Saturday, June 28, 2014

महाबलिपुरम के मन्दिर



वे कल शाम लगभग सात बजे कोलकाता पहुंचे. फ्लाईट दो घंटे लेट थी. डिब्रूगढ़ एयरपोर्ट पर ही उन्हें लंच परोस दिया गया, लोग अटकलें लगाने लगे कि फ्लाईट जाएगी भी या नहीं, चार बजे ही यहाँ अँधेरा होने लगता है, अंततः साढ़े तीन बजे उनकी यात्रा शुरू हुई. उनके साथ दो अन्य मित्र परिवार भी दक्षिण भारत व गोवा की यात्रा पर निकले हैं. सभी प्रसन्न व उत्सुक हैं. समूह के तीनों बच्चे भी यात्रा का पूरा आनन्द उठा रहे हैं. नन्हा खिड़की के पास बैठा आकाश व प्रकृति  के सुंदर दृश्यों को निहार रहा था, उसके लिए जहाज के पंखों को खुलते व बंद होते देखना भी एक अच्छा अनुभव था. कोलकाता एयरपोर्ट से गेस्ट हाउस तक के रस्ते में प्रदूषण, ट्रैफिक जाम तथा लोगों की बेतहाशा भीड़ का सामना करना पड़ा जिसने उन्हें बेहद थका दिया. यह अतिथि गृह नया है, कमरे में टीवी भी है सो वे अपना मनपसन्द धारावाहिक भी देख सके. उसने आते ही पंजाबी दीदी को फोन किया पर शायद वे घर पर नहीं थीं. जून ने कैमरा खरीदने के लिए फोन पर पता किया पर उस स्टोर पर उनकी पसंद का मॉडल ही नहीं था. उन्होंने सोचा निकट ही एक बूथ पर जाकर रेलवे की बैक अप टिकट वापस कर दें, पर किसी कारण वश संभव नहीं हुआ, अब स्टेशन पर ही उन्हें यह काम करना होगा. 

वे घर से इतनी दूर हैं पर दूरी का अहसास नहीं हो रहा है. बिस्तर पर बैठकर लिखते हुए टीवी देखना यहाँ भी सम्भव है. नन्हे को घर की तरह बार-बार उठने के लिए कहना पड़ रहा है. यहाँ टीवी पर ५४ चैनल आते हैं, महर्षि चैनल भी जो वहाँ नहीं आ रहा था, यहाँ वह देख पा रही है. यह इमारत चारों तरफ से अन्य इमारतों से घिरी हुई है, हरियाली जो असम में खिड़की खोलते ही नजर आती है, यहाँ दिखाई नहीं दे रही है. किसी ने बड़े शहरों को कंक्रीट का जंगल ठीक ही कहा है.
चेन्नई
जब वे होटल पहुंचे तो उन्हें बताया गया उनके नाम की कोई बुकिंग नहीं है, जबकि तीन कमरे पहले से बुक करवाए गये थे, जून और नन्हा एक मित्र के साथ ट्रेवल एजेंट को ढूँढने गये, भाग्य से वह मिल गया और उन्हें तीन एसी कमरे दिए गये हैं. किराया ज्यादा है पर घर से बाहर निकलो तो कितनी ही बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है. रात को डेढ़ बजे वे कोलकाता से चले थे, उनके सहयात्री सुशिक्षित और मिलनसार थे. महिला telco के house journal की editor थीं और पति वहीं काम करते थे. नन्हा इस समय बालकनी में खड़ा आसपास का जायजा ले रहा है, जून कैमरा खरीदने गये हैं. मौसम यहाँ अच्छा है, जब वे स्टेशन पर उतरे ठंडी हवा ने स्वागत किया. ऑटो स्टैंड पर गये, जैसा कि उन्होंने सुना था, यहाँ के ऑटो चालक बहुत रूखे होते हैं, थोड़ी दूरी के बहुत ज्यादा पैसे माँगे, थोड़ी बहुत बहस के बाद वे उन्हें ले जाने को तैयार हो गये.

आज सुबह आठ बजे वे होटल बस द्वारा चेन्नई के आस-पास के पर्यटक स्थल देखने निकले. सर्वप्रथम वी.जी.गोल्डेन बीच देखने गये. सागर की शीतल व उत्ताल लहरें जैसे कोई संदेश दे रही थीं. विस्तृत तट पर बच्चों के लिए कई झूले भी लगे थे. फिल्मों के विशाल सेट्स भी लगे थे. इसके बाद सर्प पार्क में उसका विष निकलते हुए देखा, सर्प की कोमल त्वचा को छूकर देखना एक नया अनुभव था. अगला पड़ाव था महाबलिपुरम के चट्टान काटकर बनाये मन्दिर. सागर की लहरों को छूते विशाल मन्दिर तथा पांच पांडवों की याद में बने रथ दर्शनीय हैं. दोपहर बाद कांचीपुरम की यात्रा के दौरान वरदारजस्वामी तथा एकाम्बरनाथर मन्दिरों के दर्शन किये, जिन्हें विष्णु कांची तथा शिवा कांची भी कहते हैं. शिवा कांची काले पत्थर का बना विशाल, सुंदर, भव्य मन्दिर है जहाँ आम का हजारों साल पुराना एक आम का वृक्ष है. लगभग सभी मन्दिरों की हवा में कपूर व फूलों की गंध बसी थी. बस के कन्डक्टर कम गाइड का व्यवहार शायद प्रतिदिन एक सा काम करते करते कुछ रुखा सा हो गया था, उसका नाम रहमान था और वह मन्दिर के पुजारी के साथ काफी घुलमिलकर बातें कर रहा था. उन्होंने विचार किया कि क्या उन्हें जोड़ने वाला तत्व केवल व्यापर है या कोई ऐसी बात जो भारत को अन्य देशों से अलग करती है. यहाँ होटल में भी किसी कर्मचारी का बर्ताव उतना मधुर नहीं है, पर वे इतने प्रसन्न हैं कि इन छोटी-मोटी बातों से प्रभावित नहीं हो रहे, बल्कि सभी को प्रसन्न देखना चाहते हैं. अभी कुछ देर पूर्व सड़क के उस पार होटल में रात्रि भोजन हेतु गये. अभी मेज पर भोजन आया ही था कि साथ वाली मेज पर बैरे ने भाप निकलता हुआ फिश-सिजलर लाकर रखा, जिसकी तीव्र गंध में खाना तो दूर उसका बैठना भी मुश्किल हो गया. बाहर खुली हवा में आकर चैन की साँस ली. चाकलेट व चीज बाल खाकर गुजारा किया.





2 comments:

  1. कुछ बिखरा बिखरा सा लगा यह वर्णन. फोन से कैमेरा ख़रीदना सुनकर अटपटा सा लगा, फिर समझ में आया कि नेट से कैमेरा ख़रीदने की बात कह रही है वो. फेवरिट की स्पेलिंग ग़लत दिखी. मगर ज़िक्र कोलकाता का हो तो मेरे मन में वैसे भी पुलक पैदा हो जाती है!

    चेन्नै का अपना भी अनुभव बहुत बहुत ख़राब रहा है. बुकिंग करके मना कर देना और फिर दूसरे होतलों में ज़्यादा पैसे देकर जाना हमारे साथ भी हो चुका है. टैक्सी वालों की लूट तो शत प्रतिशत टैक्सी चालकों में है. लोगों का रूखापन बाहर से आए हुए लोगों के प्रति आम बात है. जबकि केरल में ऐसा बिल्कुल नहीं है!
    इस बार घर की बातें कम की हैं उसने! :)

    ReplyDelete
  2. त्रुटियों की ओर ध्यान दिलाने के लिए बहुत बहुत आभार, पहला पैराग्राफ पुनः पढ़ें अब शायद कुछ स्पष्ट होगा. घर से दूर होने पर उसे घर याद नहीं आता.

    ReplyDelete