अहंकार हिंसक पशु से भी अधिक भयावह है,
जो मानव को संसार रूपी जंगल में भटका सकता है तो अहंकार से मुक्ति पानी होगी. इस
बात का भी अहम् ठीक नहीं कि ईश्वर ने उस
पर विशेष कृपा की है. कल रात ससुराल व मायका दोनों जगह सभी से बात की. छोटी बहन
फिर किसी पारिवारिक बात से परेशान है. सुबह संगीत की कक्षा में गयी, अभी कुछ देर
पूर्व ही लौटी है, वहाँ भी अहंकार की भावना आ रही थी कि उसकी आवाज थोड़ी मधुर हो
गयी है पहले से. ईश्वर की कृपा से ही यह सम्भव हुआ है. अब से हर पल सचेत रहना
होगा. कल एक योगी की आत्मकथा पुनः पढ़नी आरम्भ की है, रस आ रहा है. जीवन में रस न
हो तो क्या जीना. जून ने कहा उसके जीवन में दैवीय शक्ति का प्रवेश हुआ दीखता है.
कल सुमित्रानंदन पन्त की किताब ‘कला और बूढ़ा चाँद’ पढ़ी. उन्हें भी अतीन्द्रिय
अनुभव हुआ था. उनका आनंद भी अपरिमित था. उन्हें भी प्रेम व शांति की वैसी ही
अनुभूति हुई थी.
आत्मसाक्षात्कार का अर्थ है, आत्मा को जानना, आत्मा को जानने की
क्रिया दो प्रकार से वर्णित की गयी है, एक ज्ञान योग दूसरा भक्ति योग.
आत्मसाक्षात्कार ही जीवन का ध्येय है. गुरू को आत्मसमर्पण करने पर परमात्मा उस जीव
को शरण में ले लेते हैं. कृष्ण को समर्पित करके यदि सभी कार्य करें तो कार्य पूजा
हो जाती है. कल शाम एक मित्र के यहाँ गये. प्राणायाम आदि किया फिर चाय नाश्ता और
फिर जो उपस्थित नहीं थे उनकी चर्चा की, जो बेहद बुरी आदत है. अच्छी-भली शाम का
बेढंगा सा अंत कर लिया. जून को रात को नींद नहीं आई, उसे एक परेशान करने वाला सपना
कि जो भोजन उन्हें मिला है, उसमें रोटियों में बाल हैं. खैर, सुबह सामान्य रही. वह
अपना ध्यान भी कर पायी, पर मन में जो हर वक्त छलकता हुआ सा प्रेम, शांति और आनंद
का स्रोत था वह जाने कहाँ सूखता जा रहा है. वह है तो उसके ही अंदर, उस दिन वह
उजागर हो गया था और कुछ दिन उसे भिगोता रहा पर अब वह उसे इस तरह छोड़कर नहीं जा
सकता. उसे अपने भीतर से निकाल लाना ही आत्मसाक्षात्कार है. इसमें सहायक होगी उसकी
अपनी सजगता, हृदय का प्रेम और वाणी की मधुरता. यदि गोहाटी जाने का अवसर मिला तो एक
बार पुनः मन, प्राण ज्योति से भर उठेगा. आज से नन्हे की परीक्षाएं हैं. इस बार वह
शांत है, पता नहीं यह शांति किस बात का प्रतीक है. यह तो समय ही बतायेगा.
अभ्यास में और गहराई में
उतरना होगा, तभी अनुभव होगा. आज ही निर्वासनिक होना होगा. जीवन अभी है. शरीर आज है
कल नहीं रहेगा, जो रहेगा वह वही होगा, उसी का अंश होगा. इस समय मन में क्या चल रहा
है, इसका पता पल पल चलता रहे सुख का केंद्र परमात्मा भीतर है. उसी से जुड़ना है, यह
जुड़ाव यदि कायम रहे तो दुनिया की कोई वस्तु मिले या न मिले कोई अंतर नहीं पड़ता, तब
सारा विषाद न जाने कहाँ चला जाता है. मानव के पास श्रद्धा, ज्ञान और योग की कला
है. श्रद्धा के बना मनुष्य यंत्र के समान हो जाता है. श्रद्धा के साथ साथ उत्साही
और संयमी होना ही ज्ञान के पथ पर ले जाता है. जीवात्मा स्वयं को परमात्मा से जोड़
सकता है. अव्यक्त को व्यक्त करने की शक्ति मनुष्य में ही है. कबीर ने कहा है कि “मोहे
सुन सुन आवे हांसी, पानी विच मीन प्यासी”
अहंकार तो सबसे बड़ा शत्रु है मनुष्य का और कमाल तो यह है कि इसके इतने रूप हैं कि इसको पहचानना भी मुश्किल हो जाता है... जागते सोते यह इंसान का पीछा नहीं छोड़ता. एक से पीछा छुड़ाएँ तो दूसरी तरह का अहंकार घर बना लेता है...!!
ReplyDeleteएक योगी की आत्मकथा तो अद्भुत है. आश्चर्य, अविश्वास और आस्था के मिले जुले भाव मन में उमड़ते हैं पढते हुये. एक यात्रा है यह!!
वाकई..अद्भुत किताब है यह..स्वागत व आभार !
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