Friday, September 15, 2017

फूलों पर श्वेत तितली


रात्रि के आठ बजे हैं, अभी-अभी वे बाहर टहल कर आये हैं. गेट के दोनों ओर लगे श्वेत और गुलाबी कंचन के वृक्ष फूलों से भर गये हैं. ठंडी बयार बह रही थी. सुबह का भ्रमण भी सुखद था. मार्च का प्रथम दिन है आज, धूप में अब तेजी आ गयी है. दोपहर को बच्चों को अभ्यास कराया, ध्यान करते हुए वे कितने शांत लग रहे थे, कुछ पल पहले शोर मचाते हुए जो दौड़ रहे थे, कुछ ही पलों में स्थिरता को अनुभव करने लगे थे. उड़िया सखी आयी तो उसे शील, समाधि, प्रज्ञा के बारे में बताया. आठ मार्च को महिला दिवस के अवसर पर गुरूजी ने कुछ विशेष कार्यक्रम करने को कहा है. वह आस-पास की महिलाओं को बुलाकर कुछ बताएगी. आज प्रधान मंत्री को NASCOM के रजत जयंती कार्यक्रम में बोलते सुना, अच्छा लगा. कश्मीर में बीजेपी और पीडीपी की संयुक्त सरकार बन रही है, यह भी एक बड़ी सफलता है.

एक शुद्ध, बुद्ध, मुक्त चेतना इस देह में रहकर इन्द्रियों द्वारा इस प्रकृति का अनुभव प्राप्त करती है. मन के द्वारा मनन करती है, बुद्धि के द्वारा निर्णय लेती है तथा अहंकार के द्वारा क्रिया करती हुई प्रतीत होती है. जबकि उसका स्वभाव मात्र जानने का है, वह ज्ञाता व द्रष्टा मात्र है. देह स्वभाव के अनुसार कार्य करती है, मन स्वभाव के कारण कभी भूत कभी भविष्य में जाता है. बुद्धि स्वभाव के अनुसार घटनाओं को परखती है, वह आत्मा इन सबको देखती है, वह शुद्ध चेतना भीतर है जो प्रतिपल इन सबको देखती है, तथा वह अपने में पूर्ण है और प्रतिक्षण संतुष्ट है. मन द्वारा कार्य किये जाने पर तथा बार-बार उसे दोहराए जाने पर जो संस्कार अंतर्मन पर पड़ गये हैं, उन्हें भी उभरने पर वह साक्षी भाव से देखती है. आँखों के द्वारा इस सुंदर सृष्टि को निहारना, स्वयं के भीतर ही अद्भुत नाद को सुनना उसे भाता है. स्वयं के अनंत स्वरूप में गहरे उतरते चले जाना और कोई बाधा, कोई अवरोध न पाना भी ! परमात्मा का विभिन्न रूपों में प्रकट होना भी ! आज स्कूल में छोटे बच्चों की योग कक्षा लेते समय एक तितली आयी और एक बच्चे के सिर पर  मंडराने लगी, बड़े बच्चों की कक्षा में एक तितली घायल अवस्था में पड़ी दिखी. पिछली बार उसके मन में पुराने किसी संस्कार के जगने पर हिंसा का विचार आया था. परमात्मा के मार्ग विचित्र हैं. वह रहस्यमय तो है ही, प्रकट होकर भी वह अप्रकट है ! आज एक परिचिता के साथ मृणाल ज्योति भी गयी, जिसके दिव्यांग भाई की वर्षों पहले मृत्यु हो गयी थी, उसके जन्मदिन पर दिव्यांग बच्चों के लिए खाने-पीने का कुछ सामान ले गयी थी वह. जून आज सुबह से ही व्यस्त हैं, ओएनजीसी से कुछ लोग आये हैं.

रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. तेज वर्षा हो रही है. बादल सुबह भी थे जब वह पैदल चलकर बुजुर्ग आंटी से मिलने गयी. वह बिस्तर पर बैठकर किताब पढ़ रही थीं, खुश हुईं देखकर. अपनी सेविका की बहुत शिकायत कर रही थीं, जैसे कि अक्सर कुछ वृद्ध व्यक्ति शिकायत करना अपना स्वभाव ही बना लेते हैं. अगले हफ्ते वे गुरूपूजा रखवा रहे हैं. कितनी कृपा है गुरू की उन पर. जीवन का सही अर्थ उन्होंने ही बताया है. धरा पर यदि कोई जागा हुआ न हो तो इसकी रौनक कोई देख ही न पाए उस तरह जिस तरह ये वास्तव में हैं ! जो दिखाई नहीं देता वह उससे ज्यादा सुंदर है जो दिखाई देता है...परमात्मा सदा ही किसी न किसी रूप में धरा पर मौजूद रहता है. वैसे तो वही है हर रूप में..पर इस बात को समझने के लिए जो सूक्ष्म दृष्टि चाहिए वह तो गुरू ही देता है ! आज शाम उन्हें गुलाब जामुन बनाने हैं, कल होली है, वे न भी खेलें तो कोई अतिथि घर आये, उसके स्वागत के लिए कुछ मीठा तो होना ही चाहिए. मौसम आज भी अच्छा है. ठंडी सी सुहावनी हवा बह रही है, एक श्वेत तितली फूलों पर मंडरा रही है, उड़ती हुई तितली कितनी मोहक लगती है ! बड़ी भाभी का स्वास्थ्य अब ठीक हो रहा है, कमजोरी बहुत है ऐसा बड़े भाई ने बताया. उसने मन ही मन प्रार्थना की, ईश्वर उन्हें शीघ्र स्वस्थ करे ! कल शाम को आठ महिलाओं को विपासना के बारे में बताया, शील, समाधि व प्रज्ञा के बारे में भी बताया. उन्हें अच्छा लगा, अगले महीने फिर आने को कहा है. कल पुस्तकालय से तीन किताबें लायी. वी. एस. नायपाल की आत्मकथा, डा. मनमोहन सिंह पर एक पुस्तक तथा आर के नारायण की पुराणों से संबंधित एक पुस्तक. तीनों पुस्तकें यकीनन अच्छी होंगी. परमात्मा रह-रह कर किसी न किसी इशारे से अपनी याद दिला देता है ! यदि कुछ देर तक उसका स्मरण न आये तो...    

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