Tuesday, June 21, 2016

मार्क ट्वेन का अनुभव


आज सुबह क्रिया के दौरान कई शुभ संकल्प उठे. पता नहीं कहाँ से विचार आते हैं और कहाँ खो जाते हैं. ‘मृणाल ज्योति’ के भविष्य के बारे में एक लेख लिखने का संकल्प, वहाँ के लिए सिंगापुर से कुछ विशेष खरीद कर लाने का संकल्प. पड़ोसियों के लिए क्रिसमस का सुंदर उपहार भी लाना है. ईसामसीह पर एक कविता लिखे तो कितना अच्छा हो... इस समय और कुछ याद नहीं आ रहा है, लेकिन उस समय तो जैसे बाढ़ ही आ गयी थी. कहीं यह मन की चाल तो नहीं. वह बचे रहना चाहता है. इसलिए अच्छी-अच्छी बातें खोज निकालता है ठीक ध्यान से पूर्व ! चाचाजी को श्रद्धांजलि स्वरूप एक लेख लिखना आरम्भ किया है. चचेरे भाई से बात की वह बाहर था, पंडित जी से कल के उठाले के बारे में बात करने आया था. मन्दिर में एक कमरा है वहीं पर कार्यक्रम होगा, समाज ऐसे वक्त पर ही नजर आता है. उसने भाई के लिए सोचा, पिता के जाने के बाद शायद वह समर्थ हो सके, अपने भीतर की शक्तियों को जगा सके. परसों छोटा भाई चचेरे भाई के साथ हरिद्वार जायेगा उनकी अस्थियाँ लेकर.  

आज फिर वर्षा का मौसम बना हुआ है, ठंड बढ़ गयी है. जून अप्रैल में लेह जाने की बात भी कह रहे हैं, समय बतायेगा, क्या होता है ? दोपहर के डेढ़ बजे हैं. ओशो ने मार्क ट्वेन के जीवन की एक घटना का जिक्र किया. जब वह फ़्रांस गये तो उनका नाती उनके साथ था. मार्क ट्वेन को फ्रांसीसी भाषा नहीं आती थी. वह भाषण के दौरान अपने नाती को देखकर ताली बजाते व हँसते जिससे किसी को पता न चले कि उन्हें भाषा का ज्ञान नहीं है. बाद में उनके नाती ने कहा कि उन्होंने तो उसकी फजीहत करवा दी. जब उनकी तारीफ होती तो वह ताली बजाता तभी मार्क ट्वेन भी ताली बजाते. वे भी बहुत सारे काम देखा-देखी करते हैं और उस परमात्मा की फजीहत करवाते हैं. यह बात और है कि परमात्मा की कोई फजीहत हो ही नहीं सकती !

आज नेट गायब है. उसने सोचा इस समय घर पर सभी व्यस्त होंगे, आज चाचाजी का उठाला है. जीवन अवश्य था उनके भीतर पर पिछले कुछ समय से वे सही अर्थों में जीवित नहीं कहे जा सकते थे. समाज से कटे हुए, अस्वच्छ वातावरण में, वही वस्त्र पहने दिनों गुजारने वाले, लेकिन दूसरी ओर जो रोज नहाते हैं, सबसे मिलते-जुलते हैं लेकिन भीतर क्रोध से भरे हैं, विषाद से ग्रस्त हैं, उन्हें भी तो जीवन से वंचित कहा जा सकता है. जीवित तो वही है जो भीतर जागा हुआ है, आनन्द में है और जो सभी के भीतर एक ही चेतना का दर्शन करता है. वह सबको वे जैसे हैं देख सकता है !


फिर एक अन्तराल, ठंड वैसी ही है जैसी कि दिसम्बर के इस महीने में होनी चाहिए ! अभी-अभी एक सखी से बात की अब से वह उसके साथ मृणाल ज्योति का काम करेगी. इस हफ्ते वे बच्चों को ध्यान करायेंगे. बच्चे ध्यान में जल्दी उतर सकते हैं, ऐसा संत कहते हैं. आज उसने पढ़ा, यह ब्रह्मांड गोलीय है, उसका न आदि है न अंत. आकाश से परे है चेतना.. ध्यान के बिना उस तत्व को जाना नहीं जा सकता. आज लेडीज क्लब की एक सदस्या के लिए उसने एक विदाई कविता लिखी. कल पिताजी को चाचाजी पर लिखा आलेख भेजा. उसे लगता है अब गद्य लिखने में उसे कम प्रयास लगता है. पद्य लिखना अब छूटता ही जा रहा है. कितना काम पड़ा है करने को पर बहुत सा समय इधर-उधर के कामों में चला जाता है. बहुत सारे संकल्प भीतर उठते हैं, कोई जगा हुआ उन्हें निरंतर देखा करता है, वही आत्मा है ! 

6 comments:

  1. इसीलिए मुझे जब कुछ कामों की लिस्ट बनानी होती है तो मै ध्यान में बैठ जाती हूँ और बस...एकदम से सारे काम याद आने शुरू हो जाते है. तभी कापी पर नोट करना शुरू कर देती हूँ.फिर समय ,समय पर चेक करती हूँ कि काम पूरे हुए या नही,वो काम ऐसे होते हैं जिन्हें पूरा करने की जल्दी नही होती बस एक संकल्प की तरह बार ,बार उठते हैं दिमाग में तो लिख देने के बाद फिर सिर नही उठाते.

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  2. वाह, कितना अच्छा तरीका है शुभ संकल्पों को जगाने का..और एक न एक दिन तो वे भी पूरे होंगे ही..

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  3. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, " यूरोप का नया संकट यूरोपियन संघ... " , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  4. बहुत बहुत आभार !

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  5. मन को खेल है संकल्प और विकल्प। तभी तो ध्यान नही लग पाता।

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  6. सही कहा है आपने आशाजी, स्वागत व आभार !

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