आज सत्संग उनके यहाँ है,
मौसम गर्म है सो ज्यादा लोग नहीं आएंगे, ऐसे भी आजकल गिने-चुने लोग ही आते हैं. सुबह
क्रिया भी पीछे आँगन में की, सुबह साढ़े पांच बजे ही हवा का नाम नहीं था, जैसे
प्रकृति की लीला ! उन्हें उसे सहज भाव से स्वीकारना चाहिए. नन्हा सुबह अपने मित्र
को लेने रेलवे स्टेशन गया. उसका मित्र बौद्ध है, उसके बाल लम्बे हैं, पीछे बांधता
है, चौड़ा चेहरा, दोहरा तन, हिंदी अच्छी बोल लेता है क्योंकि बनारस में रहा है,
उसके पिता सारनाथ में बौद्ध विश्व विद्यालय में कार्यरत हैं. गर्मी के कारण उसकी
आँखों में हल्का दर्द है तथा जी भी भारी हो रहा है. अभी कुछ देर पूर्व उन्होंने सूप
पिया था और सम्भवतः बार बार पानी पीने से भी भरा-भरा सा लग रहा है.
आज सुबह उसने सुंदर
शब्द सुने थे, जिन्हें बाद में स्मृति के आधार पर लिख लिया. उनकी साधना इस जन्म
में जहाँ तक पहुँचती है, अगले जन्म में वहीं से आरम्भ हो जाती है. कुछ वर्ष पूर्व एक
दिन उसने स्वप्न में स्वयं को एक चारपाई पर पड़े देखा था, शायद अंतिम क्षण थे, आस-पास
के लोग मन्त्र उच्चार रहे थे, फिर उसने भी ॐ नमो भगवते वासुदेवाय कहना शुरू कर दिया
था, और थोड़ी ही देर में वह देह से ऊपर उठ गयी थी, तब कुछ भी समझ में नहीं आया था
पर वह स्वप्न आज समझ में आ रहा है. हर पल उनकी भाव मृत्यु हो रही है, क्योंकि वे
अज्ञानावस्था में रहते हैं, देह मानते हैं स्वयं को, पर जब ज्ञान होता है और स्वयं
को आत्मा जान लेते हैं तब मृत्यु नहीं होती, जिसकी भाव मृत्यु बंद हो गयी, वह मरता
ही नहीं, वह अजर, अमर, अविनाशी है. जो भाव मृत्यु है वह अहंकार की है, शरीर की
द्रव्य मृत्यु होती है, भाव मृत्यु का परिणाम द्रव्य मृत्यु है. जो-जो कर्म उन्होंने
आज तक मन, वाणी और देह से किये हैं उनका बंध तभी तक है जब तक अज्ञानावस्था है. जब
तक सफलता अहंकार से भर देती है और असफलता निराशा से तब तक वे देह से ही बंधे हैं. जगत
को दोषी न समझना साधना का मुख्य भाग है, यदि किसी को दोषी मान लिया तो फौरन प्रतिक्रमण
करके मन को निर्मल कर लेना होगा, नहीं तो कर्म बंधन में पड़ ही जायेंगे. जो स्वयं
को आत्मा देखता है वह अन्यों को भी आत्मा देखता है, आत्मा सदा निर्मल है.
आज मौसम अपेक्षाकृत
ठंडा है, रात को वर्षा हुई और उसके भीतर का तापमान तो सदा एक सा है. नन्हे के
मित्र से सुबह प्राणायाम की बात की, ध्यान की बात की, वह बौद्ध है, ध्यान का
संस्कार उसे जन्म से मिला है. वह शांत है, प्राणायाम भी थोडा बहुत जानता है. अच्छा
है कि नन्हे का मित्र है उस पर अच्छा प्रभाव डालेगा.
आज नन्हे का जन्मदिन है
वे पावभाजी बनाने वाले हैं. उसे सुबह उठाया, फूल और कार्ड दिए. आज ही के दिन वह
धरती पर आया था, उनके जीवन को नया अर्थ देने और उन्हें माँ-पिता का पद देने.
वृक्ष के मूल में यदि
खाद डालें तो फल प्रदान करता है और प्राणी फल ग्रहण करके खाद देते हैं. जीवन किस
तरह एकदूसरे पर आधारित है और एक चक्र में बंधा है. आज उसने आर्त ध्यान, रौद्र
ध्यान, धर्म ध्यान और शुक्ल ध्यान का अर्थ सुना. आरम्भ के दो ध्यान त्याज्य हैं और
अंत के दो ग्रहणीय. भूत के कारण आत्मग्लानि अथवा भविष्य की चिंता के कारण दुःख में
पड़ जाना आर्त ध्यान है जो दुर्गति में ले जाता है. दूसरों को दुःख देने की भावना
से रौद्र ध्यान तथा सुख देने की भावना से धर्म ध्यान होता है. धर्म ध्यान का फल
मोक्ष है. शुक्ल ध्यान में आत्मा की जाग्रति सदा बनी रहती है. आत्मा का ध्यान
मोक्ष का प्रत्यक्ष साधन है. मुक्ति की अनुभूति शुक्ल ध्यान से तत्क्षण शुरू हो
जाती है और क्रोध, मान, माया, लोभ, राग, द्वेष, मोह तथा मत्सर खत्म होने लगते हैं.
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