सारी रात सुबह की प्रतीक्षा करती रही. नींद आती भी कैसे.
आँखों में उस परम की छवि जो बसी थी. अंतर में उसका असीम स्नेह, उसके दिए प्रेम का
अनमोल भंडार ! कल शाम को क्रिया के दौरान उसे आनंद का वह स्रोत पुनः मिला. वह उससे
थोड़ी ही दूर पर प्रकाश के रूप में स्थित था. उसका हृदय भावों से भरा हुआ था.
निष्पाप, पवित्र हास्य जो झरने की तरह भीतर से फूट रहा था, नियंत्रित नहीं हो रहा
था, इतना तो शायद वह पिछले कई हफ्तों में मिलाकर भी नहीं हँसी होगी. इतना प्यार,
इतनी ख़ुशी उनके भीतर छिपी है, इतना ज्ञान भीतर छिपा है पर वे उससे दूर रहते हैं. सद्गुरु
की जीवन में कितनी महत्ता है, वह अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं. वास्तव में
वही जीने की राह दिखाते हैं. कल उसे अनुभव हुआ उसका जन्म इसी क्षण के लिए हुआ था.
उस क्षण की प्रतीक्षा में इतने वर्षों से उसके सारे प्रयास चल रहे थे. उस परम से
उसने पूछा वह कौन है, वह उसके सारे सवालों के जवाब दे रहा था. उसका प्रश्न समाप्त
होते ही न होते जवाब हाजिर हो जाता था. वह उसकी चेतना थी या उसकी चेतना का अंश, वह
जो भी रहा हो पर उसका मन गुरूजी व उनके शिक्षक के प्रति कृतज्ञता से भर गया है.
कल शाम ‘ज्ञान चर्चा’ के बाद घर आने से लेकर इस वक्त तक एक क्षण के लिए भी
उसके मन से गुरूजी और ईश्वर का भाव नहीं हटा है. मन उनके प्रति श्रद्धा से भर जाता
है. मन को जैसे एक आधार मिल गया है, अब तक सिर्फ अव्यक्त ईश्वर ही उसके प्रेम का
केंद्र था पर अब एक धारा गुरू की ओर भी प्रवाहित होने लगी है, जैसे ईश्वर ने ही
उन्हें भेजा है. ईश्वर के प्रति प्रेम ही वास्तव में प्रेम है, उसके लिए रोने और
हँसने दोनों में ही आनंद है.
कल वे तिनसुकिया गये थे, नया ‘म्यूजिक सिस्टम’ खरीदना था. उसके बाद शिक्षक को
लेने एक परिचित के यहाँ गये जो उन्हीं के यहाँ रुके हुए हैं. वापसी में उन्होंने
श्री श्री के बारे में बहुत सी बातें बतायीं. तेजपुर में होने वाले अगले कार्यक्रम
के बारे में भी बताया. art of living हजारों-लाखों व्यक्तियों के जीवन में
परिवर्तन ला रहा है और भक्तों को परमात्मा के करीब ला रहा है. जहाँ परमात्मा है
वहाँ क्या भय, वहाँ उसके अतिरिक्त कोई कामना भी नहीं रहती. वह तो सदा ही मानव के
हृदय में है पर वह उससे दूर बना रहता है. यदि कोई उसे अपने हृदय पर थोड़ा सा भी
अधिकार करने दे तो धीरे-धीरे वह उसका स्वामी बन जाता है. इतर इच्छाएं अपने आप झर
जाती हैं. एक उसी की सत्ता चलती है. उसके सान्निध्य में रहना मानो स्वर्ग में रहना
है. कोई विषाद शेष नहीं रहता. तन भी हल्का हो जाता है. आँखों में ऐसी गहराई की
दर्पण में स्वयं अपना चेहरा देकें तो पानी भर आता है. ईश्वर की स्मृति में डूबा मन
कैसे मस्ती का अनुभव करता है. बैठ-बैठे ध्यान में डूब जाता है !
No comments:
Post a Comment