कल शाम चार बजे वे गोहाटी पहुँचे थे. शाम को बाजार गये फिर एक
मित्र परिवार से मिलने. रात्रि भोजन भी वहीं किया. आज सुबह ब्रह्मपुत्र के किनारे
टहलने गये. नदी के तट पर कई वृक्ष लगे थे, वर्षों पुराने वृक्ष बहुत सुंदर थे पर किनारा
टूटा-फूटा था और स्वच्छता का बहुत अभाव था. सड़क के दोनों किनारों पर फूलवालों की
कई दुकानें लगी थीं. होटल लौटते समय फल मंडी से होते हुए आये. लौटकर स्नान, नाश्ता
आदि कर नौ बजे ही गणेश गुड़ी स्थित पासपोर्ट दफ्तर के लिए रवाना हुए, जहाँ उसे अपने
पासपोर्ट का नवीकरण कराना था. वहाँ काफी भीड़ थी पर उन्हें दस बजे से पहले ही बुला
लिया गया. तीन भागों में सारी कार्यवाही पूरी हुई, दफ्तर में सभी कार्य काफी
व्यवस्थित ढंग से हो रहे थे. साढ़े ग्यारह बजे तक सब काम हो गया. बाजार से असम
सिल्क के कुरते के लिए वस्त्र खरीदा. दोपहर बाद पुनः उन्हीं मित्र के यहाँ गये,
शाम को जून अपने एक सहकर्मी के घर ले गये. जिनका पुश्तैनी मकान काफी बड़ा है, तथा
एक पहाड़ पर बना है. खेती भी है, उनके भाई-भाभी तथा भतीजों से मिलना हुआ. स्वादिष्ट
नाश्ता करके वे होटल आ गये हैं. कल सुबह शिलांग के लिए निकलना है. कल वे चेरापूंजी
जायेंगे.
‘नार्थ इस्टर्न हिल
यूनिवर्सिटी’ (नेहू) के पुराने गेस्ट हॉउस के वीआईपी कक्ष ‘संख्या-एक’ में बैठकर
डायरी लिखने का सम्भवतः यह पहला और अंतिम अवसर है. आज सुबह ही गोहाटी से शिलांग के
लिए बल्कि कहें चेरा पूंजी के लिए रवाना हुए. मेघालय और असम काफी दूर तक साथ-साथ
चलते हैं, सड़क के मध्य जो विभाजक है उसके बायीं तरफ असम है और दायीं तरफ मेघालय
है. असम की सीमा समाप्त होते ही पहाड़ी रास्ता आरम्भ हो जाता है. सडकें ऊंची-नीची
हो जाती हैं तथा चीड़ के वृक्ष दिखने लगते हैं. मार्ग में उमियाम या बड़ा पानी नामक एक सुंदर झील पर रुककर कुछ तस्वीरें उतारीं. यह
दस वर्ग किलोमीटर क्षेत्र वाली अति विशाल कृत्रिम झील है, जहाँ बिजली का उत्पादन
भी किया जाता है.
चेरापूंजी में प्रवेश करते ही दृश्य पटल बदलने लगा, रास्ता अच्छा
था. गाड़ी तेज रफ्तार से चल रही थी. एक तरफ घाटियाँ दिखने लगी. पहाड़ों की ढलान जो
मीलों तक नीचे गयी थी, घने जंगलों से ढकी थी. दूर के पर्वत नीले लग रहे थे और उनके
पीछे धुंध थी. धूप तेज थी. आगे चलकर झरने देखे तथा प्राकृतिक गुफाएं भी, जो बहुत
विचित्र हैं. इनके भीतर वर्षा के जल के निरंतर गिरने से पत्थरों ने जाने कितने
वर्षों में टूटकर विभिन्न आकर ग्रहण कर लिए हैं. उनमें प्रवेश करके आड़े-तिरछे
रास्तों से गुजरकर बाहर आना एक रोचक व रोमांचक अनुभव था. गुफाओं से लौटकर एक शुद्ध
शाकाहारी रेस्तरां ओरेंज कंट्री में भोजन किया. भोजन बनाने वाली महिला थी तथा
परोसने वाली भी सभी महिलाएं थीं. वे लगातार उस स्थान को साफ करने में लगी थीं.
शिलांग के लिए वापसी की यात्रा में एक अन्य झरना दिखा, जो दूर से दिखाई दे रहा था.
काफी ऊँचाई से गिरता हुआ वह नीचे घाटी में मीलों दूर गिर रहा था. शिलांग के सुंदर
दृश्यों को देखते हुए वे नेहू वापस आ गये हैं. यह कैम्पस भी बहुत सुंदर है. चीड़ के
जंगलों के कारण इसकी सुन्दरता और भी बढ़ जाती है. कल वे शिलांग लेक, लेडी हायड्री
पार्क, गोल्फ कोर्स आदि देखने जायेंगे. डॉन बोस्को संग्रहालय भी देखने लायक स्थान
होगा. आज नन्हे से बात हुई, उसने एक मित्र के साथ घर लेने का निर्णय किया है.
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