वे कैसे बेहोशी में जीये चले
जाते हैं. ऊपर-ऊपर से सब ठीक लगता है पर सब लीपा-पोती ही है, जरा सा खरोंचो तो
भीतर की सच्चाई का अहसास हो जाता है. भीतर ज्वालामुखी है, जहर है, क्रोध की आग है,
ईर्ष्या है, जलन है और न जाने क्या-क्या है. सारी शुभकामनायें एक झूठ है, सारा
स्नेह एक दिखावा है, इन्सान अपने लिए जीता है, अपने स्वार्थ सिद्ध होते रहें तभी
तक उसके संबंध सुमधुर हैं. सदियों से, हजारों सालों से संतजन सत्य ही कह रहे हैं.
इस संसार से जो आशा लगाता है, उसके हिस्से में दुःख के सिवाय कुछ भी नहीं आता.
दुःख से यदि मुक्ति चाहिए तो अपनी आत्मा का आश्रय लेना होगा, परमात्मा का आश्रय
लेना होगा, सद्गुरु का आश्रय लेना होगा. जीवन की कटु सच्चाई को कोई जितना शीघ्र
समझ ले उतना ही अच्छा है. यहाँ सारे नाते स्वार्थ पर टिके हैं, इन्सान अकेला ही
आता है, वह अकेला ही रहता है, और अकेला ही जाता है. इस अकेलेपन को एकांत बनाकर जो
अपने भीतर चला जाये और वहाँ सत्य को पा ले तभी उसका जीवन सफल है, वरना तो चिता की
आग तक जाते-जाते उसके मन में चिंता की आग कई बार जल-जल कर बुझेगी और बुझ-बुझ कर
जलेगी ! इस आग को बुझाने वाला शीतल जल केवल भीतर ही मिल सकता है, उसे तो उस जल का
पता मिल गया है !
आज नई ड्रेस पहनी है जो खास सर्दियों के लिए जून लाये हैं, वह चार-पांच दिनों
के लिए गुवाहाटी गये हैं. वह इस कमरे में हैं जहाँ कम्प्यूटर टेबल लगा दी है, जो
उनका योग-ध्यान कक्ष है, तथा नन्हा घर आने पर वह यहीं रहना पसंद करता है. पिछली
बार आया था तब उसने असमिया, बंगाली तथा पाकिस्तानी गीतों का एक अच्छा संग्रह नेट
से किया. आज कुछ देर तक सुना.
जून कल आ रहे हैं, फ्रिज में सब्जियां भी खत्म हो रही हैं और दालें भी, अपने
आप भी बाजार जा सकती है पर सोचती है कि एकाध समय यदि कुछ विकल्प ढूँढ़कर काम चलाया
जाये तो अच्छा रहे, सभी कुछ हर समय मौजूद हो तो आदमी का मस्तिष्क जड़ हो जाता है.
आवश्यकता आविष्कार की जननी है. शाम को यूँ तो क्लब की तरफ से बाल दिवस के लिए
उपहार लेने जाना है. इस बार लेडीज क्लब सामान्य बच्चों के लिए केवल एक फिल्म दिखा
रहा है और विशेष बच्चों के लिए सैंडविच, उबले अंडे, चार्ट पेपर, साबुन, टॉवल व एक
बाथ टब भी दे रहा है, साथ ही कुछ गेंदें व गुब्बारे भी ! बबल मेकर भी दिया जा सकता
है. अगले दिन वे भी बाल दिवस मनाएंगे ‘अंकुर’ के बच्चों के साथ, केक या अन्य़ कोई
मिठाई वह घर से बना कर ले जा सकती है. उन्हें पेपर प्लेट्स भी खरीदनी होंगी. इस
समय माँ-पिताजी चाय पीकर आराम कर रहे हैं. माली बगीचे में काम कर रहा है, चारों ओर
सन्नाटा है, एक शांति ! उसके भीतर भी गहन शांति है, तभी भीतर का संगीत सुनाई दे
रहा है. आज ध्यान में एक नवीन अनुभव हुआ, कुछ क्षणों के लिए स्वयं का बोध भी जाता
रहा. सद्गुरु का शिव सूत्र सुना, कितना अद्भुत ज्ञान है, बात तो वही एक है, लेकिन
उसे कहने के हजार-हजार तरीके हैं. सदियों से संत कहते आ रहे हैं, लेकिन हर किसी का
ढंग अनोखा है, एक ही चेतना अनंत रूपों में विराज रही है. वह स्वयं अद्भुत है तो
उसका बखान करने वाले भी अनोखे क्यों न हों ?
sundar rachna, badhai
ReplyDeleteस्वागत व आभार रश्मिजी !
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