Tuesday, June 21, 2016

टैगोर की गीतांजलि



नन्हे से बात करके हमेशा बहुत अच्छा लगता है. उसकी कम्पनी तरक्की कर रही है. nabbo solutions नाम है उसका, तथा turbodor.in उसके वेबसाइट का नाम है. अगले वर्ष तक सम्भवतः वे संख्या में बढ़ जायेंगे, अभी कुल ७-८ लोग हैं और काम बढ़ेगा तो लोग भी चाहिए. वह जनवरी में आयेगा तब विस्तार से बतायेगा, अभी तो फोन पर हर दिन कोई न कोई बात बताता है. मार्च-अप्रैल में वे उसके पास जायेंगे, जब माँ-पिताजी घर जायेंगे. माँ की सेहत पहले से ठीक है, बस मानसिक रूप से वह कुछ असुरक्षित महसूस करती हैं. पिताजी अपने को व्यस्त रखते हैं और खुश भी !

कितना कुछ पढ़ने को एकत्र हो गया है, ढेर सारी पत्रिकाएँ हैं ही. नेहरू की ‘डिस्कवरी ऑफ़ इंडिया’, चित्रा बनर्जी की ‘illusions of palace’, रवीन्द्र नाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ भी लाइब्रेरी से लायी है. हिंदी पुस्तकालय से लायी आठ पुस्तकों में से ‘मीरा’ पर आधारित उपन्यास पढ़ना आरम्भ किया है. दिसम्बर का आरम्भ हो गया है. अभी-अभी एक बुजुर्ग परिचिता का फोन आया, वह अपनी बहू के व्यवहार से दुखी हैं, वह भी उनके व्यवहार से दुखी होगी. कल दोपहर को नैनी आई थी, वह अपनी नई मालकिन के बर्ताव से दुखी थी, यकीनन मालकिन उसके आचरण से दुखी रही होगी. यहाँ उनके घर में काम करने वाली नैनी भी दुखी है अपने पति से, जो उससे नाराज है. इस जगत में सभी तो दुखी दिखायी देते हैं. कोई एक-दूसरे को नहीं समझता. लेकिन यही तो होना ही चाहिए. जब सभी की बुद्धि पर मोह का पर्दा पड़ा हो तो कोई खुश कैसे रह सकता है. उनका मन ही दुःख का जनक है और मन नाम है अहंकार का, अहंकार पुष्ट होता है अपनी छवि को पुष्ट करने से, छवि पुष्ट होती है अपने बारे में सत्य-असत्य धारणाएं पालने से. इच्छाओं की पूर्ति होती रहे तो भी ‘मैं’ पुष्ट होता है. अपने में कोई सद्गुण हो या न हो पर होने का वहम हो तो भी अहम पुष्ट होता है और यह अहंकार दुःख का भोजन करता है. जब वे अपने ही बनाये भ्रम को टूटते देखते हैं तो भीतर छटपटाहट होती है, यह सब सूक्ष्म स्तर पर होता है इसलिए कोई इसे समझ नहीं पाता. वही समझता है जो अपने भीतर गया हो जिसने मन का असली चेहरा भली-भांति देखा हो, जो मन को ही स्वयं मानता हो वह कैसे इसे पहचानेगा. इसलिए जगत में कोई दोषी नहीं है अथवा तो सभी दोषी हैं. संतजन यही तो कहते आए हैं, जो जगा नहीं है, वह दुःख पाने ही वाला है !


लगभग दो हफ्ते पहले जो स्वप्न देखा था आज वह सत्य हो गया. सुबह छह बजे छोटे भाई का फोन आया कि बड़े चाचाजी का कल रात को देहांत हो गया. उनके पुत्र से बात हई तो उसने कहा, रात को बारह बजे उठकर उसने देखा तो उनके हाथ-पाँव ठंडे थे तथा आँख नहीं खोल रहे थे, पता नहीं कब उनके प्राण निकल गये थे. रात को ही एक बुजुर्ग महिला को वह ले आया था जो रिश्ते में स्वर्गीया चाचीजी की मामी हैं. आस-पास की महिलाएं भी आ गयी हैं तथा छोटी बहन को सांत्वना दे रही हैं. उसके पति भी आ गये हैं. 

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