Sunday, September 3, 2017

देवदत्त पटनायक की 'सीता'


शाम का समय है. कुछ देर पहले ही वे सांध्य भ्रमण करके आये हैं, कुछ देर टेबल टेनिस भी खेला. जून अपना कुछ कार्य कर रहे हैं. एक ही दिन में वे आईआईएम कोलकाता से काफी परिचित हो गये हैं. प्रातः भ्रमण के समय फूलों से सजे उद्यान देखे. जून नौ बजे कक्षा में चले गये. साढ़े ग्यारह बजे चाय का अवकाश था, उसे भी फोन करके बुला लिया. इसी तरह दोपहर का भोजन और शाम की चाय भी सबके साथ ही ली. उससे पहले वह को ओपरेटिव स्टोर गयी थी, छोटे-मोटे कुछ सामान खरीदे. वापसी में पुस्तकालय के सामने के उद्यान की तस्वीरें लीं. पता चला एक पुरानी परिचित महिला भी यहाँ अपने पति के साथ आई हैं, उनसे मिली. उन्हें अपने कमरे में बुलाया और बातों-बातों में ध्यान के महत्व पर चर्चा की. नन्हे का फोन आया. व्हाट्सएप पर संदेशों का आदान-प्रदान किया. देवदत्त पटनायक की अद्भुत पुस्तक ‘सीता’ पढ़ी. परमात्मा कहते हैं जो जिस भाव से उन्हें याद करता है वह उसी भाव में उसे प्रत्युत्तर देते हैं, क्योंकि मन या चेतना उसी का अंश ही तो है. पटनायक जी कहते हैं, देह या जगत उसी की शक्ति है जिसका उपयोग परहित में करना है. प्रकृति पर न तो नियन्त्रण करना है न ही एकाधिकार जमाना है बल्कि जो अन्य आत्माओं के लिए सुखद हो सके इस तरह की संस्कृति का विकास करना है. प्रकृति से संस्कृति की ओर जाना है न की विकृति की ओर.

इस समय रात्रि के आठ बजे हैं. आज का दिन कल से काफी अलग था. सुबह देर से आरम्भ हुई. सीता आगे पढ़ी. दोपहर को उन परिचिता को कैम्पस घुमाया., बाद में उन्हीं के साथ साउथ सिटी मॉल जाना भी हुआ. अभी-अभी छोटे भाई का फोन आया, विपासना कोर्स के लिए उसने बधाई दी. कल दोपहर के भोजन के बाद गंगा धाम जाना है. वहाँ यह डायरी भी साथ नहीं जाएगी. बाद में सभी कुछ स्मृति के आधार पर ही लिखा जायेगा.

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, सच्चा सम्मान - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. देव्प दत्त जी को भी पढ़ा है पर पता नहीं ! नरेंद्र कोहली जी की राम कथा ज्यादा दिल के करीब लगती है

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  3. दोनों का अपना अलग क्षेत्र है और अपनी शैली..स्वागत व आभार गगन जी !

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