कल दोपहर जून आ गये थे, बड़ी ननद ने आम व बर्फी भेजी है. सोनू
ने सुंदर सी पोशाक तथा जून स्वयं ‘आर्ट ऑफ़ लिविंग’ आश्रम से नीली योगा कुर्ती लाये
हैं. आज बहुत दिनों के बाद चार पोस्ट्स लिखीं. काव्यालय पर उसकी एक कविता कल
प्रकाशित होने जा रही है. वर्षों पूर्व उसने ऐसा चाहा था, वह स्वप्न अब पूर्ण होने
को है. कल बातूनी सखी का फोन आया, वह एक नया ब्लॉग या या पेज शुरू करने जा रही है
अपने विचार लिखने के लिए, जो अन्य महिलाओं को प्रेरित करें. उसने कोई नाम पूछा था
अपने पेज के लिए. जून का गला खराब है, यात्रा में काफी थकान हुई, नींद भी पूरी
नहीं हुई होगी, इस उम्र में अनियमितता होने पर सेहत तो बिगड़ेगी ही. आज उसने चाय के
स्थान पर रागी का पेय बनाकर पीया. बहुत दिनों बाद गुरूजी को एक पत्र भी लिखा.
जानने की शक्ति ही ज्ञान है. परमात्मा ज्ञेय नहीं है, वह
ज्ञान है. जब कोई कहे, उसने जान लिया, उसकी जानने की शक्ति समाप्त हो जाती है,
इसलिए ब्रह्म अनंत है. उसे जान लिया है, ऐसा कहना ही मिथ्या है. ज्ञान ही व्यक्ति
को जड़ सा बना देता है. आज नेट पर अचानक ही ‘शिव सूत्र’ पर गुरूजी के प्रवचन सुनने
को मिल गये. एक ही चेतना विभिन्न योनियों में प्रकट हो रही है. हर योनि के प्रति
आदर रखना भीतर चैतन्य की निशानी है. वे जब इस संसार के साथ एकत्व का अनुभव करते
हैं तो अपने चैतन्य को अनुभव करना सम्भव होता है. देह के साथ जब एकत्व का अनुभव
करते हैं तो उसी क्षण पार्थक्य का अनुभव होने लगता है. एक कोशिका से यह देह बनी
है, इससे अधिक कलात्मक क्या हो सकता है. कला का सभी आदर करते हैं, यह संसार ईश्वर
की एक कला है. जीवंत व्यक्ति ही दूसरों का सम्मान कर सकता है. फिर ज्ञान का बंधन
छूट जाता है !
आज सुबह देर तक परमात्मा से भीतर वार्तालाप हुआ. वर्षों
पहले का एक वाक्य उभर कर आया और फिर उसे एक गहरे कुँए में धकेल दिया गया, जिसका
कोई अंत नहीं था, जिसकी कोई तली नहीं थी, वह कुआं अँधेरा था पर उसकी दीवारें और
गोलाई अभी भी स्पष्ट है. अहंकार के प्रतीक वे शब्द वर्षों पूर्व जून के लिए कहे
गये थे. कल जब वे फिल्म देखकर आये और दीदी ने फोन पर कहा, आप लोग तो सदा समय का
पालन करते हैं. जो शब्द उसने कहे, कि जून को फिल्म अच्छी लगी, वही कारण हैं इस
देरी का, तो इसमें भी कहीं अहंकार छिपा हुआ था. स्वयं को विशेष मानकर अन्य को वे
स्वयं से कम आंकते हैं, यही तो अहंकार है. फिर भीतर से आवाज उठी, काम समाप्त हो
गया ? जिस कार्य की पूर्ति के लिए वह साधना के क्षेत्र में आई थी, वह पूर्ण हो
गया. अब समझ में आ रहा है, परमात्मा की राह पर जब वे चलते हैं तो उनका एक हिडन
एजेंडा भी होता है. वे स्वास्थ्य, सुन्दरता, यश की कामना से अध्यात्म के क्षेत्र
में आते हैं. परमात्मा ही जिसका लक्ष्य हो ऐसे बिरले ही होते हैं. कल से ‘आर्ट ऑफ़
लिविंग’ का बेसिक कोर्स आरम्भ हो रहा है. कम से कम पन्द्रह और अधिक से अधिक बीस महिलाएं
प्रतिभागिनी हो जायेंगी.
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ReplyDeleteजी नमस्ते
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (30-03-2019) को "दिल तो है मतवाला गिरगिट" (चर्चा अंक-3290) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
अनीता सैनी