कल शाम को नन्हे को गणित पढ़ाते समय जब जून लाइब्रेरी
गये तो नन्हे ने अपनी आदत के अनुसार टीवी चलाया. वह दो मिनट के लिए कमरे से बाहर
गयी थी, लौटी तो नन्हा जोर से बुला रहा था. दो हवाई जहाज अमेरिका, न्यूयार्क में
स्थित दो इमारतों से टकराए, उनमें आग लग गयी. दोनों इमारतों में जो एक सौ दस
मंजिली थीं और जहाँ ट्रेड सेंटर था. अनेकों लोग उनमें फंस गये, आधे घंटे के अंदर-अंदर
दोनों ढह गयीं. कुछ ही देर में समाचार मिला कि एक अन्य अपह्रत विमान पेंटागन पर
गिरा. आत्मघाती दुर्घटना का चौथा विमान पिट्सबर्ग (पेंसिलवानिया) में गिरा. ये
सारे समाचार वे देख ही रहे थे कि जून वापस आ गये. नन्हा और वह दोनों आश्चर्य से यह
देख रहे थे लेकिन उसे इस दुर्घटना में मृत व्यक्तियों का ध्यान आ रहा था. उन लोगों
का जो घायल थे, बल्कि पूरे अमेरिकावासियों का दुःख उसका दुःख बन गया था. भीतर जैसे
घुटन हो रही थी, वह धुँए से भरे कमरों का अनुभव विचित्र था. दोपहर भर योगानन्द जी
की पुस्तक पढ़ी थी, अमेरिकी लोगों ने कितने स्नेह से उन्हें अपनाया था. वैसे भी
अमेरिका विश्व का अग्रणी है, यदि उसको इस तरह आतंकवाद का शिकार होना पड़े तो अन्य
देशों की क्या स्थिति हो सकती है, इसकी कल्पना दुष्कर है. अमेरिका में लाखों
भारतीय भी हैं, दोनों का घनिष्ठ संबंध है.
कल दिन भर टीवी पर अमेरिका
के समाचार ही आ रहे थे. न्यूयार्क, वाशिंगटन और पिट्सबर्ग में हुए हवाई हमलों में
मृत, घायल और पीड़ित व्यक्तियों का स्मरण होते ही मन संवेदना से भर जाता है. ( पहली
बार हवाई जहाज हमले में इस्तेमाल किये गये) बाबाजी कहते हैं. ईश्वर दयालु है,
समर्थ है, उदार है उसने उन्हें अपरिमित बल दिया है, आनंद का स्रोत दिया है, जिसे खोजने
में वे समर्थ हैं. उसकी कृपा असीम है. मानव जीवन ही अपने आप में एक उपहार है.
अमूल्य उपहार ! कल जून ने वह ‘पास’ लाकर दिया जिसे लेकर वे गोहाटी में श्री श्री
रविशंकर जी (सद्गुरु) द्वारा करायी जाने वाली सुदर्शन क्रिया में भाग ले सकते हैं.
अगले हफ्ते आज से छह दिन बाद ब्रह्म मुहूर्त में उनकी यात्रा का आरम्भ होगा और उसके
तीसरे दिन शाम को वह सम्पन्न होगी. उसके जीवन की पहली पूर्ण आध्यात्मिक यात्रा
होगी यह. कल शाम वे एक परिचित के यहाँ गये, उनके माता-पिता से मिलने, पर दोनों से
ही बातचीत नहीं कर सके. पिताजी की सुनने की शक्ति जाती रही है और माता जी भी
अस्वस्थ थीं, सो सोने चली गयीं. अशक्त माता-पिता से मिलकर शीघ्र ही वे वापस लौट
आये. कल शाम भी कुछ देर ही ध्यान, आसन कर सके. प्रकृति ईश्वर की इच्छा से चलती है,
यदि कोई प्रकृति के नियमों का पालन करे तो शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक स्वास्थ्य
बना रहता है.
जागृत अवस्था में मन, बुद्धि,
अहंकार, इन्द्रियां सभी अपने-अपने कार्य में सलग्न होते हैं. स्वप्नावस्था में
कर्मेन्द्रियाँ सक्रिय नहीं रहतीं पर मन व अहंकार सजग होते हैं. सुषुप्ति अवस्था
में मात्र अहंकार बचता है, स्वप्न में देखे विषय मन की ही रचना होते हैं, वे उतने
ही असत्य हैं जितना यह जगत, जो दीखता तो है पर वास्तव में है नहीं. वास्तविक सत्य
का बोध क्योंकि अभी तक हुआ नहीं, यह सब सत्य प्रतीत होता है. वास्तविक सत्य वही
परमब्रह्म है जिस तक जाना ही मानव का ध्येय है. आज दीदी से बात की, उनके परिवार
में लगभग सभी से बात हुई, बड़ी भांजी आज बाहर जा रही है. दीदी को भी कहा है, वह भी
art of living कोर्स अवश्य करें. बाबाजी कहते हैं कि यह उसी की दयालुता है उसी का
सामर्थ्य है कि वह हमें सत्संग के लिए प्रेरित करता है. ईश्वर के कहे हुए वचनों को
ही सद्गुरु बताते हैं, जिससे साधक कुछ क्षण उससे जुड़ जाते हैं. ये क्षण उन्हें दिन
भर भय, कठिनाई से मुक्त कर सकते हैं.
अमेरिका में हुए आतंकी हमले की घटना ने सम्पूर्ण विश्व को झकझोर कर रख दिया था. क्या बच्चे - क्या बूढे सभी स्तम्भित थे उस घटना से और शोकमग्न भी. आतंकियों का न कोई धर्म होता है, न कोई जाति और न ही कोई आस्था. मुम्बई की घटना देखकर तो मानवता तक काँप उठती है.
ReplyDeleteऐसे में श्री श्री के शिविरों और और उनमें बताए जाने वाले अभ्यास सचमुच मन को शांति प्रदान करते हैं और जीवन को दिशा!
सही कहा है आपने...स्वागत व आभार !
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