Friday, March 22, 2013

स्क्रैम्ब्लर-हिज्जों का खेल




अचानक उसका ध्यान पर्दों पर गया तो सोचा बेडरूम के पर्दे धुलवाने चाहिए, कारपेट धुलवाने की बात भी की है धोबी से. फ्रिज में से सब्जियां धीरे-धीरे खत्म हो रही हैं, पर लगता है बाजार जाने की जरूरत जल्दी नहीं पड़ेगी, बगीचे से गाजर व गोभी मिल सकती हैं. आज उसने शाम को नाश्ते में पनीर का परांठा बनाया, सो रात को देर तक भूख ही नहीं  लगी, पौने दस बजे है, उसने रोज की तरह लिखना शुरू किया है, सोचा, जून भी इसी वक्त सोने की तैयारी कर रहे होंगे. शायद उन्होंने भी ‘विविधा’ की कहानी देखी हो टीवी पर. शाम को एक मित्र परिवार मिलने आना चाहता था, पर जून के न होने कि बात सुनकर नहीं आया. पड़ोस से नन्हे का मित्र आ गया था, सो वह दूर तक टहलने भी नहीं जा सकी. माली भी नहीं आया, प्लायर्स से नल खोल कर पानी दिया पौधों को फिर वैसे ही बंद किया. सुबह रजाई का गिलाफ धोकर चढाया. दिन में स्वेटर बनाया. नन्हे को स्कूल की पत्रिका के लिए कोई कविता या कहानी लिखनी है, इस समय लेटे हुए वही सोच रहा है. “ओशीन” धारावाहिक आज नहीं दिखाया जा रहा, अगले सोमवार को वह जून के साथ देखेगी. नन्हे को स्कूल में हेल्पेज के लिये बीस रूपये जमा करने थे, उसके पास दस रूपये थे, पचास वह ले जाना नहीं चाहता था, ऐसे वक्त में पड़ोसी ही तो काम आते हैं., लिखाई बिगड़ने लगी तो उसे लगा ठंड से उसकी उंगलियाँ अकड़ गयी हैं शायद, या ज्यादा देर स्वेटर बनाने से, वहाँ जून के शहर में तो इससे भी ज्यादा ठंड होगी.

रात्रि के साढे नौ बजे हैं, नन्हे ने इस वक्त उसे गुस्सा दिलाया है, काम के समय दुनिया भर के सवाल पूछता है और बातें करता है उस वक्त, जब कोई काम कहा गया हो, वैसे वह शायद रोज ही ऐसा करता हो पर आज उसे सिर में दर्द है, दोपहर को फिल्म देखी शायद इसी कारण. उसका रिपोर्ट कार्ड मिल गया है, आज वह स्कूल में पहली बार किसी टीचर के घर गया था.

बुधवार, आज बारह तारीख है, उसका मन हो रहा है जल्दी से सोने के लिए लेट जाये, शाम को बगीचे में काम किया, टहलने गयी अकेले, दोपहर को स्वेटर बनाती रही, थकान हो गयी है, जून होते तो.... अब बहुत हो गया अकेले रहना...अब बिलकुल अच्छा नहीं लगता मन करता है उससे ढेर सारी बातें करूं. उसके बिना कितने सारे काम भी तो बढ़ गए हैं न, नन्हा सो गया है, उसकी छुट्टी आज जल्दी हो गयी थी, कल भी ऐसा ही होगा, उसने कहानी लिख ली है पत्रिका के लिए.

“जिंदगी तू भी पड़ोसन की तरह लगती है
आज तोहफे में कुछ दे है तो कल मांगे है”
‘मुन्नवर राना’ का यह शेर उसे अच्छा लगा तो लिख लिया डायरी में.   

  परसों जून आ जायेंगे, सुबह से यह ख्याल आकर मन को सुकून दे गया है, उन्हें महसूस करने लगे हैं वे अब, उनकी हंसी उनका स्पर्श सब स्पष्ट हो गया है, नन्हा कह रहा है पापा के आने पर हलवा-पूरी बनाइएगा, आज दोपहर को इतने दिनों में वह पहली बार एक घंटा बेड में थी, कारण वही, नन्हा भी लेट कर टीवी देख रहा था, उसके स्कूल में आज जाते ही छुट्टी हो गयी पर वह साढ़े बारह बजे ही आ पाया, अब एक हफ्ते बाद स्कूल में पढ़ाई होगी. क्योंकि छह दिन बाद वार्षिक दिवस है. सुबह सामान्य रही सिवाय इसके कि गाजरें निकलीं गार्डन से, जून के लिए गाजर का हलवा बनाना है न, टमाटर भी मिले. उसके एक सहकर्मी सर्वोत्तम तथा आधा किलो मटर दे गए, उसने मंगाए थे. शाम को पड़ोसियों के साथ क्लब गए बीहू का कार्यक्रम था, सवा सात पर लौटे. घर आकर स्क्रेमब्लर खेलते रहे, समय का ध्यान ही नहीं रहा, खाना देर से खाया. कल टीवी पर ‘हुन हुन्शी हुन्शाराम’ गुजराती फिल्म Sदिखाई जायेगी और परसों “सूरज का सातवाँ घोड़ा”, जो वे साथ-साथ  देखेंगे. उसने मन ही मन जून से स्वप्न में आने कि बात कही, मच्छर दानी भी नहीं लगा रहे वे आज, नन्हा इस समय गुड नाईट में नई मैट लगा रहा है.

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