Thursday, October 8, 2015

राम का बोध


आज ‘योग वसिष्ठ’ को पढ़ना पूर्ण किया. इसके अनुसार आत्मा का अनुभव ज्ञान के द्वारा ही हो सकता है. ज्ञान जब तक परिपक्व नहीं होगा तब तक अन्य साधनों द्वारा किया गया अनुभव टिकेगा नहीं. यह सारा जगत ब्रह्म ही है अथवा तो आत्मसत्ता ही जगत का आभास देती है. आदि में इस जगत के होने का कारण नहीं था, केवल चिन्मय तत्व था, उसमें संवेदन हुआ और धीरे-धीरे यह जगत संकल्प रूप से प्रकट हुआ. संकल्प ही सत्य होकर प्रकट होते हैं यह सबका अनुभव है. यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है. जीव वास्तव में शुद्ध आत्मा है जड़ का संयोग होने से स्वयं को जड़ जगत की तरह मानने लगा. जब मन पूरी तरह से खाली हो जाता है तो आत्मा का अनुभव होता है. भीतर से आकाश की तरह निर्लिप्त रहते हुए इस जगत में सहज प्राप्त परिस्थितियों में अपना कार्य मात्र करना है, न कुछ पाना है, न देना है, न कहीं आना है न जाना है. आत्मा अपने आप में पूर्ण है, उसे यह जगत स्वयं से अलग नहीं लगता. अद्वैत ज्ञान का अद्भुत ग्रन्थ है ‘योग वसिष्ठ’. भगवान राम का मोह नष्ट हुआ और परमपद को प्राप्त हुए, राम उसे भी परमपद प्रदान करेंगे !

शुक्रवार की रात से उल्फा ने आतंक का जो दौर शुरू किया है, वह थमने में नहीं आ रहा है. मारने वाले भी घोर अज्ञानी हैं और दया के पात्र हैं. वे नहीं जानते कि कितना बड़ा पाप कर्म अपने लिए बाँध रहे हैं. जो मर गये वे अपने पीछे परिवार जनों को दुखी छोड़ गये. इस सृष्टि में हर क्षण कितना कुछ घटता रहता है. अन्याय भी, अत्याचार भी, जन्म भी, मरण भी. इन सबको देखने वाला परमात्मा सब जानता है वह मरने और मारने वाले दोनों के ह्रदयों में रहता है. माया के कारण ही जीव एक-दूसरे को मित्र-शत्रु मानते हैं, कर्म करते हैं तथा उनके फल भोगते हैं. यहाँ सभी कुछ व्यवस्थित है, प्रकृति में अन्याय नहीं होता. अन्याय होता हुआ लगता है पर वास्तव में सभी कुछ एक क्रम में हो रहा है. ईश्वर की निकटता का अनुभव जिसे होता हो वह सभी के भीतर ईश्वर को देखता है, वह दानव जो बच्चों को मारता है उसके भीतर भी और वह संत जो समाज को ऊपर उठाता है उसके भीतर भी एक ही सत्ता है. परमात्मा हर घड़ी उसके साथ है. नींद खुले उसके पूर्व हर सुबह आत्मा का चमत्कार उसे दीख पड़ता है, संध्या काल का चमत्कार !

आज सदगुरू ने मोक्ष तथा बोध के बारे में कहा. वे कठिन विषयों को कितना सरल बना देते हैं. मोक्ष तो हर कामना के बाद अनुभव में आता ही है तथा बोध आकाश की तरह हर जगह है. हर श्वास के साथ जैसे निश्वास है वैसे ही कर्म के पीछे उससे मुक्ति तो है ही, न हो तो जो सुख कर्म से मिल रहा है वह दुःख में बदल जायेगा. छोटे-छोटे कार्यों में जब मुक्ति का अनुभव कोई करता है तो एक दिन उस परम मुक्ति का भी अनुभव कर लेता है जिसे पाकर कुछ भी पाना शेष नहीं रहता. आत्मा ज्ञान स्वरूप है, वह चेतन सत्ता बोध स्वरूप है जो कण-कण में व्याप्त है. वही चेतन में है वही जड़ में है. जड़ व चेतन के संयोग से जीवन का वह रूप बनता है जो चारों ओर दिखाई देता है. जड़-चेतन के संयोग से तीसरा तत्व बनता है वही अहंकार है. वह यदि स्वयं को जड़ मानकर प्रकृति का अंश मानता है तो वह कर्त्ता तथा भोक्ता है तथा यदि वह स्वयं को चेतन स्वरूप मानता है तो निर्लिप्त रहता है. वह सदा मुक्त है. जड़ के साथ तादात्म्य होने से अहंकार में जड़ता आ जाती है तब क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या तथा मद आदि का असर होता है वैसे ही चेतन के साथ तादात्म्य करने से आनंद, शांति व प्रेम अपना स्वभाव हो जाते हैं तो भलाई इसी में है कि वे स्वयं को चेतन से जोड़ें.      



No comments:

Post a Comment