फिर लौट आई हैं. पता नहीं बादलों में इतना पानी कहाँ से आया है. कल भी दिन भर बदली बनी रही और आज तो दिन में भी रात का अहसास हो रहा है. नन्हा young architect से नये घर का मॉडल बना रहा है. दो दिन बाद उन्हें जाना है, मौसम तब तक ठीक हो जायेगा ऐसी प्रार्थना भगवान से करनी चाहिए. आज उसे खत भी लिखने हैं और दोपहर को हिंदी कक्षा लेने भी जाना है. शाम को क्लब जाना है एक सखी से किया हुआ वादा निभाने के लिए. कल शाम थोड़ी पैकिंग की, खर्चे का हिसाब भी लगाया लगभग तीस हजार का बजट है. इतनी महंगाई के जमाने में एक महीना घूमने में इतना खर्च तो होगा ही, लेकिन राजस्थान के सुंदर किलों और रेतीले मैदानों की कल्पना करता हुआ मन रूपये-पैसे के बारे में सोचना ही नहीं चाहता.  



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