शाम के सात बजने को हैं, वे पांच बजे घर से चले थे. उस समय आकाश
में सूरज बादलों के पीछे से झांक रहा था. धीरे-धीरे साँझ ढलती गयी, गगन गुलाबी से
सुरमई हो गया और स्टेशन पहुँचने तक तो पूर्ण अंधकार हो चुका था. मार्ग में हरे-भरे
चाय बागान, झोपड़ियाँ और बांसों के झुरमुट थे. कहीं-कहीं खेतों में पानी भरा था. कहीं
महिलाएं घरों के सामने बैठ कर बातें कर रही थीं तो कहीं ठूँठ बचे खेतों में दूर तक
कोई पंछी भी नजर नहीं आ रहा था. डिब्रूगढ़ शहर का मुख्य बाजार रोशनियों से जगमगा
रहा था. कई नई दुकानें भी नजर आयीं. रेलवे स्टेशन काफी साफ-सुथरा था, कहीं भी
गंदगी नजर नहीं आई. लगभग खाली ही था पूरा स्टेशन. टीटी के दफ्तर में जाकर पता
किया, प्रथम श्रेणी के चार के कूपे में अन्य दो यात्री कौन हैं, तथा कहाँ से चढ़ने
वाले हैं. पता चला कोई मारवाड़ी दंपति हैं, आधी रात के बाद ही चढ़ेंगे. वे लगभग तीन
वर्ष बाद वाराणसी जा रहे हैं. ट्रेन की इतनी लंबी यात्रा किये भी काफी अरसा हो
गया.
दस बजे हैं अभी सुबह के. ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकी हुई है.
सुबह वे पांच बजे के बाद ही जगे. रात को देर तक नींद नहीं आ रही थी, फिर आयी भी तो
स्वप्नों भरी. रेल यात्रा बहुत दिनों बाद कर रहे हैं सो जैसे अभ्यास ही नहीं रहा. जून
ने नाश्ते में आलू परांठा व दही मंगवाया. कॉर्न फ्लेक्स तो था ही. सहयात्री आ चुके
हैं, उनका एक चार-पांच वर्ष का पुत्र भी है, जिसकी आँखें बहुत कमजोर हैं. मोबाइल
को लगभग आँख से सटाकर देखता है. उसके दांत में भी दर्द था. माता-पिता तो बन जाते
हैं लोग पर उसके लिए ज्यादा श्रम नहीं करना चाहते. माँ को सोने में ज्यादा आनंद आ
रहा है, बजाय इसके कि पुत्र के साथ खेले जो मोबाइल में ही खेल रहा है. उसने एक
कहानी लिखी छोटी बहन के साथ घटी घटना पर आधारित.
कल रात्रि समय पूर्व ही उनकी ट्रेन वाराणसी स्टेशन पर पहुँच
गयी थी. पौने दो बजे घर पर थे. छोटी ननद व ननदोई ने स्वागत किया. हाल-चाल पूछ कर
सो गये पर सुबह साढ़े पांच बजे ही लगातार आती तोते की आवाज ने उठा दिया, पता चला पड़ोस
के घर में रहता है और सुबह से रटना शुरू कर देता है. प्रातः भ्रमण भी किया और वापस
आकर प्राणायाम भी. नाश्ते में छोलिया-पोहा था और फल. शाम को विवाह उत्सव में जाना
है, जहाँ बहुत लोगों से मुलाकात होगी. कल शाम बाजार जाना है, परसों गंगा आरती देखने,
एक दिन चुनार का किला देखने तथा किसी आश्रम में भी. यहाँ मौसम थोडा गर्म है, पर
बहुत अधिक भी नहीं.
दोपहर के ढाई बजे हैं. बाहर धूप तेज है पर कमरा एसी के कारण
ठंडा है. वे दोपहर का विश्राम करके अभी उठे हैं. शाम से पूर्व बाहर निकला नहीं जा सकता
है. आज की सुबह शानदार थी. वे साढ़े चार बजे उठ गये थे और अस्सी घाट गये. घर के पास
ही इ-रिक्शा वाला रहता है, जिसे शाम को ही बुक कर लिया था. छह बजे घाट पर पहुंचे तो
शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम चल रहा था, कुछ कुर्सियां लगी थीं और दरियां भी बिछी
थीं. सुबह पांच बजे ही आरती होती है, जो वे नहीं देख सके. एक गायिका जो कोलकाता से
आई थी, स्थानीय तबला वादक ( युवा छात्र) तथा हारमोनियम वादक के साथ बहुत ही सधे
हुए अंदाज में दादरा गा रही थी. सात बजे योग का कार्यक्रम आरम्भ हुआ. योगाचार्य जी
ने पहले नौ प्राणायाम कराए-अनुलोम-विलोम, कपालभाती, शीतलीकरण, भस्त्रिका, उज्जायी,
अग्निसार, भ्रामरी तथा तीन बंध. उनकी वाणी ओजस्वी थी तथा उत्साहवर्धक भी. उसके बाद
आसन करवाए, ताड़, अर्ध चन्द्र, मंडूक, पर्वत आसन. कुछ क्रियाएं पैरों हाथों तथा
सर्वाइकल के लिए भी थीं, जिनमें पैरों को जमीन पर पटकना भी शामिल था. सिंहासन तथा
हास्यासन भी करवाए. योग करने के बाद तन-मन ऊर्जा से भर गया, फिर वे नाव से गंगापार
गये. स्नान करके नाव से वे दशाश्वमेध घाट पर उतरे. नाश्ता किया, शालिग्राम तथा
नर्मदेश्वर से मिलने वाला एक पत्थर लिया. दुकानदार का नाम धर्मेन्द्र था, जो बातें
बनाने में कुशल था. उसने दोनों पत्थरों के बारे में बताया तथा उनकी पूजा करने से
पूर्व उन्हें पंच गव्य से अभिषिक्त करने को कहा. उसके बाद वे पैदल ही चलकर पुरानी गली
में गये. कुछ समय पुराने घर में बिताया. वर्षों पूर्व वहाँ जो विद्यार्थी उससे
गणित के सवाल पूछा करता था, अपने परिवार के साथ रह रहा था. दो बच्चों का पिता वह
एक अख़बार में काम करता है. एक स्वयं सेवी संस्था से भी जुड़ा है.
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