Monday, January 29, 2018

उड़ीसा के मंदिर


सवा दस बजे हैं, दोपहर का भोजन लगभग बन गया है. आज भी गर्मी बहुत है. पंखे के नीचे  बैठकर भी पसीना सूख नहीं रहा है. परसों दोपहर वे लौटे. सफाई का काम शुरू किया है. अगले महीने छोटी बहन आ रही है. उसके आने से पहले सभी कुछ ठीक-ठाक करना है. यात्रा विवरण लिखन आरम्भ किया  है. कल नन्हे का जन्मदिन है, कोई अच्छा सा व्यंजन बनाकर बंगाली सखी को भेजेगी. उसने परसों पनीर की स्वादिष्ट सब्जी भिजवाई थी, जब वे लौटे थे. उन्हें जो कुछ भी मिलता है, प्रकृति से, जगत से, वह उन्हें भरने के लिए है. उन्हें बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार करना आ जाये तो वे हर क्षण भरे जा रहे हैं. परमात्मा हर क्षण बरस रहा है. भीतर खाली आकाश है, जिसे जितना भी भरें वहाँ जगह है. यदि वे किसी का विरोध भी बिना विरोध के स्वीकारने की कला सीख जाते हैं तो हर क्षण उनके लिए एक नया अनुभव लेकर आता है. उनका अहंकार ही जगत से दूरी सिखाता है. उस दिन लेह में एक सखी का फोन आया, उनका तबादला पुनः यहाँ हो गया है. सम्भवतः इसी वर्ष वे लोग आ जाएँ. दुनिया गोल है, उनका जीवन भी लौट-लौट कर वहीं घूमता है. मन खाली है और भीतर एक गहन शांति है. अब जीवन जो भी लायेगा, सहज स्वीकार्य होगा !

आज गर्मी अपेक्षाकृत कम है. सुबह वर्षा के आसार नजर आ रहे थे. कल शाम काफी तेज वर्षा हुई. जून तिनसुकिया गये थे, ढेर सारे फल व सब्जियां लाये. आज नन्हे का जन्मदिन है उसने बायीं तरफ के दो दांत निकलवाये हैं, कह रहा था, काफी दर्द है. शाम को एक मित्र परिवार आ रहा है, दक्षिण भारतीय भोजन बनाया है यानि इडली, सांबर और नारियल की चटनी साथ में सेवईं की खीर और आम रस. बगिया से कच्चा नारियल भी तोड़ा है, उसके मीठे पानी के लिए. एक पका अनानास भी मिल गया. बगीचे में कटहल पकने लगे हैं, आज धोबी ने देखे, पर उसे तोड़ना नही आता. कह गया है, अगली बार ले जायेगा. वह माली से कह कर तुड़वा देगी.

साढ़े आठ हुए हैं, रात्रि के. जून को आज ही टूर पर निकलना पड़ा है, कार्य तो सोमवार को ही है, पर कल की कोई टिकट ही नहीं मिल रही थी. नन्हा घर से काम कर रहा है, उसका संदेश आया. आज नूना ने कटहल के बीजों की सब्जी बनायी थी. शाम को बगिया में कुछ देर काम किया, आजकल तितलियाँ बहुत आती हैं. गोयनका जी को सुनकर सोयी थी, स्वप्न में उन्हें देखा. सुबह स्नान के बाद एक गीत रचा पर बाद में भूल गयी, कुछ पंक्तियाँ ही याद रहीं. परमात्मा जिस क्षण मुखर होता है, तभी उन्हें अंकित कर लेना होगा. कभी-कभी ही ऐसे पल आते हैं. अब उसी का घर है उसका मन, स्वयं का होना ही तो दुःख है. मन का दूसरा नाम उलझन है, माया है, तो ऐसे मन को खाली रखना ही बेहतर है. अमन इसी में है और जब भी किसी का मन खाली हो जाता है, वही रहता है वहाँ !

इतवार की शाम. योग कक्षा में उड़िया सखी ने कोणार्क मन्दिर की कहानी बताई. मन्दिर का कलश नहीं लग पा रहा था तब एक कारीगर के बारह वर्षीय पुत्र ने आकर उसे लगाया था और स्वयं पानी में कूद गया. पुरी में सुभद्रा, बलराम व कृष्ण की मूर्तियाँ बनाने की कथा भी बहुत रोचक है. एक वृद्ध कारीगर मूर्तियाँ बना रहा था. वायदे के खिलाफ जब राजा ने उसे बीच में ही टोका तो हाथ नहीं बने थे. कितनी अनोखी कथाएं हैं भारत के अद्भुत मन्दिरों से जुड़ी. कृष्ण के पास तुलसी की सुगंध से भरा राधा का पत्र आया ऐसा एक गीत में उसने सुना था, यह भी उसने बताया. अगले हफ्ते रथयात्रा का त्यौहार है. उसी दिन ईद का उत्सव भी है. नन्हे से शाम को बात हुई, अब वह ठीक है.


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