नन्हा विज्ञान पढ़ने गया है.
उसने ‘इंडिया टुडे’ में दिली के एक चूड़ीवाले के बारे में रोचक लेख पढ़ा .पढ़ते-पढ़ते
ही पता नहीं कब आँख लग गयी और स्वप्न में एक नन्हे बच्चे की गार्गलिंग जैसी ध्वनि
सुनी, आवाज इतनी वास्तविक थी कि वह झट उठ गयी. चाय पीकर तरोताजा हुई और स्वामी
विवेकानन्द की पुस्तक का अध्ययन शुरू किया, जो उसे बहुत भाती है. संगीता अध्यापिका
फिर चली गयी हैं, सो अभ्यास नहीं हो रहा. हर क्षेत्र में गुरू की आवश्यकता है. आज
शाम को क्लब में मीटिंग है, वह कुछ देर ध्यान करने के बाद ही जाएगी. पहली तारीख से
एक और कोर्स आरम्भ हो रहा है, पुराने प्रतिभागी भी जा सकते हैं. वे जायेंगे. पिछले
महीने के अंतिम दिन ही उसे वह अनुभव हुआ था जिसने उसके जीवन को बदल दिया है.
आज ध्यान में अद्भुत शांति का अनुभव हुआ. मन की आँखों से कई अद्भुत रंग देखे.
भीतर से एक ध्वनि भी आती प्रकट हुई पहले तो थोड़ा सा डर लगा पर बाद में सुनने में
भली लग रही थी. अब ध्यान के लिए बैठने पर मन शीघ्र एकाग्र हो जाता है. सुबह वे उठे
तो तेज हवा चल रही थी, देखते-देखते तेज वर्षा होने लगी. नन्हे को स्कूल जाना था पर
नहीं गया. आज से उसके स्कूल में ‘स्पोर्ट्स मीट’ शुरू हुई है. उसे बहनों को पत्र
लिखने हैं पर उस क्षण की प्रतीक्षा है जब सहज स्फुरणा होगी और कलम खुदबखुद चलने
लगेगी.
कल रात जब उन्होंने गेट पर ताला लगा दिया था तो केन्द्रीय विद्यालय की
अध्यापिकाएं आयी थीं फिर वे पड़ोसिन के यहाँ गयीं और वहाँ से फोन किया, पर उन्होंने
फोन भी स्टैंड पर रख दिया था जो इस कमरे से दूर होने के कारण सुनाई नहीं दिया, कुल
मिलाकर उनसे मुलाकत होनी नहीं बदी थी सो नहीं हुई. यूँ भी बिना इत्तला किया किसी
के यहाँ इतनी देर से जाना ठीक तो नहीं है. खैर, सुबह पड़ोसिन ने ये सारी बातें फोन
पर बतायीं तो नन्हे के हाथ से वह पत्र मंगवाया जो वे देने आयी थीं. कल दोपहर को
कार्यक्रम है.
आज सुबह प्रवृत्ति तामसिक थी, बिस्तर छोड़ने में थोडा विलम्ब किया फिर ध्यान भी
कहाँ गहन होने वाला था. कल शाम को जून के मजाक पर झुंझलाई और उससे पूर्व बातचीत
में परचर्चा की. नये संगीत अध्यापक मिले हैं, अगले हफ्ते फिर जाना है. संगीत की
शिक्षा मानव को ऊपर उठाती है और उसे तो उस पथ पर ही अब आगे बढ़ना है.
अक्तूबर का आरम्भ हो गया है. ‘जागरण’ में कृष्ण की गीता से आये अमृत वचन सुने
तो अंतर में आह्लाद हुआ. ईश्वर महान है विभु है पर भक्त के छोटे से उर में समा
सकता है. उसके दिव्य प्रेम का अनुभव ही साधक को बदल देता है. वही ज्योति बनकर
चैतन्य रूप में मानव के भीतर है. वह मित्र भी है और किसी की पुकार को अनसुना कर ही
नहीं सकता. ध्यान में तुष्टि बनकर वही तो साधक को प्रेरित करता है. कल शाम जून की
लायी एक पुस्तक पढ़ती रही. शाम को एक सखी के यहाँ से भी श्री श्री की भी दो
पुस्तकें लायी. उनकी कृपा है जो आनंद के स्रोत का पता बताया है. खबरों में सुना था,
विमान दुर्घटना में श्री माधवराव सिंधिया की मृत्यु हो गयी. जीवन कितना क्षणिक है.
अगले पल का भी भरोसा नहीं है. कल श्रीनगर में आतंकवादी हमले में इक्कतीस लोग मारे
गये, कौन कब किस वक्त इस धरती से उठ जायेगा कौन कह सकता है सो जितना उनका जीवन है,
वे पल-पल उल्लास पूर्वक जीयें, उस की याद में जीयें जो उनका पालक है, उन्हें चाहता
है. आज उसने योग शिक्षक को अपने अनुभव बताये तो उन्होंने कहा, अच्छा है, पर इसे बहुत
महत्व नहीं देना है. अहंकार को पोषने वाली हर शै से दूर रहना है. जिनमें उस की
स्मृति बनी रहे वही क्षण मुक्ति के होते हैं शेष तो बंधन में डालने वाले ही हैं !
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