Wednesday, March 13, 2013

एक योगी की आत्म कथा



कल दोपहर जून ने बताया, फोन पर छोटी बहन बहुत उदास थी, यह सुनते ही नूना को भी अपने मन पर वश नहीं रहा, बहुत देर तक मन में यही एक बात गूंजती रही, इससे हटने के लिए वह अपनी एक सखी के पास चली गयी, जब वापस लौटी मन शांत हो चुका था, इसका अर्थ है कि यदि कोई  परेशान है तो वातावरण में परिवर्तन से काफी सहायता मिल सकती है. उसके यहाँ फ्रॉक भी देखे, भांजी के लायक कोई पसंद नहीं आया, उसने एक और दिखाने का वायदा किया है. ईश्वर से प्रार्थना ही कर सकते हैं वे छोटी बहन के लिए, उसे साहस दे, अच्छे-बुरे का ज्ञान दे और सहनशक्ति भी. सपनों में जीना छोड़कर वह जितना जल्दी हो सके यथार्थ को अपना ले. कल शाम को वे एक उड़िया परिवार से मिलने गए, वही हर बार की तरह..ज्यादातर दूसरों की बातें....उस दिन चित्रहार में एक अच्छा गाना आ रहा था- दूसरों की बुराई जब किया कीजिये...सामने आईना रख लिया कीजिये. हाँ एक बात अच्छी हुई, उसके पास भगवद्गीता के कैसेट हैं, सभी अध्यायों के संस्कृत में श्लोक फिर उनका हिंदी अनुवाद. पहला अध्याय थोड़ा सा सुना.

 “एक योगी की आत्मकथा” उसकी सखी ने परसों दी थी, अभी कुछ देर पूर्व कुछ पृष्ठ पढे, ईश्वर पर विश्वास करो तो वह किस-किस तरह हमारी सहायता करता है, मन संशय युक्त हो तो विश्वास टिक नहीं पाता और इसलिए सहज प्राप्त ईश्वर की दया भी दिखाई नहीं देती, कितनी ही बार स्वयं उसने इस बात का अनुभव किया है, सच्चे मन से निस्वार्थ प्रार्थना कभी भी बेकार नहीं गयी, लेकिन मन ईश्वर की कृपा को कितनी जल्दी भूल जाता है और फिर संशयात्मक हो जाता है. इस पुस्तक को पढ़ने पर उसकी ईश्वर में श्रद्धा दृढ़तर होगी ऐसा उसे विश्वास है. क्या वह किसी को एकांतिक अहैतुक प्रेम दे पायी है...ऐसा प्रेम जो निस्वार्थ हो..सिर्फ देना जानता ओ...किसी एक क्षण भी ऐसा प्रेम किया है उसने...प्रेम में अपना सुख अपनी खुशी सर्वोच्च रखता है मनुष्य, लेकिन वह प्रेम नहीं है..वह तो दुनियादारी है..सौदा है. यह सच है कि वह अपने परिवार से बेहद प्रेम करती है, उनका दुःख उससे सहन नहीं होता..परन्तु फिर भी ऐसे कई अवसर आए हैं जब अपने स्वार्थ को ऊपर रखा है. प्रयत्न करेगी कि ऐसा न हो..कल उन्होंने सर्कस देखी. अजब करतब दिखाते है ये लोग, जिन पर हैरत से आँखें खुली रह जाएँ, लेकिन जानवरों की निरीहता देखकर मन में पीड़ा होती है.

  छोटी बहन को उस दिन फोन तो नहीं कर सकी लेकिन अभी-अभी एक पत्र लिखा है जो उम्मीद है उसके कुछ काम आयेगा.. कल वे तिनसुकिया गए थे, वह मोदी का ‘क्विक स्टिच किट’ लाई है, आज दोपहर शुभारम्भ करेगी. कल लेडीज क्लब की मीटिंग है, उसकी पुरानी  पड़ोसन भी क्लब ज्वाइन कर रही है. पिछले तीन-चार दिनों की तरह आज भी वर्षा हो रही है. आज सुबह बहुत दिनों बाद नींद देर से खुली, जून जल्दी-जल्दी में कुछ खाकर ऑफिस गए.

  उस दिन यानि नरसों, सोमवार को जून दोपहर को घर आए तो स्वस्थ नहीं थे, हल्का ज्वर था, तब से आज तक ज्वर बढता-घटता तो रहा है पर उतरा नहीं है. आज बृहस्पतिवार है, आज दोपहर अस्पताल जायेंगे. वह इसी कारण मीटिंग में नहीं जा पायी, उसने कल भी और आज भी ईश्वर से प्रार्थना की है और उसे पूर्ण विश्वास है, आज वह बिलकुल ठीक हो जायेंगे. ईश्वरसे प्रार्थना करना मात्र उसके लिए शब्द नहीं हैं परन्तु एक अनुभव है. ‘एक योगी की आत्मकथा’ पढकर तो लगता है ईश्वर यहीं उसके पास है, हवा में, धूप में, फूलों की सुगंध में, बादलों में और उसके अंतर्मन में भी. उसने उसे वचन दिया है कि अब वह सांसारिक वस्तुओं का मोह नहीं करेगी क्यों कि उसकी  सभी आवश्यकतायें तो वह स्वयं ही पूर्ण करता है. इच्छा करने से पहले ही वह उसे जान जाता है. उसने यह भी कहा है क कभी किसी को मनसा, वाचा, कर्मणा दुःख नहीं पहुंचायेगी, और न ही किसी कई बुराई या निंदा में भाग लेगी. उसके मन में सभी के प्रति समान भाव है और उसके जून का भी. वह उसके सभी वचनों में शामिल है.

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