Tuesday, June 3, 2014

पतझड़ का मौसम


She began her spiritual journey long ago but still she is very far from destination, when in college read books and in those days she used to feel a presence but with passing of years began to doubt even in its existence. Now again after fruitless effort  of obtaining true happiness and peace that never lasts, she has come to Him. He says that she should change herself because all her sorrows and despairs are her own creations, created by ego. When she will do her duties with selfless love she will be happier, and when she will be at ease with herself, Meditation will find its way, nowadays mind wanders because it has no base to stay in. Buddha also says your mind is your friend and is your enemy. It is  mind with false ego which dances  on its tune. Never doubting  real self one should be above from its whims and fancies.

शाम का वक्त है, मौसम अच्छा-खासा है, न सर्दी न गर्मी, न पूरी तरह दिन अस्त हुआ है न दिन शेष ही है. शाम का ऐसा सुहाना वक्त जब दिन और रात मिलते हैं. पडोस की छोटी लड़की घर की सीढ़ियों पर बैठकर कविताएँ याद कर रही है. माली दिन की जाती रोशनी में गुलाब के पौधों की निराई करने में व्यस्त है. वह इतने सारे घरों में काम करता है, सुबह से ड्यूटी बजाते-बजाते हर दिन किसी न किसी घर में शाम हो जाती है. पूसी, घर की बिल्ली घास पर लेटी अपनी थकान मिटा रही है. बीच-बीच में चौकन्नी होकर इधर-उधर ताकने लगती है फिर बदन सिकोड़ती हुई गड्डमड्ड सी हो बैठ जाती है. मई महीने की शाम वर्षा के कारण थोड़ी सी नमी लिए हुए है, पौधे हरे-भरे होकर शांत-संतोषी भाव लिए दीखते हैं. पौधों में जान होती है, शायद उनमें भावनाएं भी होती हों, वर्षों तक एक ही जगह खड़े-खड़े पीपल, आम और कटहल के पेड़ क्या ऊब नहीं जाते होंगे, सामने खड़ा कनकचम्पा का पेड़ आधा हरा है, नये कोमल पत्ते धारण कर चुका है और आधा अभी पुराने सूखे पत्ते लिए काला दीखता है. गुलदाउदी के पौधों में कुछ पर फूल आ चके हैं, कुछ अभी तक पुष्प हीन हैं. प्रकृति में सभी संयमी हैं, जिनपर फूल आ गये हैं उन्हें कोई घमंड नहीं और जिनपर नहीं आये हैं उन्हें कोई दुःख नहीं, वही पेड़ जो वसंत आने पर फूलों से लद जाता है, पतझड़ में ठूँठ सा लगता है पर अपने ऊपर सारे मौसमों की मार सहता हुआ तटस्थ भाव से खड़ा रहता है. दूर से कु कू.. की आवाजें आ रही हैं, दो पंछी जैसे जुगलबंदी कर रहे हों.

आज चार दिनों के बाद डायरी खोली है, पिछले चार दिन सुखमय थे, उसके मन पर किसी भी तरह का बोझ नहीं था, जिन्दगी पहले की तरह खुशनुमा लगने लगी थी और यह कायाकल्प हुआ काम करने से, उसने हर क्षण अपने को व्यस्त रखा. पिछले दिनों की उदासी अकर्मण्यता का परिणाम थी. हाथ सदा काम में लगे रहें तो मन भी शांत रहता है, कहीं कोई उहापोह नहीं. आज भी सुबह से कार्यों का क्रम जारी है. मानव अपने लिए परेशानियों की किले खुद ही बनाता चलता है. उम्र के साथ-साथ स्वभाव में जो परिपक्वता आनी चाहिए कभी-कभी उसका अभाव खटक जाता है. स्वयं को नहीं जाना, ऐसा लगता है. कभी कभी रात को जब नींद से आँखें बोझिल होती हैं. मन में विचार एक रील की तरह चलते हैं, एक-दूसरे से बिलकुल अलग विचार, जिन पर उसका कोई नियन्त्रण नहीं है. उसकी सारी समस्याओं का हल उसके अंतर में ही मिल सकता है क्योंकि वहीं चैतन्य का निवास है, जो मानव को अच्छे कर्मों पर आनंद और विकर्मों पर दुःख की अनुभूति कराता है. कल उसने तीन पत्र भी लिखे..


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