Friday, March 15, 2013

1984-George Orwell



“Let all our passions and emotions go up unto Him. They are meant for Him, for if they miss their mark and go lower, they become vile and when they go straight to the mark, to the Lord, even the lowest of them becomes transfigured, He is the Beloved who is in this world more beautiful than Him? Let Him be the Beloved.”- Swami Vivekannd

  शनिवार को उनके लेडीज क्लब और दिगबोई लेडीज क्लब का सम्मिलित भोज था, बहुत सफल रहा. वह दिन उसकी यादों में एक अनोखे दिन की तरह सदा-सदा रहेगा. इतनी सारी महिलाओं के बीच, जिन्हें वे जानते भी नहीं लेकिन फिर भी एक अपनापन लग रहा था. अगली सभा में वह अवश्य कहेगी अपने इस अनुभव के बारे में. आज उसने दो खत लिखे, सुबह के सारे काम सम्पन्न हो जाने के बाद. कल शाम जून और उसने बगीचे में काफी देर काम किया. उसकी पड़ोसिन ने चायनीज गुलाब की दो कलमें दी थीं, उन्हें भी लगाया, उनके घर से आने तक उसमें नए पत्ते आ जायंगे शायद. कल रात उसने कई सपनों के मध्य एक मजेदार स्वप्न देखा, पिता को एक अरब रुपया मिलने का स्वप्न. 

  कल नन्हा स्कूल से आया तो उसके दोनों घुटनों में चोट लगी थी, शाम को दर्द काफी था. जून स्कूल जाने से पहले अस्पताल ले गए. जाना ही था क्योंकि आज सोशल साइंस का टेस्ट है, स्कूल जाते वक्त वह हँस रहा था. कल पड़ोस के बच्चे को भी किसी ने कान पर मार दिया था. शायद सभी बच्चे इसी तरह बड़े होते हैं. आज सुबह से हल्के बादल हैं इससे गर्मी कम है. कल रात गर्मी के कारण पहले नींद नहीं आ रही थी. उसने घड़ी की ओर देखा, आज सरदार जी की दूध की गाड़ी नहीं आयी, वे तिनसुकिया से रोज इसी समय तक आ जाते हैं. जून आज फील्ड गए हैं, देर से आएंगे, उसने सोचा कुछ देर के लिए तेलुगु सखी के यहाँ मिलने जायेगी.

 हाँ, आज से वह “उसे” ही सम्बोधित करके ही लिखेगी. उसी ने अभी उसे आवाज दी थी न, पर जब फोन उठाया तो कोई आवाज नहीं, क्या मौन ही उसकी आवाज है ? नन्हे को स्कूल में फिर चोट लग गयी उसी जगह पर वह बहादुर है, है न ? जैसे वह हमेशा उसकी सहायता करता है, वैसे ही उसकी भी करेगा और जून की भी. वह तो सब जानता है. आज जून सुबह फील्ड जाने के लिए जल्दी चले गए और देर से आएंगे, कल यूँही उसने उन्हें दुःख पहुँचाया, अब से वह सिर्फ उसी से शिकायत करेगी, इस जग के किसी भी प्राणी से नहीं, वह ही तो है जो उसकी वर्षों की बेवकूफियों को सहता आ रहा है...फिर भी अपना हाथ उसके सिर से नहीं हटाया है उसने...वह कोशिश करेगी कि कभी भी उसे न भूले, क्योंकि जब वह याद रहता है तो वह ओछा काम कर ही नहीं सकती. आज गगन में बदली छायी है, कल शाम को बादल नहीं थे, पर रात जाने कहाँ से आ गए, वर्षा होने लगी, उसने जो बीज डाले थे अब उसके ही हवाले हैं, चूँकि अब उसका हर काम उसे ही संवारना है, क्या ज्यादा बोझ नहीं डाल रही है उस पर..वह हँस रहा है..उसकी आँखों में आँसू भरकर वह हँसता है...oh God I love You ! I love You so much! वह व्यर्थ ही उससे डरती थी.

  आज सुबह लिख नहीं सकी, क्योंकि जाले साफ करवा रही थी, सारे कमरे अस्त-व्यस्त पड़े थे, फर्नीचर के पीछे एक महीने में कितनी गंदगी इकट्ठी हो जाती है. फिर जून आये, सुबह भी वेल गए थे, दोबारा गए हैं और वहीं से तिनसुकिया जायेंगे. उनसे नेप्थलीन बाल्स के लिए कहना है. वह सोच रही है इस बार हेयर कट कैसे करवाए, छोटे या बस ट्रिमिंग ही. घर जाने से पहले तिनसुकिया तो नहीं जा पायेगी, कोलकाता में ही करवाना होगा. इस समय धूप निकल आई है, धूप में धुले पौधे कितने सुंदर लग रहे हैं. सुबह नन्हे को फिर जल्दी-जल्दी कम करने के लिए कहा, उसने उसे रोका भी नहीं. George Orwel की किताब 1984 समाप्त कर दी, new speak, thought crime, good thing, Eurasia जैसे शब्द कुछ दिन याद रहेंगे फिर कहीं खो जायेंगे लेकिन लेखक की कल्पना शक्ति का लोहा मानना ही पड़ेगा.  

  डेढ़ बजे हैं दोपहर के, यूँ यह लिखने की जरूरत नहीं थी, क्योंकि रात को डेढ़ बजे कभी लिखे यह नामुमकिन तो नहीं कठिन जरूर है. सिर में हल्का सा भारीपन है, उसका कहना जो नहीं मानती, मन को अखाड़ा बनाये रखने से तो दर्द होगा ही, अनेकानेक इच्छाएं जन्म लेती हैं, पूरी न होने पर उनको पूरा करने का प्रयास.. फिर असफल होने पर झुंझलाहट, इन सबका परिणाम है अशांत मन...जून देर से आये, खाना उसने अकेले ही खाया. पिछले कई दिनों से वह बहुत व्यस्त थे, जी.एम. उनके काम से खुश हैं, आज मीटिंग में पार्टी है इस खुशी में. कल उसकी एक परिचिता आयी थी परिवार के साथ, दो किताबें ले गयी है उसकी किताबों की अलमारी से. उसने सोचा, लिखना छोड़कर काम शुरू करेगी, ‘श्रम’ बेहतरीन उपाय है मन को स्थिरता देने का.









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