Wednesday, December 16, 2015

बापू का सत्याग्रह


एक में होना ही स्वर्ग में होना है, दो बनाना ही नर्क में होना है. जब वे नहीं बचते तभी परमात्मा होता है, जब तक वे हैं, तब तक परमात्मा नहीं ! नहीं होंगे दोनों एक साथ कभी भी ! वे तो न जाने कितने जन्मों में होते आये हैं, परमात्मा कभी-कभी सद्गुरू की कृपा से ही प्रकट होता है. उनका मिटना भी उसी की कृपा से सम्भव है. देखने की कला आए तो संसार के भीतर ही परमात्मा मिलेगा. जो निकट है वह उन्हें नहीं दीखता, वे भगवान को एल पल में ही भुला देते हैं, उसे भुलाने में एक पल भी नहीं लगता और उसे पाने में भी एक पल ही लगता है. लेकिन भुलाने के पल तो सदा ही सामने रहते हैं, मिलन का वह पल दुर्लभ है, वह कृपा से ही मिलता है. कृपा भी उसी को मिलती है जो सजग है. परमात्मा को सजग हुए बिना कैसे पा सकते हैं, जो चैतन्य है उसे चेतन ही जान सकता है ! वे जिस क्षण पूर्ण सजग हैं मानो परमात्मा के साथ ही हैं. इसलिए कहते हैं इस राह पर चलना तलवार की धार पर चलने के समान है, जहाँ ध्यान हटा वहाँ घाव हुआ, उनके मन को जो सता जाता है वह हर विकार तलवार की धार ही तो है ! उसने पिछले दिनों ये सुंदर बातें प्रवचन में सुनी.

आज बहुत दिनों बाद बिजली इतने घंटों से गायब है, आज बहुत दिनों के बाद स्वप्न में अपने भीतर ऊर्जा को ऊपर चढ़ते महसूस किया, स्वयं को हवा में उड़ते महसूस किया. कितना अद्भुत स्वप्न था. आज बहुत दिनों बाद सुबह निर्धारित नाश्ता भी नहीं बनाया, जब समय हुआ तब जो मन में आया बना दिया. जीवन एक बंधे-बंधाये ढर्रे से हटे तो कभी-कभी हटने देना चाहिए. वे चाहते हैं कि जीवन एक तयशुदा मार्ग पर चलता रहे, कि वे कभी भी मुश्किल में न पड़ें पर मन का स्वभाव ही ऐसा है वह परिवर्तन चाहता है. चैतन्य भी तो विविधता को पसंद करता है. कितने-कितने रूपों में वह प्रकट हो रहा है, पौधों के कितने प्रकार, जीवों के कितने प्रकार, नये-नये बन रहे हैं, पुराने नष्ट हो रहे हैं. वह चैतन्य जब माया से आविष्ट होता है तो अनेक नामरूप धर लेता है, वैसे ही आत्मा जब मन के रूप में प्रकट होती है तो नये-नये विचार गढ़ती रहती है. नई-नई कल्पनाएँ और नये-नये भाव हर पल सब कुछ नया है, न हो तो जीवन कितना उबाऊ हो जाये. हर इन्सान हर पल नया हो रहा है, हर क्षण प्रकृति बदल रही है, तभी तो वह सूरज वही चाँद युगों-युगों से हर दिन अपनी और खींचता है !

आज ‘गाँधी जयंती’ है, आज का दिन ‘विश्व अहिंसा दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है. आज के दिन वे एक छोटा सा कदम अपने वातावरण को शुद्ध करने में ले सकते हैं कि जो भी कूड़ा उनके घरों से निकलता है वह अलग-अलग करके फेंका जाये, जो खाद बन सकता है, उसे अलग रखें. प्लास्टिक का इस्तेमाल कम से कम करें. उन्हें गांधीजी के बताये रास्ते पर चलना है तो मनसा, वाचा, कर्मणा एक होना होगा. भीतर जो भाव हैं वही वाणी से व्यक्त हों तथा वही कर्मों में बदलें. वे अपने आदर्शों तथा व्यवहार का अंतर कम करते-करते बिलकुल खत्म ही कर दें. उनका चिन्तन सत्य और अहिंसा को जीवन के हर क्षेत्र में लेन के लिए अग्रसर हो. टीवी पर गांधीजी की पुत्री तारा गाँधी का गाँधी जयंती पर वक्तव्य आ रहा है. विश्वशांति के लिए गांधीजी के जन्मदिन पर होने वाले कार्यक्रम बहुत लाभप्रद होंगे. ‘सत्याग्रह’ की शताब्दी भी इस वर्ष मनायी जा रही है. वे अपने भीतर शांति का साम्राज्य कायम करें तो बाहर उनके चारों ओर भी शांति का साम्राज्य बनने लगेगा. उसे ऐसा कोई भी कार्य नहीं करना है जिससे भीतर की या बाहर की शांति भंग हो !

जून आज पुनः गोहाटी जा रहे हैं, उसे श्रवण की छूट है. चैतन्य अदृश्य है, वह दृश्य का सहारा लेकर टिका है. जैसे संगीत वीणा के माध्यम से प्रकट होता है, आत्मा की किरण देह के माध्यम से प्रकट होती है. देह का इतना ही मूल्य है कि वह उस किरण के सहारे परमात्मा के सूरज से मिला दे. आत्मा भीतर है मन कहीं नहीं, मन को खोजने जाएँ तो कहीं मिलता नहीं, वहाँ शून्य के सिवाय कुछ भी नहीं, ध्यान में मन खो जाता है, आत्मा प्रकट हो जाती है, जितनी देर मन नहीं है, वे सहज रहेंगे, परमात्मा ही उनके द्वारा प्रकट हो रहा होगा !


3 comments:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-12-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2193 में दिया जाएगा
    आभार

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  2. स्वागत व आभार दिलबाग जी !

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