Sunday, December 22, 2013

कड़क चाय और भुट्टे का सूप


Today is D-Day ie her birth day ! since morning she has received so many B’day wishes that she is full of gratitude towards all of them and Almighty ! He is always with her. सुबह-सुबह वे बेड में ही थे कि पिता का फोन आया, कल उन्हें उसका पत्र मिला, पत्र से उन्हें व जून के मित्र जो कल वहीं थे, दोनों को ख़ुशी हुई, छोटे भाई ने भी फोन पर पत्र मिलने की बात कही. पत्रों की महत्ता उसे एक बार फिर महसूस हुई. दीदी का फोन आया, माँ उनके पास गयी हैं, भारत के बाहर से जीजाजी का फोन आया. छोटी भाभी के पिता ने भी फोन किया. यहाँ भी सखियों ने विश किया, उसे यह गीत भी याद आया जो पाकिस्तानी रेडियो पर बचपन में सुना था, मेरी सालगिरह है बोलो.. बोलो..बोलो न हैप्पी बर्थडे टू मी..

कुछ दिन पहले तक बल्कि कल तक ही उसे लग रहा था  कि जन्मदिन पर ख़ुशी के साथ-साथ उदासी भी होगी. एक साल और गुजर जाने की, पर ऐसा नहीं है...केवल ख़ुशी का ही अहसास है जो तन और मन के पोर-पोर में छाया है. जून और नन्हा भी इसमें शामिल हैं.

आज सुबह की खुली धूप के बाद ही अचानक बादल आ गये और लगातार बरस रहे हैं. मन भीगा-भीगा सा उनके साथ एकात्मकता महसूस कर रहा है, असम का यह भी एक अनोखा अनुभव है. आज बहुत दिनों के बाद इत्मीनान से उसने फोन पर दो सखियों से बात की, एक ने कहा, आजकल ब्लाउज में छोटी बांह रखने का फैशन है, पर उसने कहा वह फैशन के अनुसार नहीं अपनी सुविधा के अनुसार कपड़े पहनती है. पड़ोसी कुछ दिन बाहर घूमने के बाद आए हैं, उनका बेटा जो नन्हे का मित्र है, तब से इधर ही है, नन्हा उसके साथ बहुत खुश है, वह इतनी बातें कर सकता है, आमतौर पर उसे देखने पर अहसास नहीं होता.

रिमझिम गान सुनाती बरखा
मन-प्राण हर्षाती बरखा
हौले हौले से बादल के
उर से नेह लुटाती बरखा
स्वप्न सुन्दरी सी अम्बर से
उतर रही लहराती बरखा
मोती सी उज्ज्वल बूंदों का
झिलमिल हार बनाती बरखा

आज इस वक्त सुबह के दस बजने में दस मिनट पर जब छत पर चलता पंखा अचानक बिजली चली जाने से थम गया है, बाहर से छत से टपकती इक्का-दुक्का बूंदों की ध्वनि के सिवा कुछ पंछियों की आवाजें सुनायी दे रही हैं, कोई महीन कोई तीखी आवाज.  बाहर हॉट वाटर सिस्टम में गर्म पानी भाप के साथ उछल-उछल कर थम गया है. वह अपने आप के सम्मुख बैठी है, सुबह ध्यान में २५ मिनट कैसे बीत गये पता ही नहीं चला, गीता पढ़ने बैठी तो –पता नहीं क्यों बार-बार पढ़े शब्द जैसे टकरा कर लौट आये, मन के भीतर तक नहीं गये. एक सखी से बात की, उसका फोन खराब था अन्यथा उसी ने कर लेना था, पर वह उसके साथ हिसाब-किताब वाली मित्रता नहीं रखना चाहती. वह अलेप, निर्लेप या कोई ऐसा ही शब्द जिसका अर्थ हो मुक्त, निर्बाध...किसी भी तरह के मानसिक उहापोह से आजाद रहना चाहती है. जून का गला खराब है, कल शाम वे उसे कमजोर दिखे, शायद उनकी अस्वस्थता का अनुमान वह नहीं लगा पा रही है, उनकी देखभाल ठीक से नहीं कर पा रही है, उन्हें आराम की जरूरत है. उसे अस्वस्थता के नाम से ही चिढ़ है, सम्भवतः स्वस्थ मनुष्य यह भूल ही जाता है कि अस्वस्थ होने पर कैसा लगता है.

कल शाम उसने ‘कॉर्न सूप’ बनाया, घर में उगे ताजे मकई का सूप बहुत स्वादिष्ट बनता है. कल रात सोने से पहले वे किसी बात पर बहुत हँसे और उसने हँसने पर चार पंक्तियाँ भी गढ़ लीं पर रात को सपने में रोना पड़ा, जून को (पर स्वप्न में वह बदले से लग रहे थे) वाशिंग मशीन से करेंट लग जाता है. दादी जी की बात याद आ गयी जब वे कहती थीं, ‘हासे दा विनासा होसी’ ! आउटलुक में मंटों की कुछ दिल-दहलाने वाली कहानियाँ पढ़ीं, १९४७ की याद दिलाना आज की पीढ़ी के लिए आवश्यक है.

अपने आप से बातें करना अच्छा लगता है,
हम भी पागल हो जायेंगे ऐसा लगता है

आज कुछ ऐसी ही कैफियत हो रही है उसके मन की. कल रात को वह बहुत गुस्से में थी, जे कृष्णामूर्ति के अनुसार वह गुस्सा ही थी उस पल, उनका माली ठीक से बगीचे की देखभाल नहीं करता इस बात पर. उपाय यही है कि आज से नियमित एक घंटा वह स्वयं काम करे. आज सुबह  उठी तो लगा जैसे कल रात की बात भूल गयी है, ध्यान के समय भी ज्यादा याद नहीं आई पर बाहर जाकर देखा तो नैनी के बेटे को बुलाये बिना नहीं रह सकी, माली के साथ वह भी सहायता करेगा. कल शाम को एक मित्र परिवार आया उसने चाय कुछ कड़क बना दी, इतने वर्षों से चाय बना रही है पर सही अनुपात का ज्ञान अभी तक नहीं हुआ है. नन्हे को आज क्लास के बाद एक चित्रकला प्रतियोगिता में भी जाना है, जो Assam Science Association की तरफ से विश्व पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में हो रही है. पेड़ों के नाम एक कविता और बगीचे में काम करना पर्यावरण के प्रति उसका उपहार होंगे.

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