आज स्कूल में बहुत काम था, एक दो शिक्षिकाओं की अनुपस्थिति के
कारण उसे पूरे आठों पीरियड लेने पड़े, इस समय थकान महसूस कर रही है. एक अध्यापिका
ने उससे विज्ञान के प्रश्नोत्तर के बारे में पूछा तो वह टाल गयी, बाद में लगा बता
देना चाहिए था, कल स्कूल जाकर सबसे पहला काम यही करेगी. आज भी कक्षा में बच्चे
बहुत शोर कर रहे थे, एक सीनियर अध्यापिका
की कक्षा के सामने से गुजरी तो देखा बच्चे शांत बैठे थे, उसका भी यह स्वप्न है
शायद कल ही ऐसा हो.
आज स्कूल गयी तो मन में शुभेच्छा
थी और ढेर सारा कम्पैशन, एक अध्यापिका अनुपस्थित थी उसकी कक्षा में जाकर स्वयं ही
उसने कविता प्रतियोगिता के बारे में बच्चों को बताया. स्टाफ रूम में सभी अभी से आने
वाले वर्ष की बातें कर रहे थे. नई शताब्दी दस्तक दे रही है. उसके कदमों की आहट
दिलों की धड़कन बढ़ा रही है. कैसी होगी नई शताब्दी की प्रथम सुबह, क्या उस दिन गगन
ज्यादा नीला होगा, हवा कुछ अधिक शीतल, पक्षी का स्वर मधुरतर, लोगों के दिल मिले
हुए. पर इतना तो तय है पवन में आशाओं की खुशबू मिली होगी, करोड़ों लोगों के दिलों
की आशाओं की खुशबू !
आज दो किताबें वह असावधानी
वश स्कूल में ही छोड़ आई है, ध्यान उधर जाता है. संस्कृत में एक अध्यापिका ने कुछ
पूछा तो व्यस्ततता के कारण ठीक से बता नहीं पायी, खैर यह जरूरी तो नहीं कि सदा वह
सही ही रहे. स्कूल में रोज नई-नई बातें पता चलती हैं, पहले पता चला प्रोबेशन
पीरियड लम्बा चलेगा, दूसरी बात यह कि छुट्टियों की पे नहीं मिलेगी. इन सब बातों का
असर उस पर तो पड़ता नहीं क्यों कि पैसे के लिए न उसने काम किया है न कभी करेगी. उसे
ध्यान आया, आज जून ने जब कहा वे यात्रा में खरीदारी नहीं करंगे तो आग्रह क्यों कर
बैठी, नहीं जी, वे कुछ न कुछ तो लेंगे ही. यह आग्रह करने की मनः स्थिति जब तक
रहेगी तब तक चैन नहीं है. जो कुछ उसके पास अब है वही सारी उम्र के लिए काफी है फिर
और की आशा क्यों ? आशा करनी ही हो तो मन को विशाल बनाने की करनी चाहिए. जिससे सारे
बच्चों को इतने स्नेह दे सके कि उन्हें उस पर भरोसा हो. बुद्धि में सामर्थ्य हो और
अपने आप से शर्मिंदा न होना पड़े. आदमी क्या है यह उसके कपड़ों से नहीं उसकी आत्मा
से पता चलता है, आत्मा बेदाग हो कबीर की चदरिया की तरह, अपने कर्तव्यों के प्रति
सजग और अपनी उन्नति के लिए प्रयत्नशील !
कल क्लब से फोन आया, वार्षिक
पत्रिका के लिए उसे लिखना भी है और हिंदी के अन्य लेखों की एडिटिंग भी करनी है. स्कूल
की पत्रिका के लिए भी एक अधपिका के साथ उसे प्रेस जाना है. यदि सबकुछ ठीक रहा तो
अगले बीस-पचीस दिन उसे साहित्यिक गतिविधियों में सलंग्न रखेंगे. आज उन्हें नौ बजे
स्कूल जाना है, पहले गुरुद्वारा समिति की ओर से चित्रकला प्रतियोगिता है फिर
पेरेंट-टीचर मीटिंग.
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन नायब सूबेदार बाना सिंह और २६ जून - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार !
Deleteऐसा लगता है कि बहुत दिन हो गए. स्वास्थ्य की ओर से कोई परेशानी नहीं थी, बस कार्यालयीन परेशानियों से जुड़ी मानसिक चिंता थी जो पारिवारिक अव्यवस्था का कारण बन रही थी. किंतु अब सब ठीक है. थोड़े दिनों में सामान्य हो जाएगा सबकुछ.
ReplyDeleteयह देखकर अच्छा लगा कि उसने स्कूल में पढाना शुरू कर दिया है. हालाँकि उसका कहना यह है कि यह काम उसने पैसों के लिये नहीं किया है, फिर भी उसकी इस सोच से मैं सहमत नहीं हूँ. जबतक यह भावना रहेगी, तब तक काम पर पूरा ध्यान नहीं दे पाएगी वो. किसी भी मतभेद अथवा मननुसार कार्य न होने पर उसे लगेगा - मैंने पैसा के लिये ये काम नहीं किया है, मेरे पास बहुत है. लात मारती हूँ ऐसी नौकरी पर!
दूसरी बात यह अखरी इस कड़ी में कि दो बार उसने किसी सहकर्मी अध्यापिका के कुछ पूछने पर नहीं बताया. कारण पता नहीं.
शताब्दि का आगमन या नववर्ष का आगमन वैसे तो कुछ भी नया नहीं लाता (मैंने एक लम्बी कविता लिखी थी लगभग 20 वर्ष पहले) किंतु एक आशा और उम्मीद तो लाता है ही.
आशा करता हूँ अब रेग्युलर रहूँगा! क्षमा! आपको पढना मुझे भी बहुत कुछ सिखाता है और न पढना मेरी ही क्षति है! आई मीन इट!
स्वागत है.. आपकी बात सही है पैसे के महत्व से इंकार नहीं किया जा सकता पर उसे कौन समझाये..किसी के पूछने पर कुछ न बता पाने का कारण तो यही हो सकता है कि समय न हो या उसे पता ही न हो..आपकी वह कविता ब्लॉग पर लिखिए, आभार !
ReplyDeleteआम तौर पर मैं लिंक शेयर नहीं करता... स्वयम का विज्ञापन सा लगता है.. उस कविता एक अंश मैंने 2011 में अपने ब्लॉग पर प्रकाशित किया था
Deletehttp://chalaabihari.blogspot.in/2011/01/blog-post.html