अभी दो नहीं बजे हैं, आकाश
बादलों से घिरा है, ठंड भी बढ़ गयी है. उसने लंच के बाद जून के जाने पर कम्प्यूटर
ऑन किया. छोटी व बड़ी बहन के मेल थे. सद्गुरु का विस्डम संदेश भी था. दिनोंदिन जिसकी
भाषा परिष्कृत होती जा रही है या वह ज्यादा गहराई से समझने लगी है, कितने कम
शब्दों में कितना सटीक उत्तर वे देते हैं, अद्भुत है उनका ज्ञान, अद्भुत हैं वे !
परसों एक बुजुर्ग परिचिता का जन्मदिन है, उनके लिए कविता लिखी है. परसों ही सत्संग
भी है, जून को उसका वहाँ जाना पसंद नहीं है और उनकी इच्छा के खिलाफ कुछ करने का
अर्थ है घर में अशांति का पदार्पण ! उसका मन (आश्चर्य है कि अभी तक वह बचा है) विद्रोह
कर रहा है. आज सुबह सुना था “इच्छा शक्ति उमा कुमारी” इच्छा कभी पूर्ण नहीं होती, यही तो विडम्बना है. इच्छा से मुक्त होना हो तो
उसे समर्पित कर देना चाहिए ! जहाँ कामना है वहाँ सुख नहीं, वहाँ आनंद नहीं, वह भी
अपनी सत्संग में जाने की कामना ईश्वर को समर्पित करती है, आगे वही जानें !
दोपहर के दो बजे हैं. बगीचे में झूले पर वह बैठी है, धूप और छाँव दोनों ने जिस
पर इस समय अपना अधिकार जमा रखा है. उसके पैर धूप में है शेष भाग छाया में है पर
सिर की चोटी पर धूप की तपन का अनुभव हो रहा है, हल्की हवा भी बह रही है. सामने
मैजंटा रंग के फूल खिले हैं बायीं ओर एक बड़े प्लास्टिक के गमले में साइकस जाति का एक
पादप अपने पूरे गौरव के साथ उगा है. उसका सिर
थोडा भारी है और पेट भी, सम्भवतः वस्त्रों के कारण या सर्दियों की शुरुआत
में पौष्टिक भोजन के कारण ! कल शाम को सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था, वे संध्या भ्रमण
के लिए निकले तो उसने सत्संग में जाने की बात कही, जून ने चुप्पी ओढ़ ली, उसने कहा,
उन्हें उसकी जरा भी परवाह नहीं है. पर बाद में लगा यह ठीक नहीं था. उसके भीतर दो
व्यक्तित्त्व हैं, एक पूर्ण तृप्त है, वह रहस्यमय है, वह होते हुए भी नहीं के
बराबर है, एक दूसरा है जो जग में सबके साथ हिलमिल कर रहना चाहता है. वहाँ जाने
अथवा न जाने से उसे कोई हानि या लाभ होगा ऐसा भी नहीं है. हानि-लाभ की अब कोई बात
ही शेष नहीं रह गयी है. भजन गाते-गाते भाव में डूबना उसका सहज स्वभाव है, बस इतना
ही. सो वह इस नीले आकाश के नीचे चमकते हुए प्रकाश में हरियाली और हवा की इस गुपचुप
को सुनते हुए पंछियों के सुर में सुर मिलाकर अपने आप को जीवन की धारा में
निर्विरोध बहने के लिए छोड़ देती है ! जो हो सो हो...एक तितली उसके वस्त्रों पर आकर
बैठ गयी है, उस पर फूल बने हैं, वह शायद फूल की खोज में ही आई है और रस न मिलने पर
भी कैसे आराम से बैठी है.
आज फिर वही कल का सा समय है, झूले पर धूप-छाँव का खेल चल रहा है, जैसे जीवन
में प्यार और तकरार का खेल साथ-साथ चला करता है. जून के साथ उसका रिश्ता भी कुछ
ऐसा ही है. शाम को चार बजे मृणाल ज्योति जाना है, विश्व विकलांग दिवस के लिए
मीटिंग है. उसके बाद वे उन बुजुर्ग महिला से मिलने जायेंगे जिनका जन्मदिन है.
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