Friday, December 11, 2015

उड़ते हुए तिनके



आज इतवार है दोपहर के सवा तीन बजे हैं, जून आज गोहाटी गये हैं और अगले इतवार को लौटेंगे इसी समय. टीवी पर भजन आ रहा है, हे गोविन्द ! हे गोपाल ! अब तो राखो शरण..जब किसी को अपने भीतर एक ऐसा तत्व का पता चल जाता है जो है पर जिसको देख नहीं सकते, जो सारे शब्दों से भी परे हैं तो वह रह ही नहीं जाता, जो रहता है वह इतना सूक्ष्म है और उसकी तुलना में ये मन, बुद्धि आदि इतना स्थूल मालूम पड़ता है कि शरण में जाने की बात भी बेमानी लगती है, जो शरण में जायेगा वह स्थूल है और जिसकी शरण में जायेगा वह सूक्ष्म है. मन जब तक सूक्ष्म नहीं हो जाता, निर्मल नहीं हो जाता, सारे आग्रहों से मुक्त नहीं हो जाता, सारे द्वन्द्वों से मुक्त नहीं हो जाता, तब तक शरण नहीं हुआ, जब वह इतना सहज हो जाये इतना पारदर्शी कि सबके आर-पार निकल जाये, कोई भी अवरोध उसके सामने अवरोध न रहे, वह जैसे यहाँ रहकर भी यहाँ का न हो, उस सूक्ष्म में तभी प्रवेश हो सकता है. यह निरंतर अभ्यास की बात है, लेकिन धीरे-धीरे उनका स्वभाव ही बन जाये, तभी वास्तव में शरणागति घटित होगी, अभी तो वे पल-पल शरण में और पल-पल अशरण में आ जाते हैं.

हिंसा रहित समाज, द्वेष रहित परिवार, कम्पन रहित रहित श्वास, विषाद रहित आत्मा, गर्व रहित ज्ञान और भी कई ऐसे बातें यदि उनके पास हों तब कहना चाहिए कि उन्होंने जीना सीखा है, जीने की कला का लाभ लिया है. आज सुबह नींद पाँच बजे से कुछ पहले खुली. क्रिया आदि की. अभी कुछ देर पूर्व ही ध्यान से उठी है. एक दृश्य में देखा कि हवा बह रही है और फर्श पर पड़े तिनकों को उड़ा रही है, यह चेतना का ही चमत्कार है कि आँखें बंद हैं पर फिर भी सब कुछ दिख रहा है. आज बच्चे अभी तक नहीं आये हैं, शायद तेज धूप के कारण या कोई दूसरा कारण होगा. जून का फोन आया था, उत्साह पूर्ण थे. इन्सान को जीवित रहने का कोई न कोई कारण तो चाहिए न, उत्साह ही जीवन की निशानी है. वृद्ध लोग कैसे नीरस हो जाते हैं, उत्साह खो देते हैं, क्योंकि करने को कुछ बचा नहीं, नन्हे बच्चे हर वक्त कुछ न कुछ करते रहते हैं, उर्जा से भरे रहते हैं. कल शाम बहुत दिनों बाद सीडी लगाकर प्राणायाम किया, आज से नियमित करेगी, जून के आ जाने के बाद भी. बच्चों का ध्यान आ रहा है, जितनी आवश्यकता उन्हें उसकी है शायद उतनी ही उसे भी उनकी. कुछ देर सासूजी से ही बात की जाये, लगता है आज वे नहीं आयेंगे.  

ध्यान, ज्ञान, व्रत तथा पवित्रता जिसके पास है, वह उपासक बन सकता है. उपासक स्वयं का निर्माण करता है, वह जगत में रहकर भी जगत से ऊपर रहता है. आज भी सुबह नींद जल्दी खुल गयी, ध्यान आदि किया. जून से बात हुई, पहले कम्पनी के अधिकारियों की हड़ताल हुई फिर वापस ले ली गयी. नन्हे से भी रात को बात की. वह फोन पर देर तक बात नहीं कर पाती, सच तो यह है कि वह वैसे भी देर तक बात नहीं कर पाती, वार्तालाप की कुशलता उसमें नहीं है, सद्गुरू कहेंगे, कुछ मान के चलो, कुछ जान के चलो, कोई सद्गुण ( अगर बातचीत की कला सद्गुण है तो ) किसी में है ऐसा मानने से वह बढ़ता है खैर ! आज सुबह कैसा स्वप्न देखा, सेंट्रल स्कूल की एक टीचर के पति की मृत्यु का अफ़सोस करने वह वहीं के एक शिक्षक के साथ गयी है पर वहाँ का नजारा ही अलग है. प्रिन्सपल हँस रहे हैं, बाद में एक अध्यापक आकर कहते हैं कि विधवा शिक्षक नौकरी छोडकर नहीं जाएँगी, कितना स्पष्ट दिख रहा था सभी कुछ, कल भी एक स्पष्ट स्वप्न देखा था. आज सुबह निश्चत किया कि साधना को गति देनी चाहिए तथा तय करना चाहिए कि लक्ष्य क्या है, उसे कब और कैसे पाया जा सकता है, कौन सा मार्ग शीघ्र वहाँ पहुंचा सकता है, ये सारी बातें तो वर्षों पहले सोचनी थीं, पर तब इतनी समझ ही कहाँ थी !


कल रात ओशो को सुना, किसी साधिका के पत्र का उत्तर दे रहे थे, रात को स्वप्न में देखा वह उसे भी दीक्षा दे रहे हैं. सुबह ध्यान में भाव जैसे उमड़े आ रहे थे. आज वर्षा हुई और तेज बादलों का गर्जन-तर्जन भी, पर इतने शोर में भी भीतर का नाद सुनाई पड़ रहा था भीतर सन्नाटा था ऐसा गहरा मौन कि अभी तक उस मौन की गूँज छायी है. उसे अपनी साधना को तीव्र करने का मौका मिला है, इसके एक-एक पल का लाभ लेना चाहिए. परमात्मा के विषय में यदि कोई गलत धारणा या अपनी महत्वाकांक्षा जो इसके आवरण में छिपी है, सबसे मुक्त करना होगा मन को, मन अथाह है तथा किस कोने में कौन सा जाला अटका है पता ही नहीं चलता. कोई द्वंद्व कोई द्वेष कोई कामना यदि भीतर कहीं छिपी हो तो उसका पता परमात्मा को है ही, वह कैसे आएगा, उसे तो पूर्ण समर्पण की तलाश है. वह सस्ता नहीं मिलता, पर वह जैसे भी मिले सस्ता ही है, क्योंकि वही तो है जिसकी कृपा से यह लगन भीतर जगी है, उसको याद भी किया तो क्या अपने बल पर, उसने चुना है उसे अपने लिए, उसके भीतर जो यह प्रेम जगा है उसका स्रोत तो वही है, जितना वह उसे ढूँढ़ रही है उससे ज्यादा वह उसकी प्रतीक्षा में है ! 

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