अभी कुछ देर पहले वह जून के
सहकर्मी के यहाँ होकर आई. उनकी पत्नी अपने पिता की मृत्यु पर ग्यारहवां मना रही
हैं पूरे उत्साह से, पति बाहर देश गये हैं. कल सुबह वह मृणाल ज्योति गयी थी.
बच्चों के साथ-साथ बड़ों को भी योगासन, प्राणायाम कराया. लड्डू बांटे, एक सखी उसके
साथ थी. आज कितने वर्षों बाद उसने जून को एक पत्र लिखा, वे उससे नाराज हैं और हर
बार की तरह उसकी दृष्टि में नाराज होने का कोई कारण नहीं है. हरेक के सोचने का
तरीका भिन्न होता है, दृष्टिकोण भिन्न होता है. उनकी नजर में गृहणी की जो तस्वीर
बनी हुई है कि पति घर आये तो पत्नी उसका स्वागत करती हुई घर पर ही मौजूद मिले, पति
के घर पर रहते वह अकेले कहीं न जाये. यह तस्वीर बहुत पुरानी हो गयी है. उन्होंने
स्वयं ही इंडिया टुडे में एक लेख पढ़ने को उसे कहा था, जमाना बदल रहा है, अब
महिलाओं को घर की चाहरदीवारी में बंद नहीं रखा जा सकता. दूसरी बात यह कि पिछले दस-बारह
वर्षों से वह ध्यान का अभ्यास कर रही है.
आर्ट ऑफ़ लिविंग का कोर्स किये उन्हें आठ वर्ष हो गये. उसके सोचने का ढंग बदलना
स्वाभाविक है. उसके लिए परिवार का अर्थ केवल चार-पांच प्राणी ही नहीं रह गया है.
सारी दुनिया ही उसका परिवार हो गयी है, अगर उसका थोड़ा सा प्रयास किसी के काम आ
सकता है तो उसे करके जो आंतरिक ख़ुशी मिलती है उन्हें इसका अंदाजा नहीं है. वह किसी
के काम आ सकें तभी उनके होने की सार्थकता है. रही बात सत्संग की तो उसने पहले ही
सोच लिया था जब समय बदल जायेगा तब भी वह महीने में एक या दो बार जाएगी. उनके विवाह
को दो दशक से अधिक हो गये हैं, एक लम्बी यात्रा उन्होंने साथ-साथ तय की है, कहीं-कहीं
कांटे भी मिले हैं लेकिन ज्यादातर फूलों का संग रहा है. उसने जून से कहा, वे जो अपने
स्वभाव से विवश होकर नाराज होने पर चुप्पी ओढ़ लेते हैं, इससे उनके कितना नुकसान
होता है इसका उन्हें पता ही नहीं. यह सिर्फ आदत है और कुछ नहीं. पहली बार यदि किसी
के मन ने निर्णय लिया कि यह बात ठीक नहीं है बस इसके बाद बात उसके हाथ से निकल
जाती है. भीतर विषैले हार्मोन्स अपने काम करना शुरू कर देते हैं, बेचैनी उसे उनके
कारण ही हो रही होती है, पर वह सोचता है, बाहर जो घटा वह उसके दुःख के लिए
जिम्मेदार है. ध्यान में उसने इसका अनुभव स्वयं किया है, इसलिए ही उसने दुखी होना
छोड़ दिया है. वह उन्हें हर रूप में हर हाल में बिना किसी शर्त के प्रेम करती है.
उनके भीतर भी प्रेम का सोता छिपा है उसे मुक्त होने दें, सहज रहें और अपने मन को
इतना विशाल बनाएं कि कोई उससे बाहर न रहे ! फिर उन्हें दुःख की छाया भी न छू
पायेगी. अंत में उसने उन्हें सदा प्रसन्न रहने की शुभकामनाएं दीं.
Cataracts होने की शुरुआत है
उसकी दायीं आँख में, कल वे डिब्रूगढ़ गये थे. डा. अग्रवाल ने बताया, कुछ दिनों से
देखने में पढ़ने में परेशानी हो रही थी. आँखों में हल्का दर्द भी था. चश्मा बनने भी
दिया है. प्रोग्रेसिव लेंस है, दूर का और पास का दोनों एक साथ. जून को भी दायीं
आँख में कमजोरी के कारण दवा डालने को दी है. जो उसे दिन में चार बार डालनी थी पर
भूल गयी. जून उसके लिए ‘आंखों के लिए योग’ का CD लाये हैं तथा नेट से cataracts पर
जानकारी भी. रामदेव जी बता रहे हैं सुबह उठकर आँखों पर ठंडे पानी के छींटे मारने
से तथा बाल्टी में आँखें खोलने व बंद करने से आँखें स्वस्थ रहती हैं. लौकी का जूस
तथा आंवले का रस लेने से भी आँखें ठीक रहती हैं. कैट्रेक का मुख्य कारण है ओक्सिडेटिव
स्ट्रेस जिसको दूर करने का उपाय है एंटी ओक्सिडेंट, जिसका स्रोत है विटामिन ए, सी,
इ तथा ल्यूटिन और फल व सब्जियाँ.
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