Thursday, August 20, 2015

गोपी गीत


आज उनके यहाँ सत्संग है. सुबह सवा पाँच बजे नींद खुली, उसके कुछ देर पूर्व प्रार्थना की तब तंद्रा  थी, गुरूजी कहते हैं वह संध्याकाल है, तब वे आत्मा के निकट होते हैं. जिस तरह वे जागृत, सुषुप्ति तथा स्वप्नावस्था का अनुभव करते हैं, वैसे ही तुरीयावस्था का भी कर सकते हैं. जब वे ध्यान की  गहराई में होते हैं. पिछले कई दिनों से जैसे वह ध्यान ठीक से नहीं कर पाती अथवा तो अब वह उसकी सामान्य दिनचर्या बनता जा रहा है, अथवा तो ध्यान अब अलग से करने जैसी कोई विधि नहीं रह गया है. उसे हर क्षण ही मन पर नजर रखनी है, न व्यर्थ का चिन्तन न व्यर्थ की कल्पनाएँ ही, तभी भीतर की शांति को ऊपर आने का अवसर मिलेगा. अभी एक परिचिता से बात हुई उन्होंने एक अन्य महिला के बारे में बताया, जिनके पति को बोन मैरो का अंतिम स्टेज का कैंसर है. आज ही मद्रास से वे लोग आ रहे हैं. स्वामी रामदेव कहते हैं कि प्राणायाम से कैंसर भी ठीक होता है, आज उनकी बात पर विश्वास करने का मन होता है. आbज सुबह से कुछ नहीं सुना, लगा कि बाहर से अधिक ज्ञान भरने से कहीं अपच न हो जाये, जो सुना है उस पर मनन भी तो करना चाहिए. सभी संत तथा सभी शास्त्र एक ही बात कहते हैं कि स्वयं को देह मानना मोह है. जड़ प्रकृति के साथ अपनी एकता मानना भूल है. स्वयं को परमात्मा का अंश मानना तथा असीमता का अनुभव करना ही उनका ध्येय है. जड़ तथा चेतन के संयोग से उनका जन्म हुआ है, तो वे जड़ को ही क्यों अपना रूप मानें क्यों न चेतन से जुड़ें, क्योंकि जड़ तो मिटने वाला है पर चेतन सदा रहता है वह पुनः जड़ से मिलकर नया शरीर धरेगा. यदि मुक्त हो गया तो विदेह हो जायेगा अन्यथा उसे विवश होकर आना पड़ेगा भिन्न-भिन्न योनियों में !

उसकी एक सखी के पैरों व लोअर बैक में दर्द है, वह अपने इस दर्द को हिम्मत से सह रही है. ठीक ही कहा गया है यह संसार दुखों का घर है, यहाँ वे अपने ही किये पूर्व कर्मों का फल भुगतने को बाध्य हैं. ज्ञान उन्हें सचेत करता है कि आगे ऐसे कर्म न बांधें जो दर्द का कारण बनें. ईश्वर कृपा ही करता है जब कष्ट भेजता है. वे ज्यादा सहिष्णु बनें, सजग बनें और दूसरों के दुःख-दर्द को समझें ऐसा वह उन्हें सिखाना चाहता है. वे उसके इशारे को समझ नहीं पाते, वे सोये रहते हैं, वह चाहता है वे उसके साथ आनंद में नाचें झूमें गएँ ! वह कहाँ चाहता है कि वे दुखी हों, उसने तो मानव को अपने जैसा बनाया था, वह तो उनके साथ खेलना चाहता था, वे ही उसकी ओर पीठ करके बैठ गये और अपने छोटे-छोटे सुखों को.. कांच के टुकड़ों को सहेजने में लग गये, उन्हें हीरे और कांच में भेद करना कहाँ आता है, उन्हीं टुकड़ों को सहेजने में वे कर्म बांधते रहे फिर दुखों के भागी हुए, दोष दूसरों को दिया, अपने ही बनाये जाल में वे बार-बार फंसते रहे. ईश्वर सब देखता है और सद्गुरु को उनके पास भेजता है !


दोपहर के डेढ़ बजने वाले हैं, जून अब तक मलेशिया पहुंच चुके होंगे, शायद कुछ देर में उनका फोन आये. नन्हे से बात हुई, उसके टीचर से भी बात हुई कैमिस्ट्री में उसकी हाजिरी कम है इस सिलसिले में, लापरवाही के कारण उसने मेडिकल सर्टिफिकेट पहले नहीं दिखाया, खैर ! मौसम ठंडा हो गया है, रात भर वर्षा होती रही, सुबह से भी रुक-रुक कर हो रही है, रात को सोने में देर हुई, सखी के यहाँ से आते-आते ही दस बज गये थे. काफी देर नींद नहीं आई, बाद में स्वप्न देखती रही, गुरुमाँ को देखा, उनके घर आई हैं, खूब बातें कर रही हैं, बिलकुल अपनों जैसी. एक बार देखा कि उसके हाथों-पैरों पर लाल रंग के कोई जीव चिपक गये हैं पर वह भय व्यक्त नहीं कर रही, आराम से उन्हें निकाल रही है, स्वप्न की दुनिया कितनी झूठी होती है, वास्तविकता से उसका जरा भी संबंध नहीं, ऐसी ही बाहर का संसार हैं, भीतर की शांति से उसका जरा भी संबंध नहीं. वह शन्ति जो मौन में है, ध्यान में है, मन से भी पार है, जो बस ‘है’, जिसका बोध तब होता है तो बोध करने वाला भी खो जाता है, वह स्वयं बोध ही हो जाता है. कल शाम को एक सखी की प्रतीक्षा करते हुए भक्तियोग पर एक प्रवचन सुना, सगुण साकार ईश्वर की भक्ति से जो आनंद मिलता है वह निराकार की भक्ति से नहीं मिल सकता. भागवत में ‘गोपीगीत’ पढ़ा था, गोपियों का प्रेम कृष्ण के लिए कितना अधिक था, वे उनके प्राण थे. पर उनकी पूजा तो सुविधा पर निर्भर करती है. भगवान भी जानते हैं कि यदि अभी वे उनके पास नहीं गये तो कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा, वे सोचते हैं अभी तो बहुत वक्त है, आराम से बाद में भक्ति-पूजा कर लेंगे ! जून का फोन आया है, उन्होंने उसके लिए एक स्टिल डिजिटल कैमरा खरीदा है. नन्हा इलेक्ट्रोनिक्स की परीक्षा की तैयारी कर रहा है. कल दीदी और बड़ी ननद से भी फोन पर बात की. 

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