दोपहर के सवा बारह बजे हैं. मौसम आज गर्म है, बाहर तेज धूप निकली है. गेस्टहाउस के इस वीआईपी सूट में एसी चलने से गर्मी का अहसास नहीं हो रहा है. आज यहाँ अंतिम दिन है, शाम को एक बार घर जाना है, माली से कुछ पौधों की कटिंग्स लेनी है. आर्ट ऑफ़ लिविंग टीचर से मिलना है और आठ बजे विदाई पार्टी के लिए क्लब जाना है. जून के सारे काम हो गये हैं, आज सुबह वे एडमिन डिपार्टमेंट गए थे. उसके पहले मागुरी बील से लौटकर नाश्ता किया. सुबह चार बजे से पहले ही उठ गए थे, पौने पांच बजे ही ड्राइवर आ गया था. आकाश पूर्व दिशा में लाल था, पर थोड़ी ही दूर जाने पर कोहरा छा गया और सूरज छिप गया. काफी देर बाद जब तिनसुकिया आने ही वाला था, कोहरा छंटा, सूरज तब तक ऊपर चढ़ आया था. टूरिस्ट कैम्प में पहुंचने पर गाइड मिला जो लकड़ी की नाव में एक नाविक को लेकर चला. दो प्लास्टिक की कुर्सियां उसने रखवा दी थीं. पिछले वर्ष फरवरी के महीने में में वे वहां गए थे, तो अनेक पक्षियों को देखा था. आज ज्यादातर स्थानीय पक्षी ही दिखे, दिसम्बर से प्रवासी पक्षी आना आरम्भ कर देते हैं. कमल के अनेकों फूल वहां खिले थे, श्वेत व लाल कमल दोनों ही थे. छोटे और बड़े कई पक्षियों जैसे किंगफिशर, वैगटेल बर्ड, ओपन बीक बर्ड आदि की तस्वीरें उतारीं. कितनी तरह की छोटी बड़ी मछलियां और बत्तखें भी यहाँ हैं. एक सुखद अनुभव था यह.
शाम के पौने सात बजे हैं, वे नए घर में हैं. उनकी जरूरत का हर सामान यहाँ है और जरूरत से ज्यादा भी ! कल सुबह साढ़े पांच बजे गेस्टहाउस से वे रवाना हुए थे और शाम को साढ़े आठ बजे के बाद ही नन्हे के घर पहुंचे. वे दोनों उन्हें लेने जब तक पहुँचते, वे पांचवी मंजिल तक आ गए थे. भोजन के बाद नीचे टहलने गए, हवा ठंडी थी पर भली लग रही थी. सुबह भी नीचे स्पोर्ट्स कोर्ट में बैठकर प्राणायाम किया. भीतर का गुरू या परमात्मा स्वयं पढ़ाने आता है. जिन श्वासों में उसे स्मरण नहीं करते, चंदन की लकड़ी का हम कोयला बना लेते हैं और गंगाजल को नाले में बहा देते हैं. जो सुगन्ध बनकर भीतर विद्यमान है उसे दुर्गंध बनाने की कला भी जगत सिखा देता है. सुख का सागर भीतर लहरा रहा है पर उन्हें तपती रेत पर चलना भाता है. जीवन जो प्रतिपल दिए जा रहा है, उसे न देख उन्हें मांगने से ही फुर्सत नहीं है. हर इच्छा उन्हें अपने स्वरूप से नीचे गिरा देती है. जीवन का यह मर्म सद्गुरु के सिवा कौन बता सकता है. अभी तो ट्रक आना शेष है, जिसमें मुख्यतः किताबें हैं और कुछ क्राकरी, शेष कपड़ों के कार्टन्स हैं. अभी तक तो ऐसा लग रहा है जैसे वे यहां घूमने आये हैं. वैसे भी आज वापस जाना है, परसों से यहाँ रहना आरम्भ करेंगे.
पिछले दो दिन नए घर को व्यवस्थित करने में कैसे निकल गए पता ही नहीं चला. कल दोपहर ट्रक आ गया था, शाम तक काफी सामान खोल लिया था. नन्हे का एक मित्र व उसकी पत्नी भी आये थे. पुलाव बनाया, सफेद डाइनिंग टेबल पर, नए डिनर नए सेट में, नए कुकर में बने पुलाव का स्वाद विशेष लग रहा था. इस समय रात्रि के सवा नौ होने को हैं. बाहर वर्षा होकर थम चुकी है. वे कुछ देर टहल कर लौटे हैं. कितने नए वृक्ष देखे और अन्य घर भी. कुछ लोगों ने बगीचे के चारों ओर बाड़ लगायी है, वे भी लॉन को दो तरफ से घेरने की सोच रहे हैं. खिड़कियों पर छज्जे भी लगवाने होंगे. आज बेडरूम की खिड़की खुली रह गयी थी, पानी भीतर आ गया. खिड़की के आगे एक बैठने का स्थान है, जिस पर कुशन लगा है, यहां बैठकर पढ़ने-लिखने का अपना ही आनंद है. बाहर कंचन का पेड़ है और हरसिंगार का भी, जो अभी खिड़की तक नहीं पहुँचा है. आज सुबह उसके ढेर सारे फूल उठाये और सुगन्धित श्वेत फूलों की एक माला भी मालिन दे गयी, जून ने उससे कहा है रोज दे जाये. अभी किताबों के बॉक्स खोलने शेष हैं. अगले एक हफ्ते में सभी कुछ व्यवस्थित हो जायेगा.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10.02.2021 को चर्चा मंच पर दिया जाएगा| आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार !
Deleteअच्छा संस्मरण।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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