नियमों के पालन से मार्ग प्रशस्त
हो जाता है और मुक्ति का मार्ग मिल जाता है ! अनुशासन और नियन्त्रण जीवन को बंधंन
मुक्त ही करते हैं, बंधंन में डालते नहीं हैं. इस बात को आजकल वे महसूस कर रहे
हैं. जो किसी मार्ग को चुन लेता है तो अस्तित्त्व उसके जीवन की दिशा निर्धारित
करता है, वही उसके कुशल-क्षेम की जिम्मेदारी ले लेता है. मन में श्रद्धा रखते हुए
कर्म करना मानो मुक्ति के मार्ग पर आगे बढना है. ईश्वर ही जीवन का कर्ता-धर्ता है,
उसके प्रति प्रेम ही मन की कृतज्ञता जाहिर करता है, उसने इतना दिया है. वे चाहें
उसका उपकार मानें या न मानें तो भी वह हितैषी है, उसे जीवन में उतारना है, अवतरित
करना है. वह हर पल बुला रहा है. उसकी पुकार कितनी मोहक है. कल शाम ही वह गोहाटी से
वापस लौटी है. सुबह छोटी बहन, पिता, भाई, भाभी, सभी को art of living कोर्स के लिए
प्रेरित किया.
मन का धर्म जब ईश्वर भजन बन जाये तब वह अपने आप शुद्ध हो जाता है. दुर्लभ मानव
जन्म में दुर्लभ सत्संग भी मिला है इसके लिए वह ईश्वर की कृतज्ञ है लेकिन यह
कृतज्ञता दर्शाने का अर्थ है कि अब भी वह उससे पृथक है जबकि वह तो उसके कण-कण में,
रोम-रोम में है बल्कि वही तो है. गुरूजी की अमृत वाणी जितना पढ़ती है उतना ही मन
अभिभूत हो जाता है. ये हीरे बड़े कीमती हैं जो कौड़ियों के दाम नहीं मिलते.
आत्मस्वरूप से वे मुक्त हैं पर मन के स्तर पर बंधंन में हैं. आज एक सुंदर सूत्र सुना,
ध्यान के समय जब भी कोई ख्याल उठे तो उस हरकत के पीछे जो बेहरकत है उसे याद करना
चाहिए. दो विचारों के मध्य जो विराम रहता है और जिस तरह दो श्वासों के मध्य भी
अन्तराल होता है. उस पर ध्यान केन्द्रित करें तो मन शांत हो जाता है. जागृत होकर
ही कोई उस अन्तराल को जान सकता है,
शनिवार की शाम को जून ने जब कहा कि कम्प्यूटर अब नहीं चलेगा तो नन्हे को उसने
यह बात बतायी. तभी से वह उदास दीखता है. इतवार की सुबह उसकी चुप्पी पर प्रतिक्रिया
व्यक्त करते हुए उसने कारण पूछा, वह शांत रहा. फिर कल शाम को भी जब वह चुप्पा बना
रहा तो उसे कुछ बातें सुनायीं पर वह अडिग रहा. धैर्य और हिम्मत की उसमें कमी नहीं
है बस कमी है तो आत्मसंयम की. गेम खेलते वक्त वह उसमें डूब जाता है और पढ़ाई का
हर्ज होता है. इस बार के नम्बर इसकी खबर देते हैं. खैर, धीरे-धीरे वह सामान्य तो
होगा ही. कल से ही छुट्टियाँ शुरू हो रही हैं. इस समय टीवी पर ‘गीता पाठ’ आ रहा
है. माया के सम्पर्क में आने पर मन इच्छा न होते हुए भी विकार में लिप्त हो जाता
है. रजोगुण के सम्पर्क में आने से कामना उत्पन्न होती है, उसकी पूर्ति में बाधा
होने से क्रोध, क्रोध ही पाप कर्म में लिप्त करता है. उन्हें रजोगुण का त्याग करना
होगा. कल शाम को केन्द्रीय विद्यालय की एक अध्यापिका ने फोन करके ‘विश्व पर्यटन
दिवस’ पर जज बनने के लिए आमंत्रित किया. लेडीज क्लब की दो सदस्याओं ने जो वहाँ
टीचर भी हैं और गोहाटी वाले ग्रुप में भी थीं, उसका नाम सुझाया था. यह भी एक नया
अनुभव होगा और अब तो वह हमेशा उसके साथ है. मुस्कुराता हुआ, शक्ति और ज्ञान का
अतुलित भंडार, प्रेम का प्रतीक उसका परम प्रिय ! जीवन के हर पल में, हर परिस्थिति
में वह उनके साथ है, उनके कुशल-क्षेम की चिंता करते हुए, प्रेरित करते हुए !
सुबह की शुरुआत ध्यान से हुई, ईश्वर की कृपा उस पर हुई है जो मन पवित्र
विचारों का सान्निध्य ढूँढ़ता है. जून भी सुबह-सवेरे उठकर प्राणायाम करते हैं, उनका
भी मन प्रफ्फुलित रहता है. कल रात को छोटी बहन का फोन आया, पहले की अवस्था में
शायद वह भी कुछ देर सो न पाती पर अब विचलन क्षणिक होता है. आध्यात्मिक विकास हो
रहा है ऐसा प्रतीत होता है. आज गुरू माँ ने कहा, गुरू पर अगाध श्रद्धा रखने पर ही कोई
उच्च अवस्था तक पहुँच सकता है.
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