Monday, December 16, 2013

मैं आजाद हूँ


इस वक्त वह चाहे और कुछ भी करे पर डायरी तो कम से कम नहीं लिखनी चाहिए, फिर अशांत  मन क्योंकि जगदीश को, वही उनके स्वीपर को इतनी बार सिखाने पर भी बाथरूम धोना नहीं  आया है और आज उसे फिर से सिखाना पड़ा है, शायद वह उसे सनकी समझता होगा. आज सुबह जल्दी उठ गये थे वे, जून को शिवसागर जाना था. शाम को आएंगे. आजकल वह योग पर एक किताब पढ़ रही है, जो किसी अंग्रेज लिखक ने पश्चिमी पाठकों के लिए लिखी है पर भारतीयों के लिए भी बहुत उपयोगी है. ध्यान किस तरह किया जाये इसे विस्तार से समझाया गया है. कल शाम को उसकी भविष्यवाणी ठीक निकली और मित्र परिवार आखिर नहीं आया. अभी-अभी नैनी को कपड़े धोते हुए देखा, आजकल किसी से काम करवाना हो और स्वयं को शांत रखना हो तो आँखें बंद ही रखनी चाहिए. इतना सर्फ बर्बाद करती है, इसलिए आजकल उसका मन भी उनके प्रति उदासीन हो गया है, वे उसके स्नेह के योग्य ही नहीं है ऐसा लगता है. कल रात मूसलाधार वर्षा हुई, मौसम ठंडा है, उसके जन्मदिन का महीना सदा ही वर्षा का उपहार लाता रहा है.

आज भी मौसम सुहाना है, बादल, हवा और हरियाली खिड़की से झांक रहे हैं और फ़िलहाल तो मन अपनी जगह ठिकाने पर है. कल से ध्यान में प्रगति हुई है. इस पुस्तक से बहुत सहायता मिली है पर जैसे साईं बाबा ने कहा था पुस्तकें तो सिर्फ गाइड बुक या नक्शे का काम ही करती हैं, रास्तों पर तो हमें खुद ही चलना होता है. जून कल शाम पौने छह आ गये थे, उनकी यात्रा सफल रही पर थकन भरी थी. कल उसने छोटी भांजी को एक कार्ड स्वयं बनाकर भेजा, दीदी की द्दी हुई साड़ी पर फाल लगाने का काम भी पूरा हो गया. नन्हा आज से कम्प्यूटर क्लास के लिए जायेगा, कल दिन भर उसके साथ बिताया, BON VOYAGE खेला, पढ़ाया. वह छुट्टियों का पूरा आनंद ले रहा है. टेनिस खेलना भी शुरू किया है, जीटीवी पर डिजनी ऑवर उसका मनपसन्द कार्यक्रम है. आजकल जून का वह ज्यादा ख्याल नहीं रख रही है, वह शिकायत नहीं करते but she will certainly do...क्योंकि उनका प्यार ही तो है जो उनके घर को सचमुच का घर बनाये हुए है, एक सुंदर आदर्श घर..जैसी कि उन्होंने वर्षों पहले कल्पना की थी. आजकल माली भी रोज अ रहा है, यानि कि “सब कुछ ठीकठाक है, हालचाल ठीकठाक है” खुश रहना और किसी से कोई अपेक्षा न रखना ये दो बातें ही मन को शांत रखने के लिए काफी हैं. and where there is inner peace there is every thing.

आज जून के कुछ मित्रों को खाने पर बुलाया था, उन तीनों के परिवार आजकल यहाँ नहीं हैं, पड़ोसिन भी उसी दौरान मिलने आ गयी, वे लोग इतवार को घर जा रहे हैं. अंततः वह परिवार भी मिलने आया जो उस दिन नहीं आ सका था, वे कुछ देर बैठे, यात्रा के फोटो देखे. उसने एक अच्छा सा स्वप्न कल रात्रि देखा, एक साधू बाबा, बालकृष्ण की तस्वीर उनकी हथेली पर और विष्णु भगवान का चित्र भी, एक अद्भुत अनुभूति भी, जो आज ध्यान करते समय भी महसूस हुई.

आज एक अच्छी फिल्म देखी, “मैं आजाद हूँ” अमिताभ बच्चन और शबाना आजमी का जानदार अभिनय, कहानी भी अच्छी थी, मन को छूने वाली. असमिया सखी अपने परिवार के साथ आई पुरे पांच महीनों के बाद, लेकिन वे उतना ही निकट महसूस कर रहे थे जितना पहले करते थे, उनके दिलों के तार कहीं से जुड़े हुए हैं.  


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