Friday, September 14, 2018

देवदूत



दस बजने वाले हैं सुबह के. कल रात्रि साढ़े सात बजे हवाई जहाज उतरा, मंझला भाई लेने आया था हवाई अड्डे पर. नौ बजे तक वे घर पहुंच गये. बड़े भाई व भतीजी भी मिलने आये थे. भाई अब ठीक हैं. एक घंटे बाद सोने गयी, पहले नींद नहीं आ रही थी, फिर आ गयी और सुबह पांच बजे ही खुली. स्नान करके प्राणायाम किया, अनोखा अनुभव हुआ. ‘दिव्य समाज के निर्माण’ के सूत्र जैसे कोई भीतर सिखा रहा था. वह यही कोर्स करने ही तो आश्रम गयी थी. कल आश्रम में भी सुदर्शन क्रिया के बाद कितना अनोखा अनुभव हुआ था. एक नन्हे बच्चे का छोटा सा कोमल हाथ मस्तक को छूता हुआ सा लगा, फिर एक सुंदर महिला की आकृति बांयी तरफ सामने आकर बैठ गयी तथा एक पुरुष की आकृति दांयी ओर सामने आकर बैठ गयी. अद्भुत शांति का अनुभव हो रहा था. आज सुबह भी ध्यान घटा. अब भीतर जैसी स्थिरता का अनुभव होता है, वह पहले नहीं था. भक्ति नित नूतन होती है, पढ़ा था, पर अब इसका प्रत्यक्ष अनुभव हो रहा है. परमात्मा उनका सुहृद है, मित्र है, सखा है, ये न जाने कितनी बार लिखा होगा, वह उनका अपना आप है, वह उनसे अभिन्न है, वह उनसे दूर नहीं है, वह उतना ही करीब है, जितना वे स्वयं अपने आप से हैं, वह उनसे उसी तरह बातें करता है जैसे दो मित्र आपस में बातें करते हैं. वह अनुपम है, उसने खुद पढ़ाया उसे, दिव्य समाज के निर्माण का कोर्स. स्वीकार भाव को दृढ़ करवाया. उसका प्रेम अनोखा है !

वह आज गुड़गाँव में है, कल शाम ही यहाँ आ गयी थी, यहाँ के मैनेजमेंट संस्थान में, जहाँ जून की ट्रेनिंग चल रही है. कैम्पस बहुत विशाल है और हर-भरा व शांत है. प्रातःभ्रमण के समय उन्हें कुछ अन्य ट्रेनी भी मिले. दोपहर बाद वे बाजार जायेंगे और शाम को भाई के घर. कल सुबह उसे वापस घर जाना है. सुबह एक अलौकिक अनुभव हुआ. पांच बजकर ग्यारह मिनट हुए थे जब किन्हीं कोमल हाथों का स्पर्श दोनों कंधों पर पाकर उठी. कितना प्रेम था और कितनी शीतलता थी उस स्पर्श में, अनोखी थी उसकी कोमलता, कोई देवदूत था या परमात्मा के स्नेह भरे हाथ. उठकर स्नान आदि किया और प्राणायाम. उसे याद आया एक सुबह किसी मधुर आवाज ने उठाया, घंटी की सी आवाज थी. उस परम के पास हजारों साधन हैं, जब चाहे किसी का भी प्रयोग कर सकता है.

सितम्बर का आरंभ हुए दो दिन हो गये हैं. जून पेरिस पहुँच गये हैं. तस्वीरें भेजी हैं. शाम को भाई से बात की, उन्होंने पैकिंग आरंभ कर दी है. दो दिन बाद उन्हें आना है. घर की सफाई काफी हो चुकी है, कुछ कल हो जाएगी. सेक्रेटरी का फोन आया, कल दस बजे क्लब जाना है, बाजार भी जाना है, फूलों का एक गुलदस्ता भी लेना है. इस बार मीटिंग में एक सदस्या की विदाई पार्टी है, उन्हें देना है. इस बार वार्षिक सभा है, वर्ष भर में जिन लोगों को विदाई दी गयी, उन्हें याद करते हुए नाम कहना ठीक होगा, चाहे जितना भी समय लगे. मंझली भाभी से बात हुई, दीदी ने उन्हें अपने बगीचे की भिन्डी व तोरई भिजवाई है. आज टेलीफोन खराब हो गया, इंटरनेट नहीं चल रहा, वैसे भी पिछले कई दिनों से लेखन का काम बहुत कम हो पा रहा है. अब इस महीने भी ऐसा ही चलेगा. भीतर विश्रांति है, एक नई सी गंध हर समय बनी रहती है. पहले कभी-कभी आती थी, शायद इसका कारण शारीरिक से अधिक आध्यात्मिक है. उसे शुचिता का अधिक ध्यान देना होगा. होना ही पर्याप्त है जिसके लिए, ऐसी स्थिति अब बनती नजर आ रही है. आज सुबह ध्यान में कैसा विचित्र अनुभव हुआ. जैसे भूचाल आया हो, कितने ही दृश्य दिखे, छोटी भांजी को देखा, अपने किसी पूर्व जन्म में वह अंग्रेज थी.   

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