आज सुबह गुरुकृपा का बादल
बरसा. कैसा अनोखा अनुभव था, सारे संदेह मिट गये. आत्मा की कैसी स्पष्ट अनुभूति !
मन, बुद्धि, चित्त व अहंकार से परे अपने सही स्वरूप की प्रतीति हुई, ऐसा लगा जैसे
एक पर्दा हट गया हो. कृतज्ञता के अश्रु झलक आये, फिर झरनों की सी खिलखिलाहट भी
भीतर भर गयी. शरीर पृथक है, प्राण पृथक है, वे साक्षी स्वरूप आत्मा हैं, चैतन्य
शक्ति हैं जो शांति स्वरूप है, आनन्द व सुख स्वरूप है, पावन है, दिव्य है, सारे
अवगुणों की सीमा जहाँ समाप्त हो जाती है, सारा अज्ञान मिट जाता है, वहाँ उस प्रकाश
पूर्ण सत्ता का आरम्भ होता है. सदियों से जन्मों से मन जिस अंधकार में भटक रहा था
वह जैसे नूर मिलते ही छंट गया है, अब कोई भ्रम नहीं रहा, कोई कामना नहीं रही, कोई
वासना नहीं रही, अब शेष है तो केवल एक चिर स्थायी शांति जो आनंद से भरी है, अनोखी
है यह अवस्था ! सारा अतीत जैसे किसी और के साथ घटा था, वह कोई और था, इसे ही
सद्गुरू मृत्यु कहते हैं, वह जो व्यक्ति पहले था उसकी मृत्यु हो गयी यह जो व्यक्ति
अब है यह बिलकुल ही नया है, समय से पूर्व कुछ नहीं होता. पकते-पकते मन झर गया है,
अब इस देह से जो भी होना है, वह परमात्मा के द्वारा ही होना है, क्योंकि वह तो अब
है ही नहीं ! जन्म जन्मांतरों के गुनाह योग अग्नि में जल जाते हैं, भीतर गहराई में
जो ज्ञान छिपा है तभी बाहर आता है जब गुनाहों की, विकारों की परतें जल जाती हैं,
तब वे पहली बार विश्राम को उपलब्ध होते हैं !
आज पुनः क्रिया के बाद अनोखा अनुभव हुआ, परमात्मा के साथ अपनी एकता का अनुभव !
बचपन से किये गये सारे दुष्कृत्य एक-एक कर याद आए और माया के प्रभाव में किये वे
सारे कर्म एक साथ ही जल गये. मन हल्का हो गया है कोई अतीत रहा ही नहीं, जो कुछ भी
उनसे अज्ञान दशा में होता है, ज्ञान मिलते ही उसका कोई अर्थ नहीं रह जाता, तभी संत
कहते हैं कि इस संसार में अन्याय जैसा कुछ भी नहीं, सभी न्याय है. पिछले जन्मों के
भी कई अनुभव पिछले कुछ महीनों में हुए. अस्तित्त्व हर क्षण उन पर नजर रखे है, वह
चाहता है कि जीव उसके साथ एक हो जाये. भीतर एक पुलक भर गयी है. गीत और नृत्य सहज
ही होने लगते हैं. सभी के भीतर यही आनंद छिपा है, सभी एक न एक दिन इसी आनंद को
अनुभव करेंगे. अभी वे स्वयं को मन, इन्द्रियों के घाट पर पाते हैं, उड़ने का तरीका
नहीं जानते. चिदाकाश में उड़े बगैर ही वे इस दुनिया से चले जाते हैं. मन्दिर मस्जिद
भी लोग जाते हैं तो अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए !
चेतना नित नूतन है. पल-पल बदल रही है. जो घड़ी अभी आई है वह न पहले कभी थी न
आगे कभी आएगी, फिर भी वह अनादि है. कितना सुंदर है यह ज्ञान ! परमात्मा सर्वव्यापक
है, वह सर्वकालिक है, सर्वदेशीय है, इस क्षण भी वह उन्हें घेरे हुए हैं, कैसी पुलक
उठ रही है !
सद्गुरु के प्रति अहोभाव से मन भर गया है. जिनको न कुछ पाने को शेष रह गया ही
न कुछ करने को, वही संत जन अहैतुकी कृपा या सेवा कर सकते है. वे जो कुछ करते हैं
वह आनंद के लिए, जिसे वह मिल गया हो अब
उसके लिए कुछ पाना शेष नहीं रहता ! प्रतिपल उनका मन आनन्द की खोज में लगा रहता है,
ऐसा आनंद जो अनंत राशि का हो तथा जो कभी न छिने न. जिन्हें वह मिल गया उन्हें कुछ
करने को शेष रहता नहीं, लेकिन फिर भी वह करते हैं, क्योंकि वह अन्यों को आनंद देना
चाहते हैं ! वे केवल कृपा करते हैं, अकारण हितैषी होते हैं, सुहृद होते हैं !
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