तीन दिनों का अन्तराल ! डायरी लेखन की कला अब जैसे छूटती जा
रही है. रात्रि के पौने नौ बजे हैं. जून बंगलूरु हवाई अड्डे से नन्हे के घर जा रहे
हैं. पांच-छह दिन बाद आयेंगे. उसे इस समय का उपयोग अपनी साधना में करना होगा. सुबह
कितने सुंदर वचन सुने थे, जिनकी सुगंध से मन का कण-कण अभी तक भीगा हुआ है पर क्या
कहा था, कुछ भी याद नहीं है. कल से साथ-साथ नोट कर लेना उचित होगा, पर शब्दों का उद्देश्य
तो पूर्ण हो ही गया. गुरूजी कहते हैं जो शब्द मौन में ले जाते हैं, वे ही सार्थक
हैं. शाम को एक पुरानी परिचिता का फोन आया, दोपहर को भी एक सखी का फोन आया था, कल
से इन दोनों को व्हाट्सएप ग्रुप में शामिल कर लेगी. दोपहर वाली सखी नन्हे की तारीफ
कर रही थी. उसने इन्हें न केवल अपने घर आने का निमन्त्रण दिया, बल्कि कहा, नाश्ता
भी यहीं करें और यहीं से उनकी बिटिया कालेज जाये. उसका कालेज यहाँ से निकट है. वह
नन्हे के बचपन की बातें भी बता रही थी, उसका पुत्र और नन्हा साथ ही बड़े हुए हैं. कल
ही एक अन्य पुरानी सखी ने फेसबुक पर वर्षों पहले की एक समूह तस्वीर पोस्ट की,
उसमें की एक महिला ने कल से ही योग कक्षा में आना आरंभ किया है. वक्त कैसे बिछुड़े
हुओं को बार-बार मिलाता है. आज दोपहर मृणाल ज्योति गयी थी. नेट पर दिव्यांगों के
लिए सरकार की तरफ से चलाई जाने वाली योजनाओं के बार में पढ़ा. उसे उनके लिए एच आर
पालिसी बनाने के लिए कुछ सुझाव देने को कहा गया है. नन्हे और सोनू से बात की, सोनू
ड्राफ्ट बनाकर कल तक भेजेगी.
परमात्मा स्वयं की उपस्थिति जताता है. वह अनंत ज्ञान का
सागर है. वही आत्मा रूप से इस देह में व अनंत देहों में विद्यमान है. इस सृष्टि का
चक्र कितनी कुशलता से चला रहा है. वास्तव में प्रकृति में सारी क्रियाएं हो रही
हैं. यह हाथ कलम के माध्यम से लिख रहा है, चेतन इसका साक्षी मात्र है. बुद्धि में
चिन्तन चलता है, मन में भाव उठते हैं, इन्हें भी कोई देखता है. रात्रि के नौ बजने को
हैं, जून अपने गन्तव्य पर पहुँच गये हैं. सुबह नन्हे के आसन करते हुए फोटो
उन्होंने भेजे, अच्छा लगा. मौसम आज काफी गर्म है. तापमान चौंतीस डिग्री है. दीदी
घर आ गयी हैं, और छोटी बहन अपने घर. मंझला भाई अपनी नई पोस्टिंग पर चला गया है.
जीवन अपनी गति से आगे बढ़ता ही रहता है.
आज सुबह सवा चार बजे नींद खुली. सुबह होने के बाद भी वातावरण
में उमस थी, हवा बंद थी, हरी घास पर नंगे पैर चलने से गर्मी का असर कुछ कम हुआ. प्राणायाम
करने बैठी तो एक सखी का फोन आया. उसकी तबियत कल रात से ही खराब है, पतिदेव टूर पर
हैं. बुखार, पेट दर्द और सिर दर्द भी. नहाकर हार्लिक्स पीया, फिर सात बजे से कुछ
पहले ही उसके घर गयी फिर अस्पताल. नौ बजे घर लौटी, उसके लिए नाश्ता बनाकर आई. उसकी
बिटिया को दोपहर के भोजन के लिए निमन्त्रण देकर. उसे चिल्ड्रेन मीट के लिए डांस
प्रेक्टिस में भी जाना है. सबसे बड़ा बल है आत्मा का बल और वह जन्मता है श्रद्धा और
प्रेम से. स्वयं तथा परम के प्रति आस्था से. किताब जो लाइब्रेरी से लायी थी
काश्मीर पर, काफी रोचक है, कुछ देर बाद पढ़ेगी.
शाम के पांच बजे हैं. बाहर धूप है, शायद शाम तक बदली छा
जाये. जून मदुराई से वापस बंगलूरू पहुँच गये हैं. आज वे उनका नया घर विला देखने
जाने वाले हैं. परमात्मा ने उन्हें कितना कुछ दिया है. इस सुंदर सृष्टि में मानव
जन्म दिया, सद्गुरू का सान्निध्य दिया. यह सृष्टि कितनी रहस्यपूर्ण है. यहाँ वे
कुछ भी तो नहीं जानते. गुरूजी के सुंदर वचन सुने. कितना अद्भुत ज्ञान उन्होंने सरल
शब्दों में दे दिया. आज की सुबह सुंदर थी. हरी घास पर ओस की बूंदे थीं, उन पर
टहलना व ज्ञान के मोतियों को भीतर समेटना एक साथ हो रहा था. दोपहर को नैनी बगीचे
से ढेर सारी सब्जियां लेकर आई. पड़ोसी के यहाँ भिजवाई, पर उनके यहाँ भी इतनी ही
सब्जी हो रही है. इसी बहाने उससे बात हो गयी. कल क्लब की प्रेसिडेंट से ‘योग दिवस’
पर ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ का ‘बेसिक कोर्स’ कराने के सिलसिले में बात की. अब वह सखी
स्वस्थ है पर उसकी बिटिया के हाथ में चोट लग गयी है, एक्सरे कराया है, परसों
रिपोर्ट मिलेगी. मिलने गयी तो उसने औरा देखना सिखाया और एक ध्यान के बारे में बताया
जिसमें सभी चक्रों पर विभिन्न रंगों का ध्यान करना होता है.
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