Thursday, March 14, 2019

युधिष्ठिर का कुत्ता



दो दिन पहले वे घर लौट आये हैं. आज शाम क्लब जाना है, दो सदस्याओं की विदाई पार्टी है. उसने दोनों के लिए कविताएँ लिखी हैं, कल कुछ मेम्बर्स के साथ निकट के एक गाँव में किसी बालिका विद्यालय में गयी. किशोरी छात्राओं को योग सिखाया, एक महिला डाक्टर ने किशोरावस्था में आने वाले परिवर्तनों पर प्रकाश डाला, उनसे बातें कीं, समस्याएं पूछीं. हर वर्ष किसी न किसी स्कूल में क्लब की तरफ से यह कार्यक्रम होता है. जून एक पुराने मित्र से मिलने आज फ़ील्ड गये हैं. कल विभाग के एक पुराने अधिकारी को उन्होंने बुलवाया, गाडी भेजी, जो निकट ही किसी काम से आये हुए थे. उनका मन विशाल हो गया है, उसमें ऊर्जा भर गयी है. परमात्मा की ऊर्जा !  

आज सुबह स्वप्न में एक कुत्ते को बगीचे से दौड़ लगाते हुए अपनी ओर आते देखा, कल सचमुच में एक कुत्ता देखा था बगीचे में. दो दिन पूर्व सड़क पर चलते समय चार-पांच कुत्तों का एक समूह देखा, एक-दो दिन पहले ध्यान में भी दिखा था. शायद आजकल कुत्तों से जुड़ा कोई कर्म उदय हुआ है. उनके प्रति अचाह का भाव न रहे, वे भी परमात्मा की सृष्टि का अंग हैं. युधिष्ठिर के साथ तो स्वर्ग तक चला गया था कुत्ता. संस्कार परिवर्तन के लिए ही प्रकृति यह सब दिखा रही है. संस्कार परिवर्तन के लिए चाय का कप भी दिखाया है कई बार. अस्वस्थ होने पर त्याग भी दी थी, अब गर्मी के कारण शायद मन ही न हो. मन का मालिक बनना है न कि उसका गुलाम. कल की मीटिंग अच्छी रही. उसने देखा, प्रेसिडेंट कुछ लोगों पर अधिक ध्यान देती हैं, उस दिन एक सदस्या ने सही कहा था. अज बंगाली सखी को संदेश भेजा है, दोपहर को बात करेगी. रूठे सुजन मनाइये...

आज एक सखी से बात हुई, उसका जन्मदिन जब था वे ट्रेन में थे, बधाई देना ही भूल गयी. उसने बताया, उसके पिताजी की मानसिक अवस्था ठीक नहीं है. वह क्रोध करते हैं तथा कुछ सामान घर से बाहर जाकर रख आते हैं. वृद्धावस्था तो परिपक्वता की निशानी होनी चाहिए किन्तु आजकल अनेक लोगों को बुढ़ापे में डिमेंशिया हो रहा है, पता नहीं इसका कारण क्या है. कल दोपहर मूसलाधार वर्षा हुई, आज मौसम गर्म है. प्रकृति के रंगढंग अनोखे हैं. जून बता रहे थे कि आज फिर एक सहकर्मी के जवाब को लेकर परेशान हुए. जब तक वह भीतर शांति का अनुभव न कर लें, इस उहापोह से छुटकारा नहीं. उसने प्रार्थना की, उन दोनों की बुद्धि उन्हें सत्य का खोजी बनाये. वे स्वतंत्र हैं कि ईश्वर की आज्ञा का पालन करें या न करें. यदि वे सभी को ईश्वर में और ईश्वर को सबमें देखते हैं तो किसी की निंदा नहीं करेंगे. जब तक भीतर निंदा दोष है तब तक ईश्वर पर उनका विश्वास संशय रहित नहीं है. परमात्मा पर अटल विश्वास ही उन्हें उसकी सृष्टि को निर्दोष देखने के योग्य बनाता है. ऐसा व्यक्ति किसी से भी द्वेष नहीं करता.

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