Monday, June 2, 2014

ओस की बूंदें


वह लॉन में स्थित झूले पर बैठे हुए घिर आती संध्या का नजारा  देख रही है. ठंडी हवा का स्पर्श पाकर डाली के फूल झूल जाते हैं..और झींगुरों की आवाजें, आकाश के बदलते रंग, पेड़ हरे से काले होते जाते हैं. थम-थम कर पंछियों की आती हुई आवाजें, क्या स्वर्ग इससे भी सुंदर होता होगा. असम में दिन भर बरसने के बाद शाम को बादल थककर आकश में पसर जाते हैं, स्थिर.. जैसे सारे आकश को ढक लेते हैं. चान्द-तारे भी उसके पीछे छुप जाते हैं और शाम से पहले शाम होने लगती है. ऐसे में दिल कृतज्ञता से भर उठता है. इस सारे दृश्य के प्रति, हवा और ठंडक के प्रति, उस सृजनहार के प्रति जो उनसे दूर भी रहता है और करीब भी, वह जो मन को आकाश सा विस्तृत बना देता है, साफ और असीम.. सारे बंधन तोड़ देता है.

प्रतिक्षण, प्रतिपल छोटे-छोटे कदम बढ़ाये वह परम लक्ष्य की ओर बढ़ रही है, उसकी छोटी सी टॉर्च से घने अँधेरे जंगल में जहाँ तक रौशनी जाती है, वहाँ तक की दूरी एक बार में तय करते हए, रास्ते में कांटे भी हैं और पत्थर भी, लुभाने वाले फूल भी और मधुर स्वर भी पर किसी का आकर्षण उसे बाँध नहीं पायेगा और जीवन पथ पर उसके कदम बढ़ते जायेंगे. कवियों की कही बातें “जीवन का लम्बा सफर”..आज जाकर स्पष्ट हुई हैं. उसने कहीं सुना था, ‘दशरथ रूपी जीव कीर्ति रूपी कैकेयी के कारण दुखी होता है, राम राज्य की जगह राम वनवास हो जाता है’. पर उसे अपने अंतर में राम राज्य की स्थापना करनी ही है. राग, द्वेष, लोभ, मोह, आसक्ति, नफरत, चाह और असत्य के राक्षसों का नाश करके प्रेम, उदारता, मधुरता और नम्रता को मंत्री पद देना है. हर उस क्षण जब वह असत्य बोलती है, उसके अंतर में बैठा कोमल सत, चित आनन्द स्वरूप परमात्मा सिहर उठता है. वह तो उसे निर्देश देता रहता है. जीवन के छोटे-छोटे कार्यों को यदि उसका स्मरण करते हुए करे तो उलझनों में न पड़े. पीपल के पत्तों पर स्थित ओस की बूंदों की भांति नश्वर जीवन है, उसे इसी जीवन में इन्द्रधनुष बनाने हैं, सुमधुर गीत गाने हैं, शांति का साम्राज्य बनाना है. सहनशील बनना है. विकास की गुंजाइश बहुत है, अभी तो पहला पड़ाव भी नहीं आया है, चलना है बस चलते ही रहना है.

Today is 4th of may. It is raining, raining and raining since last two weeks. Every thing around is green and wet, trees are happy and so is grass, growing fast every moment, garden is overflowing with green. Nanha did not go to school today due to pain in his right thumb, he got hurt last evening while searching a book in the library,. It is 9 am he will come back any minute from hospital where he went with jun at 8 am. Last night they saw a movie so slept late, so she is feeling sleepy , could not concentrate on the book she was reading. Every pleasure demands its price.

Today is a warm day, Sun is shining  in the sky after so many days and every thing is shining in its light. Her heart is also somewhat calm today. In the morning when jun said her to getup, she was feeling so sleepy, did not wanted to leave the bed. It was Tamsik vritti and then they sent  Nanha to school and sat for guided Meditation but could not concentrate, jun went and she had breakfast then listened jagaran. They told so many good things. How to live in this world, to love everybody and every thing, to be happy…she was touched by their compassion and caring for the hearts of other persons. They are like Buddha, teaching goodness to humanity. But what is the solution of her nameless, faceless misery ? she, who has everything , who has everything required and can get anything, who has a loving and caring family. Who has a brain and sound body. May be she wants rest, real rest and then when she will getup, will be full of energy and joy !


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