Friday, June 13, 2014

सांध्य भ्रमण


आज शनिवार है, दस बजने में कुछ समय शेष है और यही है उसके लिखने का समय. कल शाम को एक सखी के साथ क्लब में ‘करीब’ देखी, आधी फिल्म देखकर जब वे लौट रहे थे तो उसने बताया कि उसे पैदल चलना और रास्ते में दिखने वाले फूल-पौधे, घास, पेड़ सब बहुत अच्छे लगते हैं, वह खुश थी पर घर जाकर उसने फोन किया, एक मित्र की कार का टायर पंक्चर होने से एक्सीडेंट हो गया, वे लम्बी यात्रा करके नई कार ला रहे थे, सभी सुरक्षित हैं पर गाड़ी को काफी क्षति पहुँची है. हर क्षण जीवन में कुछ न कुछ घटित होता रहता है लेकिन स्वप्न मानकर इन सब स्थितियों का सामना करने का माद्दा मानव में तभी आता है जब उसके विवेक का तीसरा नेत्र खुला हो, तब दुःख होता है जरूर पर कम होता है और उसका असर भी देर तक नहीं रहता.. उनके साथ घटी उस घटना को वे भी आज तक नहीं भूल तो नहीं पाए हैं पर उस वक्त भी उन्होंने समझ से काम लिया था और व्यर्थ की चर्चा से बच गये थे.

फिर एक अन्तराल, लिखने का अभ्यास बीच-बीच में छूट जाता है फिर एक दिन प्रेरणा होती है और कोरे पेज भरने लगते हैं. आज सुबह कई कार्यों के बारे में सोच रही थी जो करने हैं, कपड़ों की आलमारी सहेजना, फ्रिज की सफाई, बैठक की साज-सज्जा और रुमाल बनाने हैं जिनके लिए कपड़ा पिछले महीने लाई थी. माह का आज अंतिम दिन है, सुबह-सुबह छोटी बहन को जन्मदिन की बधाई दी. फोन से बात करके लगता है भेंट हो गयी, पत्रों का जमाना अब पीछे छूट गया, न किसी के पास पत्र लिखने का समय है न पढ़ने का. कल घर बात करके पता चला छोटे भाई को वायरल फीवर हो गया है. कल वे जून के जन्मदिन के लिए टीशर्ट खरीदने गये पर उन्हें कोई पसंद ही नहीं आई. आज सुबह जे कृष्णामूर्ति की किताब में पढ़ा, “जैसे-जैसे लोग बड़े होते जाते हैं, उनके मस्तिष्क मृत होते जाते हैं, वे संवेदनहीन बनते जाते हैं जिज्ञासा करना छोड़ देते हैं. शरीर की मृत्यु से पूर्व ही ज्यादातर मस्तिष्क की मृत्यु हो चुकी होती है.. ऐसा मन जो अपनी आदतों का गुलाम है, पलायनवादी है, संकुचित है मृतक के समान है. शब्द भी अपना असर न छोड़ें न ही यह दुनिया और उसके कार्यकलाप, न ही हर दिन को नया दिन मानने की और उत्साह पूर्वक उसका सामना करने की आकांक्षा, तब मानना पड़ेगा कि मन हार मान चुका है. उसे भी लगता है मानव वही है जो वह सोचता है. जो वह आज है वह उसके अतीत के विचारों का परिणम है और जो वह आज सोचती है वैसी ही भविष्य में होगी. परमात्मा ने उसे यह अवसर दिया है और उसे इसका सच्चाई और कृतज्ञता पूर्वक लाभ उठाना चाहिये.

अगस्त महीने का आरम्भ हुए तीन दिन हो गये हैं. But she could not write earlier. Today in the morning when she was reading “Ramayana” by R.K. Narayana based on Tamil Ramayana composed by “Kamban” , one known  lady,who is principal of a school, rang her and asked about joining her school, said that she had told her earlier about her wish to work in school. But Nuna said, no, it was she who had asked her. But now she has made her mind and is interested in teaching. Lady  was not at home, in fact she had not reached home when she rang her to tell her affirmation. She likes doing something more useful than sitting and passing time in this or that. Of course she will not leave music or reading books. Last evening they went to a birthday party, but the main topic of discussion was the train accident occurred on Monday night near Jalpaigudi between Avadh-assam and Brahma putra express. Many people died and many got injured. When she heard the news on TV, she was shocked and could forget it only while practicing music in her teacher’s place.


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