जागरण में सुने आज के वचन उसके
मन के भावों से कितने मिलते-जुलते हैं. एकमात्र ईश्वर ही उनके प्रेम का केंद्र हो,
जो कहना है उसे ही कहें, अन्यों से प्रेम हो भी तो उसी प्रेम का प्रतिबिम्ब हो.
परमात्मा की कृपा जब बरसती है तो अंतर में बयार बहती है, अंतर में तितलियाँ उड़ान
भरती हैं, अंतर की ख़ुशी बेसाख्ता बाहर छलकती है ऐसे प्रेम का दिखावा नहीं होता. वह
अपनी सुगंध आप बिखेरता है. दुनिया का सौन्दर्य जब उसके सौन्दर्य के सामने फीका
पड़ने लगे, उस सत्यं शिवं सुंदरम की आकांक्षा इतनी बलवती हो जाये ! उसके स्वागत के
लिए तैयारी अच्छी हो तो उसे आना ही पड़ेगा, अंतर की भूमि इतनी पावन हो कि वह उस पर
कदम रखे बिना रह ही न सके ! स्वयं को इतना हल्का बनाना है कि परमात्मा रूपी सूर्य
उन्हें अपनी ओर खीँच ले. आदि भौतिक दुनिया में हैं दिव्य दुनिया में जाना है.
आत्मबल वहीं से मिलता है. सदैव प्रसन्न रहना ही ईश्वर की सर्वोपरि भक्ति है.
बाबाजी कहते हैं, दिले में तस्वीर यार है जब चाहे नजरें मिला लीं..परिस्थिति कैसी
भी हो अपने भीतर के नारायण पर दृढ श्रद्धा हो तो हर बाधा हल हो जाती है.
कल वे पूजा देखने गये, पहले कितनी ही बार कितने पूजा-पंडालों में गयी है लेकिन
वह जाना अब लगता है व्यर्थ ही था. वे मात्र मूर्ति को देखते थे, भीड़ को देखते थे
और चमक-धमक को, जो आँखों को कितनी देर सुख दे सकती थी, पर कल उसे मूर्तियों के
पीछे छुपी भावना स्पष्ट दीख रही थी. उनकी आँखें बोलती हुई सी प्रतीत हो रही थीं.
ईश्वर जैसे उन मूर्तियों के माध्यम से उसके अंतर में प्रवेश कर रहे थे. लोग जो
वहाँ आये थे, पुजारी या नन्हे बच्चे, भक्त लग रहे थे. पवित्रता का अनुभव हो रहा
था, कैसी अद्भुत शांति. सब कुछ जैसे किसी व्यवस्था के अंतर्गत धीमे-धीमे से किया
जा रहा था. सबके पीछे जैसे कोई महान अर्थ छुपा हुआ था. ईश्वर के कार्य भी कितने
रहस्यमय होते हैं. वह पंडाल दर पंडाल उसे अनुभूतियों से तृप्त कर रहा था, उसकी
निकटता कितनी मोहक थी. मूर्तियों को गढ़ने वाले, उन्हें रंगने वाले, वस्त्र बनाने,
पहनाने वाले, पंडाल बनाने वाले अनेकानेक लोगों के प्रति, उन भक्त आत्माओं के प्रति
कितनी निकटता अनुभव हो रही थी. कितने लोगों ने अपने अंतर की सद्भावना का प्रतिरूप
उन मूर्तियों में गढ़ा था, वे कितनी सजीव लग रही थीं, जैसे बोल ही पड़ेंगी. उन्हें
छोड़कर जाते समय पीड़ा भी हुई और यह महसूस भी हुआ कि ईश्वर पग-पग पर मानव को
संरक्षित करते हैं, वह हर क्षण उसके साथ हैं. आज सुबह art of living की एक सदस्या
से बात हुई जो तेजपुर में रहती हैं. नन्हा और जून दोनों घर पर हैं, पूजा का अवकाश
आरम्भ हो चूका है. कल उसने शास्त्रीय संगीत के चार कैसेट भी खरीदे, जिन्हें अभी
सुनना है.
No comments:
Post a Comment