Monday, August 31, 2015

कृष्ण का जादू


आज पूरा एक महीना हो जायेगा बच्चों को आये हुए, कल ननद-ननदोई जी यानि उनके माँ-पापा आ रहे हैं, घर में गहमा-गहमी और बढ़ जाएगी. एक हफ्ता वे रहेंगे. दोपहर को किचन साफ करवाना है. कल व परसों जून ने भी घर की सफाई पर विशेष ध्यान दिया. मौसम अपेक्षाकृत गर्म है, नये कमरे की छत परसों डाल दी गयी, वर्ष के अंत तक सम्भवतः कमरा तैयार हो जायेगा. टीवी पर गुरूजी बता रहे हैं, ज्ञान, भक्ति और कर्म तीनों साथ-साथ चलते हैं. वह यह भी कह रहे हैं कि think globally and buy locally.
फिर एक अन्तराल.. आज सभी वापस चले गये, सासु माँ यहीं हैं. उसे लगा था कि उन सबके जाने पर एक क्षण के लिए भी उसे कोई दुःख नहीं होगा, पर एक पल को मन भारी हो गया, बस एक पल को ही. पिछले एक-सवा महीने से घर में चहल-पहल थी, अब फिर पहले की सी शांति है. वह साक्षी है मन की इस दुर्बलता की, इसका अर्थ हुआ कि वह उनके होने से सुख पा रही थी, तो भीतर का अनंत सुख कहाँ चला गया ? लेकिन विरह का दुःख तो कृष्ण को भी सताता था. प्रेम में विरह स्वाभाविक है ही, सम्भवतः यह विशुद्ध प्रेम है जो हल्की सी कसक बन कर उसे सता रहा है, पर उसे पता है यह क्षणिक है. अभी कुछ देर में वह टहलने जाएगी तथा लौटकर अलमीरा सहेजनी है. टीवी पर एक वक्ता ओजस्वी प्रवचन दे रही है.. ओज और तेज के पुंज बनकर उन्हें समाज में क्रांति लानी है, संबंधों में गर्मी को पैदा करना है. पिछले महीने वह सेवा कार्य में जा सकी, एक दिन ईर्ष्या ने ग्रसित किया तथा एक दिन क्रोध की हल्की अग्नि ने भी, पर इस वक्त जो भीतर घट रहा है वह इस सबसे अलग है, वह है हल्की सी पीड़ा..उसके भीतर यह भी एक दोष है कि दूसरों की गलतियाँ बहुत देखती है. छोटों की तो दूर, बड़ों की भी. मुस्कान पर भी पहरे लगा दिए हैं. गुरूजी कहते हैं, ‘हँसों और हँसाओ’ उनकी बात पर चलना तो उसका फर्ज है, तब जीवन कितना सरल हो जायेगा. चार दिनों का यह जीवन उन्हें इसलिए तो नहीं मिला है कि दूसरों की पुलिस बनें तथा अपने सिर पर कर्जा चढ़ाएं, बल्कि मुस्कुराते-मुस्कुराते जीवन के पथ पर आगे बढ़ने के लिए मिला है. गाना, नाचना, मुस्काना और कविता करना..ध्यान तो इन सबकी परिणति होगा तब ! कल शाम नन्हा भी दो-तीन दिनों के लिए बाहर जा रहा है. 
टीवी पर भजन आ रहा है. तिरछी चितवन, बांकी मुस्कन मेरे नन्द गोपाल, संग में राधा रानी सोहें शोभा बड़ी कमाल ! कान्हा को याद न करना पड़े वह अपने आप ही याद आता रहे तब जो रस आता है..उसकी कोई तुलना नहीं..पर कृष्ण को याद करना पड़े या वह याद आए लाभ तो दोनों ही स्थितियों में है. फिर उसे याद करे, यह प्रेरणा भी तो भीतर से वही देता है न..भगवान भी भक्त से दूर नहीं रह सकता, जब उसे याद न करो तो उसे भी ही उतना ही खलता है. दरअसल वह एक बार जिसे अपना बना लेता है या मान लेता है तो वह अनंत जीवन तक उसका साथ नहीं छोड़ता. तभी तो जब उसका मन संसार में उलझ जाता है तो वह मनमोहन भीतर से कोहनी मारता है, चुटकी काटता है. परमात्मा से प्रेम करो तो वह सौ गुना लौटाता है. वह होगा अनंत ब्रह्मांडों का नियंता..पर भक्त के लिए तो वह उसका अपना है, जिसके गीत गाते-गाते वह थकता नहीं है. जो प्रीत की साकार प्रतिमा है, ऐसा कान्हा उसका मीत है..



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