ग्यारह बजने को हैं. आज सुबह छह बजे वे उठे. स्वास्थ्य ठीक लग रहा
था. कल दोपहर बाद से तबियत कुछ नासाज थी. सम्भवतः चुनार घूमते समय लू लग गयी थी.
शाम को बाजार जाना था. विवाह के लिए तीन बनारसी साड़ियाँ व एक सूट खरीदा. दूकानदार
ननद की सहेली की जान-पहचान का था और बनारसी साड़ियों का थोक विक्रेता था, बहुत
धैर्य के साथ उसने वस्त्र दिखाये. वापसी में वे विश्वनाथ गली गये. कंगन, हार,
चूड़ियाँ आदि कुछ सामान खरीदा. भीड़ भरी सड़कों से गुजरना यहाँ एक बड़े साहस का काम
है. धूल, धुआं, भीड़ आदि की इंतिहा होती है. घर से वे कुछ दूरी पर ही थे कि उसकी तबियत
बिगड़ने लगी. घर पहुंचने तक ठंड लगने लगी थी. चार-पांच कम्बल ओढ़ने के बावजूद भी ठंड
लग रही थी. काफी देर बाद ठंड कम हुई और नींद आ गयी. सुबह उठी तो सब कुछ ठीक लग रहा
था. शाम को जून के एक मित्र के यहाँ निमन्त्रण है.
संध्या के पांच बजे हैं. आज उन्हें वापस जाना है, यानि कुल
पांच घंटे यहाँ और शेष हैं. दोपहर को भोजन के बाद विश्राम के लिए भीतर के कमरे में
जा ही रहे थे कि एक बहुत पुराने परिचित वृद्ध मिलने आ गये, जिनकी बातें करने की
आदत है. जून पहले उनसे मिलने गये थे पर जितनी देर बैठे रहे, वह पहुंच ही नहीं पाए.
इसी बात पर अपने एक डाक्टर मित्र की समय की पाबन्दी के कितने किस्से उन्होंने सुना
दिए. मकान की खरीद-फरोख्त का काम करते हैं, कई दुकानें आदि भी हैं, जहाँ भारतीय व
विदेशी पर्यटक आते हैं. उनके तीन सुपुत्र हैं, अपने एक पोते के विवाह के चक्कर में
जेल भी हो आये हैं. दहेज उत्पीड़न के केस में उनकी पतोहू व उसके पिता ने परिवार के
पांच लोगों को बीस दिन तक जेल की हवा खिलवा दी थी. उनकी बातें किसी कहानी के पात्र
के मुख से निकली हुई लग रही थीं. मौसम यहाँ गर्म है, तापमान इकतालीस डिग्री होगा.
अज फेसबुक पर आश्रम के फोटो प्रकाशित किये, जो सक्तेश गढ़ में स्थित है, और तहसील
चुनार व जिला मिर्जापुर में आता है.
पूरे ग्यारह दिनों के बाद डायरी उठायी है. कितना कुछ घटा
पिछले दिनों. तेरह की रात वे ट्रेन में बैठे, पन्द्रह की सुबह घर पहुँचे. सोलह को
इतवार था, बच्चों को योग भी सिखाया. अगले दिन जून को दिल्ली जाना था. वह बुध को
लौटे, तब तक भी उसका स्वास्थ्य पूरी तरह ठीक नहीं हुआ था. अगले दिन वे अस्पताल ले
गये, दवा शरू हुई. इस इतवार तक स्वास्थ्य पुनः प्राप्त हुआ. कल सोमवार को जून के एक सहकर्मी ने अपने घर बुलाया था. उन्होंने
योग का एक नया सीडी दिया है, आज उसमें से देखकर कुछ आसन किये. कल पहली बार ॐ ध्यान’ कराया, आज ‘राम ध्यान’ करना है, अवश्य ही साधिकाओं को अच्छा
लगेगा. बंगाली सखी ने व्हाट्सएप पर प्रश्न का कोई जवाब नहीं दिया. वे आज वे लोग
वापस आ रहे हैं. लोग वफा उतनी शिद्धत से नहीं निभाते जितनी शिद्धत से बेवफाई निभाते
हैं. शनिवार को एक नयी यात्रा पर निकलना है. नन्हे ने अगले इतवार के लिए वह होटल
बुक कर दिया है, जहाँ पर वे विवाह समारोह करने वाले हैं. कल स्कूल से लौटते समय क्लब
की एक सदस्या के यहाँ गयी, जिसका विदाई समारोह होने वाला है. उसके लिए एक कविता
लिखनी है.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन केन्द्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल को शुभकामनायें : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteबहुत सुंदर लेख मानो बनारसी साड़ी
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