आज गणेश चतुर्थी है, यहाँ यह ‘गणेश पूजा’ के रूप में
मनायी जाती है. जिसमें सार्वजनिक पंडाल लगाये जाते हैं, कुछ लोग मिलकर किसी के घर
में भी मूर्ति की स्थापना करते हैं. आज छोटे भाई का जन्मदिन भी है, पर माँ की
स्मृति में वे लोग नहीं मना रहे हैं, माँ जहाँ भी होंगी उनका आशीष भाई के साथ
होगा. ‘आत्मा’ में अभी-अभी बताया “जिनकी बुद्धि एकनिष्ठ नहीं होती, अनेक शाखाओं
में विभक्त होती है, उन्हें कहीं ठौर नहीं है, और एकनिष्ठ बुद्धि वाले को कहीं भी
जाने की आवश्यकता नहीं है”. जून को आज फ़ील्ड जाना है, नन्हा पढ़ने गया है. कल
उन्होंने गोभी की पौध के लिए बीज डाले थे. माली को डर था कि तेज वर्षा हुई तो सारे
बीज बह जायेंगे सो उसने एक शेड बनाया, सुबह वे उठे तो वाकई तेज वर्षा हो रही थी.
आज नन्हा सुबह छह बजे ही
स्कूल चला गया, हिस्ट्री की एक्स्ट्रा क्लास के लिए. वे सभी जल्दी उठे, इसलिए अभी
साढ़े सात ही बजे हैं और वह तैयार है. कल वे ‘गणेश पूजा’ देखने गये. शाम को चार
पत्र लिखे. बाबाजी ने कहा, साधक के दुःख का कारण राग-द्वेष ही है. उसे लगा वह ठीक
कह रहे हैं क्योंकि जब भी वे सांसारिक विषयों के बारे में बात करते हैं तो हानि-लाभ
की तराजू में तोलकर करते हैं. अपने विषय में बात करते हैं तो विषाद या आत्मप्रशंसा
के भाव के अलावा कोई तीसरा भाव नहीं आता. दूसरों के बारे में बात करते हैं तो
निंदा या स्तुति के भाव से घिरे रहते हैं. अर्थात राग-द्वेष कभी पीछा नहीं छोड़ता. सर्वोत्तम
यही है कि साधक बातचीत के लिए ऐसे विषयों का चुनाव करे जो भगवद् भाव से जुड़े हों
क्योंकि शेष से कोई आत्मिक लाभ नहीं होगा, मात्र क्षणिक सुख की प्राप्ति होती है,
वह भी बाद में दुःख का कारण बनती है. मौन रहना असत्य वाचन से श्रेष्ठ है और मन में
प्रयोजन हीन विचारों को न उठाना तो अतिश्रेष्ठ है. यह जीवन तो ईश्वर का उपहार है,
वही इसे चलाता, पोषता और सम्भालता है, फिर भी कोई कैसे कहता है कि उसके पास साधना
के लिए समय नहीं है, सारा समय भी तो उसी का है. पहला अधिकार तो उसी का हुआ न, एकमात्र
वही है जो हर पल साथ रहता है.
आज ‘ध्यान’ का एक सूत्र
देते हुए गुरू माँ ने कहा कि सत्संग में सुने वचनों पर मनन करते-करते जब मन ठहरने
लगे तो मानसिक मौन धारण कर लेना चाहिए या फिर अपने इष्ट की ध्यानस्थ मुर्ति की
कल्पना करें और वैसा ही भाव अपने हृदय में लायें, धीरे-धीरे चित्त की वृत्तियाँ
शांत होने लगती हैं. तब पिछले कर्म बांध नहीं सकते, बीता हुआ समय, बीते कार्य
वर्तमान को प्रभावित नहीं कर सकते. जो बीत गया वह मृत है, अतः मन पर बिना किसी
अपराध बोध को रखे नित नये जीवन का स्वागत करना चाहिए !
नन्हा आज बंद के कारण स्कूल
नहीं गया, जबकि जून गये हैं. जागरण में सुने वचन हृदय को गहराई तक छू गये हैं.
ईश्वर को पाना कितना सरल है, कितना सहज..जैसे श्वास लेना, लेकिन वे सही ढंग से
श्वास लेना भी तो नहीं जानते, उथली श्वास लेते हैं जो उथले विचारों की दर्शाती है.
श्वास के प्रति जागरूक रहने से कोई वर्तमान में रह सकता है अन्यथा भूत तथा भविष्य
की कल्पनाएँ पीछा नहीं छोड़तीं. बाबाजी ने सरल उपाय बताया, ‘प्रतिक्षण श्वास को आते-जाते
देखते रहें , सुबह उठकर तन को पहले खींचे फिर ढीला करें. ईश्वर को याद करें और दिन
भर के महत्वपूर्ण कार्यों पर नजर डालें, फिर बिस्तर छोड़ें और दिन भर में हर एक
घंटे बाद उस परम शक्ति को याद करते हुए दिनचर्या का पालन करें और रात्रि को भी गहरी
श्वास लेकर सोयें.’ यह अनुपम जीवन प्रेम की भावना का अनुभव करने के लिए मिला है,
अपने सहज रूप में रहते वक्त ही कोई शांत
रहता है, अधरों से गीत अपने आप फूट पड़ता है, जैसे पंछियों के गीत ! कल कविता की
डायरी देखी, एक महीने से ज्यादा हो गया है लिखे हुए, उसकी कवितायें वापस आयीं तो
लगा स्तरीय नहीं है, लेकिन उनका महत्व उसके स्वयं के लिए तो सदा है, किसी एक दिन
स्वतः ही प्रेरणा जगेगी और शुष्क हो गये कविता कूप में फिर से जल छलकेगा. कल दोपहर
‘हंस’ पढ़ती रही, कुछ कहानियाँ बहुत अच्छी थीं. आज सुबह से वर्षा हो रही है. मौसम
ठंडा हो गया है. नन्हे के पैर में दर्द अभी ठीक हुआ है.
आज तो बहुत कुछ सीखने को मिला.. कुछ कहने को शब्द चुक गये से लगते हैं!! इसलिये बस, नन्हे के पैर का दर्द ठीक हो गया जानकर अच्छा लगा!!
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